सिलीगुड़ी : दृष्टिहीन कृपा पर बरसी ममता की ‘कृपा’
मेधावी बेटी को सम्मानित होते देख रो पड़ी मां सम्मान के साथ मिली आर्थिक सहायता भी बेटी के हौसले को पंख देना चाहती हैं मां संजीत कुमार, सिलीगुड़ी : शहर के कंचनजंघा स्टेडियम में आयोजित उत्तरबंग उत्सव में राज्य सरकार की ओर से मेधावी दृष्टिहीन छात्रा कृपा कुजूर को आर्थिक मदद के रूप में दस […]
- मेधावी बेटी को सम्मानित होते देख रो पड़ी मां
- सम्मान के साथ मिली आर्थिक सहायता भी
- बेटी के हौसले को पंख देना चाहती हैं मां
संजीत कुमार, सिलीगुड़ी : शहर के कंचनजंघा स्टेडियम में आयोजित उत्तरबंग उत्सव में राज्य सरकार की ओर से मेधावी दृष्टिहीन छात्रा कृपा कुजूर को आर्थिक मदद के रूप में दस हजार रुपये का चेक पाते देख मां सुवंती कुजूर खुशी से रो पड़ीं. जिस मां को चाय बागान में प्रति माह 2700 से 2800 रुपये की तनख्वाह मिलती हो, उस मां के लिए राज्य सरकार की ओर से दस हजार रुपये मिलनी भी बड़ी बात थी.
उससे भी बड़ी बात थी उनकी बेटी मुख्यमंत्री के सामने खड़ी थी. मुख्यमंत्री के हाथों दस हजार रुपये का चेक पाते देख मां अभिभूत हो गयी. मां ने कहा, सपने में भी नहीं सोचा था कि दृष्टिहीन बेटी को इस मुकाम पर देख सकूंगी.
चाय बागान की श्रमिक हैं मां सुवंती कुजूर : कृपा ने बताया कि उसकी मां सुवंती कुजूर चाय बागान की श्रमिक हैं. प्रतिमाह 2700 से 2800 रुपये मिल जाते हैं. जो परिवार चलाने के लिए नाकाफी है. फिर भी मां के हौसले को सलाम करते हुये कृपा कहती है कि कभी भी मां ने पैसे के अभाव को हमलोगों के सामने व्यक्त होने नहीं दिया.
खामोश अंधेरे से शुरू हुई कृपा की दास्तान
कृपा की मां सुवंती कुजूर पर उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब पति की असमय ही मौत हो गयी. उस समय कृपा पांचवीं की छात्रा थी. फिर भी मां ने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. आर्थिक विपन्नता को भी मात देते हुये मां के चेहरे पर उस समय खुशी लौट गयी, जब पिछले वर्ष पता चला की बेटी ने माध्यमिक की परीक्षा में सफलता हासिल की है.
परिवार का कोई सदस्य पढ़ा-लिखा नहीं है. दृष्टिहीन कृपा ही परिवार का संबल बनने को तैयार है. कृपा बताती हैं कि मां के लिये जीवन समर्पित है. मां नहीं तो कुछ भी नहीं.
जन्म से ही दृष्टिहीन है छात्रा
कृपा की मां ने बताया कि मेरी चार संतान में दो जन्म से ही दृष्टिहीन हैं. इसकी परवाह किये बगैर मैं सभी को अपनी हैसियत के हिसाब से पढ़ा लिखा रही हूं. एक दृष्टिहीन बेटा दुनिया छोड़ चुका है. किसी भयानक रोग की चपेट में आने से उसकी मौत हो गयी. आर्थिक लाचारी में इलाज नहीं करा पाने का अफसोस मां सुवंती कुजूर को अभी भी है.
कृपा का घर फांसीदेवा ब्लॉक के खाडूभांगा बस्ती चाय बागान इलाके में है. प्रेरणा एजुकेशन सेंटर की देखरेख में कृपा अभी सालुगाड़ा में रहती है. दृष्टिहीन कृपा कुजूर रामकृष्ण शारदा विद्यापीठ में 11वीं की छात्रा है.
बेटी के साथ मां ने भी जताया सीएम का आभार
मेधावी दृष्टिहीन बेटी को दस हजार रुपये मिलने के बाद मां सुवंती कुजूर ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति आभार जताया. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के द्वारा छात्राओं व निर्धन लोगों के लिए चलायी जा रही जनकल्याणकारी योजनाएं हमलोगों को राहत प्रदान कर रही है.
वहीं छात्रा कृपा कुजूर ने बताया कि राज्य में छात्राओं के साथ-साथ दिव्यांगों के लिए मुख्यमंत्री मदद दे रही हैं. जिसके चलते निर्धन व असहाय बच्चे भी अपने हौसले को उड़ान देने में लगे हैं.
सहारा बना प्रेरणा एजुकेशन सेंटर
जिस दृष्टिहीन बेटी को देखकर मां कभी भगवान को कोसती थीं, आज उसी दृष्टिहीन बेटी कृपा पर मां को नाज है. पांचवीं की पढ़ाई के बाद पैसों के अभाव के बीच उस मां को राहत मिली, जब प्रेरणा एजुकेशन सेंटर उसकी जिंदगी में फरिश्ते की तरह आया. आज संस्था प्रेरणा की सौजन्य से ही वह पढ़ाई कर रही हैं. कृपा की पढ़ाई से लेकर रहने खाने तक का सारा इंतजाम प्रेरणा संस्था ही करती है.
खुद को खुशनसीब मानती हैं कृपा कुजूर
कृपा कुजूर कहती हैं की वो दुनिया की खुशनसीब इंसान हैं. इसलिये नहीं कि वो निर्धन है, बल्कि इसलिये क्योंकि उनकी मां ने बेटी के दृष्टिहीन होने की परवाह नहीं करते हुये भी किसी चीज की कमी होने नहीं दी. बेहतर करने के लिये हमेशा हौसला दिया. मां से मिले प्यार के कारण ही आज वो दृष्टिहीन होते हुये भी माध्यमिक पास कर 11वीं की पढ़ाई कर रही हैं.