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दार्जिलिंग में पहली बार गोरखालैंड नहीं, विकास बना है चुनाव का मुद्दा, जानें क्या रहा है यहां का संसदीय इतिहास
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा में विभाजन से बदले राजनीतिक समीकरण एक वक्त था, जब पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग चरमपंथियों की गिरफ्त में था और यहां चुनाव के मुद्दे भी इसी को केंद्र में रख कर हुआ करते थे, मगर इस बार इस संसदीय सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले समीकरण बदल गये हैं. दार्जिलिंग […]
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा में विभाजन से बदले राजनीतिक समीकरण
एक वक्त था, जब पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग चरमपंथियों की गिरफ्त में था और यहां चुनाव के मुद्दे भी इसी को केंद्र में रख कर हुआ करते थे, मगर इस बार इस संसदीय सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले समीकरण बदल गये हैं. दार्जिलिंग में पहली बार गोरखालैंड नहीं, विकास चुनावी मुद्दा बना है.
जिस गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के एक इशारे पर इलाके में किसी उम्मीदवार की किस्मत तय होती थी, वह अब दो गुटों में बंटा हुआ है. विमल गुरुंग गुट भाजपा के साथ है, तो विनय तामंग गुट तृणमूल संग. गोरखा नेशनल लिबरेशन प्रंट (जीएनएलएफ) का समर्थन भाजपा को है. तीन दशकों में पहला मौका है, जब यहां चुनाव गोरखालैंड या संविधान की छठी अनुसूची नहीं, बल्कि विकास पर लड़ा जा रहा है.
भाजपा के एसएस अहलूवालिया इस सीट से जीत कर केंद्र में मंत्री बने थे, लेकिन 2017 में महीनों लंबी हिंसा और आगजनी के दौरान उनके यहां से गायब रहने की वजह से आम लोगों में भारी नाराजगी थी.
इसी वजह से पार्टी ने उनका पत्ता साफ करते हुए भाजपा ने मोर्चा के गुरुंग गुट और जीएनएलएफ के समर्थन से एक कारोबारी राजू सिंह बिष्ट को इस सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित किया है. इसके विरोध में मोर्चा की केंद्रीय समिति के सदस्य स्वराज थापा ने इस्तीफा दे दिया है. विनय तामंग की अगुआई वाले मोर्चा गुट ने तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार अमर सिंह राई का समर्थन करने का एलान किया है.
टीएमसी व भाजपा के बीच सीधी टक्कर
दार्जिलिंग में टीएमसी व भाजपा के बीच सीधी टक्कर है. दोनों के उम्मीदवार गोरखा तबके से हैं. तृणमूल के अमर सिंह राई मोर्चा विधायक रह चुके हैं. कांग्रेस से शंकर मालाकार, माकपा से सुमन पाठक व भाजपा से राजू सिंह बिष्ट मैदान में हैं.
जसवंत सिंह भी जीत चुके हैं यहां से
दार्जिलिंग संसदीय सीट की गिनती राज्य की सबसे सुरक्षित सीटों में होती है. यहां इलाके के सबसे बड़े राजनीतिक दल ने जिसकी पीठ पर हाथ रख दिया उसकी जीत सौ फीसदी तय होती है. गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के जमाने में उसके तत्कालीन प्रमुख सुभाष घीसिंग के समर्थन से इंद्रजीत खुल्लर जीतते रहे थे.
उसके बाद इलाके में सत्ता बदली और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा प्रमुख विमल गुरुंग के समर्थन से पहले भाजपा के जसवंत सिंह जीते और उसके बाद वर्ष 2014 में एसएस अहलूवालिया. अबकी गोरखा मोर्चा में भी सत्ता बदल गयी है. विमल गुरुंग बरसों से भूमिगत हैं. उनकी जगह मोर्चा का नेतृत्व संभालने वाले विनय तामंग को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी का करीबी माना जाता है. सीट पर दूसरे चरण में 18 अप्रैल को मतदान होना है.
दार्जिलिंग का संसदीय इतिहास
दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आया. इस सीट से सबसे ज्यादा बार माकपा के सांसद रहे. शुरू के दो चुनावों, 1957 व 1962 में यहां से कांग्रेस जीती थी. इसके बाद दो बार, 1991 व 2004 में उसे फिर यहां का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला. यहां से एक बार निर्दलीय उम्मीदवार 1967 में जीता. उसके बाद के चार चुनावों, 1971, 1977, 1980 व 1984 के चुनावों में माकपा यहां से जीती. 1989 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के इंद्रजीत चुनाव जीतने में कामयाब रहे है.
यही एक चुनाव था, जिसे जीएनएलएफ ने जीता था. 1996 में माकपा ने यहां वापसी की और 1998 व 1999 का भी चुनाव जीता. 2004 में कांग्रेस यहां से जीती. 2009 में यह सीट भाजपा के खाते में गयी, जसवंत सिंह यहां से सांसद बने. 2014 में एसएस अहलुवालिया को यहां से सांसद चुना गया था.
कौन कितनी बार जीता
माकपा 07
कांग्रेस 04
भाजपा 02
जीएनएलएफ 01
निर्दलीय 01
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