Loading election data...

महामारी . उत्तर बंगाल में इनसेफ्लाइटिस का कहर 10 दिनों में 30 की मौत

जलपाईगुड़ी: पिछले 10 दिनों में इनसेफ्लाइटिस से उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में 30 लोगों की मौत हो गयी है. उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल प्रबंधन ने भी इस बात को स्वीकार किया है. इस संबंध में पूछे जाने पर अस्पताल के अधीक्षक डॉ अमरेंद्रनाथ सरकार ने कहा कि इनसेफ्लाइटिस के कारण यहां […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 17, 2014 10:16 AM

जलपाईगुड़ी: पिछले 10 दिनों में इनसेफ्लाइटिस से उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में 30 लोगों की मौत हो गयी है. उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल प्रबंधन ने भी इस बात को स्वीकार किया है. इस संबंध में पूछे जाने पर अस्पताल के अधीक्षक डॉ अमरेंद्रनाथ सरकार ने कहा कि इनसेफ्लाइटिस के कारण यहां 10 दिनों में 30 मरीजों की मृत्यु हो गयी है.

उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों के सौ से ज्यादा लोगों को यहां इनसेफ्लाइटिस रोग के लक्षण होने के कारण भरती किया गया है. उन्होंने बताया कि रोगियों में अधिकतर लोग जलपाईगुड़ी जिले के हैं और कुछ अन्य मरीज दार्जिलिंग, कूचबिहार और उत्तर दिनाजपुर जिलों से आये हैं. डॉ सरकार ने कहा कि ये लोग तेज बुखार और एंसेफ्लाइटिस के अन्य लक्षणों के साथ भरती हैं.

मालदा में दो और शिशुओं की मौत

मालदा. विगत 24 घंटे में फिर दो शिशुओं की मौत से अब तक मालदा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में 96 घंटे में शिशु मृत्यु की संख्या बढ़ कर 19 हो गयी. वहीं, मेडिकल कॉलेज व अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि पिछले 96 घंटे में 15 शिशुओं की मौत हुई है.

केंद्र भी चिंतित, आयेगी विशेषज्ञ टीम : इस घटना को लेकर केंद्र सरकार भी चिंतित है. दिल्ली से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय व यूनिसेफ की सात सदस्यीय विशेषज्ञ टीम मालदा मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण करने आ रही है. टीम कॉलेज के निरीक्षण के बाद चिकित्सकों के साथ बैठक भी करेगी. अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, अब तक जिन 15 शिशुओं की मौत हुई है, उसके पीछे कम वजन व सांस की तकलीफ रही है. रविवार रात 12 बजे से सोमवार रात 12 बजे तक जिन दो शिशुओं की मौत हुई है, उनका जन्म बाहर हुआ था. अस्वस्थ्य हालत में दोनों नवजातों को इलाज के लिए लाया गया था. इनका जन्म 10 घंटे पहले ही हुआ था. शिशुओं की मौत के कारण के बारे में अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि गर्भवती माताओं द्वारा पोषण युक्त खाना नहीं खा पाने के कारण जन्म के बाद नवजात का वजन दो किलो से नीचे ही रह जा रहा है. इसके अलावा गर्भवती होने के बाद भी ग्रामीण इलाके की ज्यादातर गर्भवती महिलाएं निकटतम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में नहीं जाकर झोलाछाप चिकित्सकों के पास जा रही हैं. कई लोग तो घर में ही दायी से बच्च प्रसव करा लेती हैं. जिस कारण नवजात शिशुओं में इनफेक्शन हो रहा है. इसको लेकर जागरूकता अभियान चलाये जाने का भी असर नहीं हो रहा है. इधर, अस्वस्थ्य शिशुओं के मांओं का कहना है कि मेडिकल कॉलेज में बीमार शिशुआें के इलाज के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है. न्यूनेटल व एसएनसीयू विभाग रहने पर भी वहां पर्याप्त रूप से नवजातों के रखने का बंदोबस्त नहीं है.

Next Article

Exit mobile version