एक लाख से अधिक गोरखाओं का नाम ना होना दुर्भाग्यपूर्ण
दार्जिलिंग : एनआरसी की फाइनल लिस्ट से असम के एक लाख से अधिक गोरखा समुदाय के लोगों के नाम छूटने को गोजमुमो (विनय गुट) के महासचिव और जीटीए के कार्यवाहक चेयरमैन अनित थापा और अध्यक्ष विनय तमांग ने दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. रविवार को अलग अलग प्रेस बयान जारी कर इन नेताओं ने एनआरसी को […]
दार्जिलिंग : एनआरसी की फाइनल लिस्ट से असम के एक लाख से अधिक गोरखा समुदाय के लोगों के नाम छूटने को गोजमुमो (विनय गुट) के महासचिव और जीटीए के कार्यवाहक चेयरमैन अनित थापा और अध्यक्ष विनय तमांग ने दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है.
रविवार को अलग अलग प्रेस बयान जारी कर इन नेताओं ने एनआरसी को लागू करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनका दल विदेशी घुसपैठियों को बाहर करने के खिलाफ नहीं है. लेकिन इस प्रक्रिया से वास्तविक भारतीय गोरखों का छूटना न सिर्फ अनुचित है बल्कि अन्यायपूर्ण भी है. इसीलिये गोजमुमो शुरु से इस प्रक्रिया के विरोध में रहा है. उन्होंने कहा कि भारत में डेढ़ करोड़ भारतीय गोरखा निवास करते हैं. इनमें से 40 लाख गोरखा असम में बसते हैं. इसलिये अन्य राज्य में गोरखा भाई बहनों पर अगर संकट आता है तो वह चुप नहीं बैठ सकते.
उन्होंने इस बात पर हैरानी जतायी कि असम के स्वतंत्रता सेनानी और असम कांग्रेस के संस्थापक सदस्य छविलाल उपाध्याय की नातिनी मंजूदेवी और उनके दो बच्चों के नाम एनआरसी के फाइनल लिस्ट में नहीं मिले. इस तरह से हमारी गोरखा पहचान पर यह एक बड़ा धब्बा है.
मंजू देवी का नाम वर्ष 2005 के आधार पर संदिग्ध नागिरकों की सूची में रखा गया है. सवाल है कि देश के स्वतंत्रता सेनानी की नातिनी और उनके बच्चों को आज अपनी नागरिकता साबित करने के लिये अगर विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष खड़ा होना होगा तो यह बेहद शर्मनाक स्थिति है. केंद्र सरकार को उन्हें न्याय दिलाने के लिये आगे आना चाहिये.
अनित थापा ने कहा कि बीते लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि एनआरसी को बंगाल में भी लागू किया जायेगा. लेकिन उससे गोरखा समुदाय को डरने की जरूरत नहीं है. लेकिन वह सवाल करना चाहते हैं कि आज वह कौन सी बाध्यता है कि अंतिम सूची से एक लाख गोरखों के नाम छूट गये.
अनित थापा ने एनआरसी का विरोध करने पर उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि सांसद राजू बिष्ट को गोरखों का दर्द क्यों महसूस नहीं हो रहा है? अगर एक लाख गोरखे विदेशी न्यायाधिकरण में अपनी नागरिकता किसी कारण से साबित नहीं कर सकें तो भाजपा का नेतृत्व उन्हें कहां ले जाकर बसायेगा.
यह स्थिति उन्हें स्पष्ट करनी होगी. उन्हें जहां तक जानकारी है असम में जिन नागरिकों के नाम एनआरसी से छूट गये हैं उनके पास 1951 से पहले के दस्तावेज मौजूद हैं. जबकि दार्जिलिंग पहाड़ और डुआर्स-तराई क्षेत्र के 87 फीसदी परिवारों के पास तो जमीन का पट्टा तक नहीं है. मान लें कि कल एनआरसी बंगाल में भी लागू होता है तो इन परिवारों का क्या होगा?
गोजमुमो के अध्यक्ष विनय तमांग ने बताया कि एनआरसी से छूटे एक लाख से अधिक गोरखा समुदाय के हितों की सुरक्षा को लेकर गोजमुमो की उच्च स्तरीय टीम जल्द असम का दौरा करेगी. इसके अलावा आने वाले सप्ताह में कोलकाता जाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भेंट कर एनआरसी के मसले पर मजबूती से विरोध करने के लिये आभार प्रकट करेंगे.
उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि अंतिम सूची से बाहर रखे गये गोरखा नागरिकों को सुरक्षित सूची में आदि निवासी का दर्जा देकर शामिल करे. गोजमुमो की एक उच्च स्तरीय बैठक जल्द बुलायी जायेगी जिसमें इस संवेदनशील मसले को लेकर भावी आंदोलन की रुपरेखा तय की जायेगी. कहा कि हम लोग भारतीय गोरखा समुदाय की सुरक्षा के लिये किसी भी स्थिति का सामना करने के लिये तैयार हैं.