कालचीनी : मेच जनजाति के लोगों ने लक्खी मां के रूप में पौराणिक नियमानुसार एक नन्ही कन्या को देवी लख्खी मान कर पूजने कर परंपरा निभायी. रविवार कोजागरी लक्खी पूजा के अवसर पर प्रत्येक घरों में लोग लक्खी मां की आराधना में लीन होकर सुख शांति की प्रार्थना कर रहे थे.
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मेच जनजाति ने मां लक्ष्मी के रूप में नन्ही कन्या को पूजा
कालचीनी : मेच जनजाति के लोगों ने लक्खी मां के रूप में पौराणिक नियमानुसार एक नन्ही कन्या को देवी लख्खी मान कर पूजने कर परंपरा निभायी. रविवार कोजागरी लक्खी पूजा के अवसर पर प्रत्येक घरों में लोग लक्खी मां की आराधना में लीन होकर सुख शांति की प्रार्थना कर रहे थे. उसी दौरान डुआर्स में […]
उसी दौरान डुआर्स में निवास करने वाले मेच जनजाति के लोग भी रविवार देवी लक्खी माता की प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन उनकी पूजा में अनोखा दृश्य देखने को मिला. जहां पूजा के दौरान मिट्टी से बने देवी लक्खी मां की मूर्ति नहीं थी. अलीपुरद्वार जिले के कालचीनी ब्लॉक स्थित दक्षिण साताली के मेच जनजाति के भाटाओ मंदिर इलाके के समस्त मेच समुदाय के लोगों ने लक्खी पूजा का आयोजन किया.
जहां एक नौ साल की नन्हीं बच्ची को देवी लक्खी मां के रूप में सजाकर सबने उनकी पूजा की. पूजा के दौरान इलाके के स्थानीय निवासी रतन बसुमाता ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी यहां नौ साल की नन्ही एक बच्ची रिदिमा बासुमाता को देवी लक्खी मां के रूप में सजाया गया एवं उसी रूप में उन्हें ग्रामीणों द्वारा मंदिर में लाया गया. इसके पश्चात मेच जनजाति के नियमों के अनुसार उनकी पूजा की गयी.
वहीं पूजा में उपस्थित श्रद्धालु रवीन्द्र नर्जीनारी ने बताया हर साल की तरह इस साल भी हम सबने मिलकर लक्खी पूजा किया, लेकिन मेच जनजाति के पौराणिक नियमानुसार देवी लक्खी की प्रतिमा नहीं बल्कि साक्षात शिशु कन्या को देवी लक्खी मां के रूप में सजाकर विराजमान किया. पूजा समापन के दौरान इस विषय में पुजारी निवारण ठाकुर ने बताया कि यह यज्ञ व लक्खी पूजा का चलन हमारे वन देव गुरु बाबा महाऋषि रख कर गये थे. प्रत्येक वर्ष यहां लक्खी मां की आराधना व यज्ञ करते हैं.
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