सबको है गुमान, मुल्क के काम आया ‘मिट्टी का लाल’
संजीत कुमार, बागडोगरा : मादरे हिंद की हिफाजत में शहीद हो गया बागडोगरा का लाल. शहीद सुभाष थापा की मां पद्मा थापा बेसुध हालत में अस्पताल में भर्ती है. बेटे की शहादत के बाद जैसे जीवन ठहर सा गया है. रह-रहकर गूंजती है शहीद होने से पहले हुई बेटे से रात की बात, मोर्चे पर […]
संजीत कुमार, बागडोगरा : मादरे हिंद की हिफाजत में शहीद हो गया बागडोगरा का लाल. शहीद सुभाष थापा की मां पद्मा थापा बेसुध हालत में अस्पताल में भर्ती है. बेटे की शहादत के बाद जैसे जीवन ठहर सा गया है. रह-रहकर गूंजती है शहीद होने से पहले हुई बेटे से रात की बात, मोर्चे पर हूं. महफूज रखना है वतन को. बातचीत के दौरान नवम्बर में गांव आने का वादा किया था. लेकिन अब ताबूत में लौटे हैं.
इंतजार…जिस पर समय ने अनंत की तारीख लिख दी. बेटे की शहादत की खबर सुनकर बेसुध पड़ी मां आर्मी के अस्पताल में उपचाराधीन है. इलाज चल रहा है. चिकित्सकों ने सोमवार को अस्पताल में छुट्टी देने की बात कही है.
पिता की पुकार, कोई तो कह दे झूठी है खबर : कहते हैं कि बाप के लिए जमीन से ज्यादा भारी हो जाती है जवान बेटे की लाश. कोई तो कह दे कि खबर झूठी है. झूठे हैं अखबार और हजारों झूठे हरफों के बीच इस झूठ की कोई गुंजाइश क्यों नहीं है. पिता टेक बहादुर थापा ने बताया कि दो बेटों में सबसे छोटा बेटा था सुभाष. घर का बहुत ही दुलारा. लेकिन अब देश की खातिर वतन के लिए कुर्बान हो गया. मां-पिता के लिए एकमात्र सहारा था सुभाष. बड़ा बेटा नेपाल में रहता है.
माता-पिता का एकमात्र सहारा थे सुभाष : मां पद्मा छेत्री व पिता टेक बहादुर थापा के लिए आगे पहाड़ जैसा जीवन है. दो भाईयों में मां-पिता के लिए अकेला सहारा थे सुभाष. बड़ा भाई नेपाल में ही रहता है. सांसें तो चलती ही रहेगी जैसे-तैसे, लेकिन जिंदगी ठहर गयी है. तो क्या हुआ…कहती है पाजेब हवाओं झूमकर बहना. आज शहीद का डोला आया है.
जल्द घर आने की कही थी बात, कफन में लिपट कर लौटे : शहीद के परिजनों को ढांढ़स बंधाने के लिए पहुंचने वाले लोग दर्द की आंच पर उबल रहे थे. सुभाष थापा के दोस्त अरमान ने बताया कि कुछ दिन पहले बात हुई थी तो कहा था कि अभी हालात अच्छे नहीं हैं.
लेकिन जल्द छुट्टी में घर आने पर खूब धमाल करेंगे. पता नहीं किसकी नजर लग गयी. आने की खबर तो आयी, लेकिन कफन में लिपट कर. सुभाष के दोस्तों का कहना था कि शहादत युद्ध में होती तो और बात होती. ऐसे चले जाने की हसरत तो नहीं थी हमें. पाकिस्तान से भारत सरकार को आर-पार की लड़ाई लड़नी चाहिए.
ग्रामीणों को शहीद सपूत पर है नाज : ग्रामीणों ने कहा कि ये सलामी है उस सपूत की, जिसने देश के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं की. कहां सबके नसीब होता है, तिरंगे में लिपटना. जब बागडोगरा स्थित जवान के पैतृक घर के सामने से शहीद का काफिला गुजर रहा था तो मानों हवाओं ने भी अपनी सांसे थाम ली थी. बागडोगरा के लोग अपने लाल की शहादत पर गमजदा हैं. जुलाई में छुट्टी पर घर आये थे. इसके बाद अब जिन्दगी से ही छुट्टी की खबर आ गयी. सुभाष के शहीद होने की जानकारी मिलने के बाद से घर पर लोगों की भीड़ लगी है.
गुस्से और गम में उबलते रहे युवा
सेना के जवान सुभाष थापा पर हुए पाकिस्तानी हमले ने अपर बागडोगरा के युवाओं को झकझोर दिया है. जवान की शहादत यहां के युवाओं पर उस नासूर की तरह चिपक गया है, जिसका मवाद अरसे तक रिसता रहेगा.
युवाओं का कहना था कि इस हमले में हमने सिर्फ एक जवान नहीं खोया है, बल्कि घर में परिजनों के लिए रोटी का जुगाड़ करनेवाला एक बेटा भी खो दिया है. नौशेरा से खबर मिलने के बाद से ही शहीद के गांव में विलाप व मातम का स्वर है. जुलाई में सुभाष घर आये थे. अब नवम्बर में आने की बात थी. लेकिन प्रार्थना नामंजूर हो गयी. मुल्क की मिट्टी पर खुद को चढ़ा आया लाल. स्थानीय बुजुर्गों की लरखराती जुबान कहती है, दुश्मनों को माफ मत करना.
बागडोगरा में टीका का जश्न हुआ फीका
गोरखा समुदाय के लिए टीका पर्व बहुत ही मायने रखता है. इस त्योहार में दूर-दूराज से सगे-संबंधी एक-दूसरे के यहां जाकर पर्व का आनंद लेते हैं. आश्विन पूर्णिमा रविवार को टीका पर्व का अंतिम दिन था. लेकिन शहीद की सूचना ने उत्साह को हताशा में बदल दिया. अपर बागडोगरा में टीका जश्न फीका रहा. लोगों ने शहीद की शहादत को याद कर पर्व को नजरअंदाज कर दिया.