डॉक्टरों की भीड़ में शहर का ‘नायाब हीरा’ हैं डॉ हीरालाल

संजीत कुमार, सिलीगुड़ी : वैसे तो डॉक्‍टरों को ‘भगवान’ की संज्ञा दी जाती है. लेकिन आज के डॉक्‍टर पैसे के चक्‍कर में अपने कर्तव्‍यपथ से कितना भटक गए हैं, ये जगजाहिर है. जहां अधिकांश डॉक्‍टर दवा माफियाओं के साथ मिलकर अपनी तिजोरियां भरने में जुटे हैं, वहीं सिलीगुड़ी के चिकित्सक डॉ. हीरालाल पासवान गरीबों-असहायों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 21, 2019 8:13 AM

संजीत कुमार, सिलीगुड़ी : वैसे तो डॉक्‍टरों को ‘भगवान’ की संज्ञा दी जाती है. लेकिन आज के डॉक्‍टर पैसे के चक्‍कर में अपने कर्तव्‍यपथ से कितना भटक गए हैं, ये जगजाहिर है. जहां अधिकांश डॉक्‍टर दवा माफियाओं के साथ मिलकर अपनी तिजोरियां भरने में जुटे हैं, वहीं सिलीगुड़ी के चिकित्सक डॉ. हीरालाल पासवान गरीबों-असहायों के घर पहुंच मुफ्त इलाज कर एक अनूठी मिसाल कायम कर रहे हैं.

डॉ. हीरालाल पासवान नियमित रूप से झुग्गी-बस्तियों में जाकर गरीबों के घरों में जमीन पर बैठकर मुफ्त इलाज करते हैं. डॉ. हीरालाल पासवान गरीबों के लिए किसी भगवान से कम नहीं हैं. इसीलिए डॉ. हीरालाल को झुग्गी-बस्ती इलाकों में रहने वाले लोग उन्हें ‘गरीबों का मसीहा’ कहते हैं.
शिवपाल के लिए भगवान से कम नहीं है हीरालाल: भवन निर्माण का कार्य करने वाले शिवपाल बताते हैं कि हमारे बच्चे की तबीयत अचानक खराब हो गयी थी. दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालने वाले शिवपाल को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? पैसों की तंगी की वजह से वह किसी बड़े डॉक्‍टर के पास नहीं जा सकते थे.
तभी उन्‍हें पता चला कि उनके इलाके में एक डॉक्टर हफ्ते में एक बार आते हैं और फ्री इलाज करते हैं. शिवपाल डॉक्टर हीरालाल के पास पहुंचे. डॉ हीरालाल ने शिवपाल के बच्चे की मर्ज को अच्‍छी तरह समझा और धूम्रपान बंद करने की सलाह देने के साथ दवाएं दी.
खुद की गरीबी देखकर पसीज गया हीरालाल का दिल: डॉक्‍टर हीरालाल बताते हैं कि वह कुलीपाड़ा जैसे पिछड़ा इलाके में रहते हैं. यहां आसपास काम करने वाले मजदूर, गार्ड और गरीब तबके के अन्य लोग बीमार होने पर इलाज नहीं करवा पाते, क्योंकि इलाज के लिए पैसे नहीं है और मजदूरी छोड़कर जाएं तो फिर खाने के लाले पड़ जाते हैं. यह देखकर डॉ हीरालाल का दिल पसीज गया और उन्‍होंने प्रत्येक दिन अपने क्लीनिक से समय निकालकर गरीबों का इलाज करने की ठान ली.
डॉक्‍टर हीरालाल कहते हैं कि बचपन में खुद की गरीबी देखकर उन्हें एहसास हुआ कि वाकई ऐसे लोगों को अगर कोई बड़ी या छोटी तकलीफ हो तो वह अस्पताल के चक्कर काटने को मजबूर होंगे और उनके सामने दिहाड़ी का संक‍ट खड़ा हो जाएगा. हीरालाल ने बताया कि यह सही है कि इनके इलाज के लिए उनकी बड़ी-बड़ी डिग्री की जरूरत नहीं थी, लेकिन वह किसी और का इंतजार क्यों करें. उन्होंने समय निकालकर इन गरीब मरीजों के इलाज का फैसला लिया.
अमेरिकी व्यक्ति से सहयोग का ठुकराया ऑफर : वैसे तो डॉक्टर हीरालाल के पास सहयोग करने व दवाओं के लिए आर्थिक मदद देने वालों की कमी नहीं है. फिर भी वे सिर्फ अपने दोस्तों व खास परिचितों से ही मदद लेते हैं. उन्होंने बताया कि एक बार मैं आश्चर्य में पड़ गया जब एक अमेरिकी महिला मैरी विलियम ने मरीजों का सहयोग करने की इच्छा जताई.
मैरी ने कहा कि मैं जरूरतमंद लोगों के लिए फूड सप्लीमेंट की मदद करना चाहती हूं. मैरी एक अमेरिकी फार्मासिस्ट कंपनी में जेनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत थीं. लेकिन इस प्रस्ताव को हीरालाल ने सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि जब तक मैं खुद सक्षम हूं. तब तक अपने भरोसे इस कार्य को करता रहूंगा.
सभी धार्मिक स्थलों पर देते हैं सेवा: डॉ. हीरालाल के लिए इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है. वे मंदिर, मदरसा, चर्च समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर जाकर जरूरतमंद लोगों का इलाज करते हैं. वे मदरसा में भी जाकर यतीम बच्चों का इलाज करते हैं तो मंदिर में साधु-संतों के स्वास्थ्य की भी जांच करते हैं. डॉन बास्को चर्च में तो प्रत्येक रविवार को जरूरतमंद लोगों के लिए उपलब्ध रहते ही हैं.
गरीबों-असहायों का नि:शुल्क करते हैं इलाज, दवा का भी नहीं लेते हैं पैसा, फीस के बदले मरीजों से बस लेते हैं दुआ, झुग्गी-बस्तियों में नियमित रूप से जरूरतमंदों के घर पहुंचकर करते हैं इलाज
गरीबों के घर पहुंच जमीन पर बैठकर करते हैं इलाज
हाथ में दवा का झोला, गले में आला और स्कूटी, यही पहचान है डॉ. हीरालाल पासवान की. वे हर सुबह अपने जरूरी काम निपटा कर खुद पहुंच जाते हैं गरीबों के घर. जहां खुद जमीन पर दरी बिछाकर अपने बच्चों की तरह प्यार-दुलार के साथ मरीजों को देखते हैं. इस दौरान वे जरूरतमंद लोगों को आवश्यकतानुसार दवाएं भी देते हैं.
डॉ. हीरालाल का कहना है कि निर्धन लोगों के बीच स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता फैलाना ही उनके जीवन का मकसद है. स्लम बस्तियों में पहुंचने के साथ ही रोगियों की भीड़ लग जाती है. उनमें कई लोग ऐसे होते हैं जो पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पाते हैं. ऐसे मरीजों के लिए वे भगवान से कम नहीं है.
बचपन में ही सिर से उठ गया था पिता का साया
हीरालाल का यह सफर इतना आसान नहीं था. हीरालाल की प्रारंभिक पढ़ाई सिलीगुड़ी के भारती हिन्दी हाईस्कूल से हुई. उसके बाद डॉ. उन्होंने भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया. हीरालाल ने बताया कि पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी. जब वे तीन साल के थे, तभी पिताजी का निधन हो गया था. पिताजी रेलवे के ग्रुप डी पद पर कार्यरत थे.
उनकी मौत के बाद काफी अभाव में मां ने हम पांच भाई-बहनों की परवरिश की. पिताजी की जगह पर मां को रेलवे में आया की नौकरी मिली. हीरालाल ने बताया कि हमलोगों ने बहुत गरीबी में दिन गुजारे हैं. अभाव का जीवन जीने के कारण ही हमें गरीबों की सेवा करने की प्रेरणा मिली.
न अप्वाइंटमेंट की जरूरत, न फीस की बाध्यता
डाक्‍टर हीराराल के पास गरीब मरीजों को न अप्वाइंटमेंट की जरूरत होती है और न ही फीस देने की कोई बाध्यता है. उन्होंने बताया कि वह गरीबों के घर जाकर जमीन पर दरी बिछाते हैं और शाम 5 बजे से लेकर जब तक अंधेरा न हो, मरीजों को देखने में तल्लीन रहते हैं. वे सस्ती जेनेरिक दवा लिखते हैं और उन्हें फ्री में देते भी हैं. फाइव स्टार क्लीनिक व अस्पताल से निकलकर इस तरह से इलाज करने के बारे में पूछे जाने पर डॉ. हीरालाल ने बताया, जो मैंने पाया है उसकी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी है.
वहीं जिम्मेदारी व्यक्तिगत तौर पर मैं निभाने की कोशिश कर रहा हूं. हर काम हम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते. अगर हममें से किसी में ये हुनर है कि वह दूसरे के काम आ सकते हैं तो उन्हें जरूर योगदान देना चाहिए. वे भी यही कर रहे हैं. इसका नाम उन्होंने समर्पण दिया है और यह भी कहा कि ये अनुभव से अनुभूति की ओर कदम है.
कुलीपाड़ा स्लम एरिया से निकल पाया मुकाम
डॉ. हीरालाल पासवान का जन्म सिलीगुड़ी के स्लम इलाका कुलीपाड़ा में हुआ. आज भी वो अपने परिजनों के साथ कुलीपाड़ा में ही रहते हैं. डॉ. हीरालाल के दो बेटे हैं. दोनों एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं. एक बेटा कोलकाता में प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज एसएसकेएम से पढ़ाई कर रहा है, जबकि दूसरा बेटा नॉर्थ बंगाल मेडिकल मेडिकल कॉलेज में अध्ययनरत है.
डॉ. हीरालाल की पत्नी बिन्दु भी उनके इस कार्य में बखूबी साथ देती हैं. श्रीमती बिन्दु कहती हैं कि मेरे दोनों लड़के भगवान की कृपा से बेहतर बढ़ाई कर रहे हैं तो फिर हमें अब किस बात की चिंता. पति ने गरीबों के लिए जीवन को समर्पित कर दिया है.
भूटान, नेपाल व बांग्लादेश से भी पहुंचते हैं मरीज
वैसे से डॉ. हीरालाल पासवान का मुख्य उद्देश्य जरूरतमंद लोगों का नि:शुल्क इलाज करके उनके बीच जागरूकता फैलाना है. लेकिन विशेषकर रविवार को उनका नि:शुल्क कैंप सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक डॉन बॉस्को में लगता है. इस कैंप में इलाज के लिए भूटान, नेपाल और बांग्लादेश से भी मरीज पहुंचते हैं. उनका कैंप कुलीपाड़ा, धर्मनगर, शंकरबस्ती (सालबाड़ी), सुकना, लिम्बु बस्ती, फाफरी, हाथीघीसा, माटीगाड़ा, एनजेपी समेत कई इलाकों में लगता है.

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