सिलीगुड़ी: अपनी मूंछ और चोटी की ताकत के लिए दुनियाभर में चर्चित शैलेंद्रनाथ राय की रविवार को हैरतअंगेज करतब दिखाते वक्त हादसे में मौत हो गयी. वह हजारों लोगों के बीच रोपवे से चोटी से लटक कर 12 सौ फीट की ऊंचाई पर तीस्ता नदी के ऊपर एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी की 400 मीटर की दूरी तय करने का प्रयास कर रहे थे. 300 मीटर की दूरी तय करने के बाद चक्के से रस्सी के उलझ जाने के कारण वह फंस गये. 35 मिनट तक वह अपनी जान बचाने के लिए छटपटाते रहे. सुरक्षा का कोई इंतजाम न होने के कारण उनकी जान चली गयी.
कैसे हुई मौत
शैलेंद्रनाथ ने सेवक के बाघ पुल से 1200 फीट की ऊंचाई और दो पहाड़ों के बीच 400 मीटर की दूरी तय करने की चुनौती अपने लिए तय कर रखी थी. उन्होंने 2007 में 270 मीटर की दूरी बड़ी आसानी से चोटी से झूलते हुए तय की थी. दर्जनों उपलब्धियां उनके नाम है.
रोपवे से 400 मीटर का फासला पार करने के लिए उन्होंने पहले कोई ट्रायल नहीं लिया था. सुरक्षा और बचाव दल की कोई व्यवस्था नहीं थी. रविवार को एक बजकर 35 मिनट पर उन्होंने भगवान का नाम लेकर रोपवे से चोटी बांधकर यात्रा शुरू की. 300 मीटर की दूरी डेढ़ मिनट में पूरी कर ली. लेकिन बीच में रस्सी चक्के से उलझ गयी और वह फंस गये. उनका हाथों का दस्ताना भी गिर गया. उन्होंने नीचे देखा. वे थोड़ा घबड़ाये. करीब 35 मिनट तक अपने को बचाने के लिए छटपटाते रहे. हाथ झूलती रही. आंखों से खून निकलने लगा. कोई कुछ नहीं कर पाया. हजारों की तादाद में लोग तमाशबीन बन कर खड़े रहे. लोग चाह कर भी उन्हें नहीं बचा पाये.
‘प्रशासनिक लापरवाही से गयी जान’
जोखिम भरा खेल हो और सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं. इसके लिए हमारी सुस्त व्यवस्था जिम्मेदार है. यह कहना है पूर्व नगर विकास मंत्री अशोक नारायण भट्टाचार्य का. उन्होंने कहा कि उनकी (शैलेंद्र) की मेडिकल जांच होनी चाहिए थी. एक बचाव दल होना चाहिए था. लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी. हम एक अच्छे क्रिकेटर, फुटबॉलर तैयार कर सकते हैं, लेकिन शैलेंद्र नाथ राय कभी नहीं. इस दर्दनाक मौत की जांच होनी चाहिए.
प्रशासन को अवगत किये बगैर हुआ था यह खेल
उत्तर बंगाल विकास मंत्री गौतम देव ने कहा कि प्रशासन को अवगत किये बगैर यह हैरतअंगेज खेल का आयोजन किया गया था. प्रशासन से किसी तरह की अनुमति नहीं ली थी. वह एसीपी का होमगार्ड था. एक सप्ताह की छुट्टी पर था. हमें उसके जाने का दुख है. हमें उसके परिवार के लिए सोचना है
गिनीज बुक में दर्ज है शैलेंद्रनाथ का नाम
प्रशासन की लापरवाही से लोगों ने शैलेंद्र नाथ को खो दिया. उनकी हैरतअंगेज करतब किसी अजूबे से कम नहीं थी. उनकी मूंछ और चोटी देश ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर थी. पिछले 13 वषों से अपनी चोटी से वह लोगों का मनोरंजन कर रहे थे. रविवार को सेवक पुल पर उनकी झूलती लाश ने शहरवासियों को दहला दिया. हाथों में ईस्ट बंगाल झंडा और तिरंगा लेकर हम सब को छोड़ कर चले गये शैलेंद्रनाथ. गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने वाला शख्स देशबंधु पाड़ा में एक साधारण इनसान की तरह जिंदगी जीता रहा. आशियाने के नाम पर टीन की छत थी. उनके दो बेटे और एक बेटी है. सरकार की ओर से होमगार्ड की अस्थायी नौकरी नसीब हुई थी.