जमाई भी ले सकता है बेटे की जगह !

सिलीगुड़ी: बंगाली समाज में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है-‘ जम-जमाई-भागना, ना होय आपना’ यानी यमराज, दामाद और भगिना, कभी भी आपका अपना नहीं हो सकता. ऐसे में बांग्ला समाज में जमाई षष्ठी मनाने का औचित्य ही क्या , जब वह अपना न हो सके! केवल इसी समाज में यह उत्सव पूरे धूमधाम से रीति-नीति से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:49 PM

सिलीगुड़ी: बंगाली समाज में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है-‘ जम-जमाई-भागना, ना होय आपना’ यानी यमराज, दामाद और भगिना, कभी भी आपका अपना नहीं हो सकता. ऐसे में बांग्ला समाज में जमाई षष्ठी मनाने का औचित्य ही क्या , जब वह अपना न हो सके! केवल इसी समाज में यह उत्सव पूरे धूमधाम से रीति-नीति से मनाया जाता है.

वकायदा ससुर जमाई के घर जाकर निमंत्रण देता है. इस दिन सासू मां कुएं से मटकी में पानी भर कर, कटहल के पेड़ के नीचे उसकी पूजा करती है. उसे नया पोषाक दिया जाता है. मिठाई खिलाया जाता है. लेकिन फिर जमाई अपना नहीं हो पाता! लेकिन सपन पाल खुशनशीब है, उसने इस कहावत को झुठला दिया कि ‘जमाई’ अपना नहीं होता.

कॉलेज पाड़ा स्थित, नॉर्थ इस्ट फ्रोंटियर रेलवे के पावर ग्रेड वन कर्मचारी सपन पाल की एकलौती सुपुत्री है शर्मिला पाल. बेटे की ख्वाहिश पूरी नहीं हुई. इसलिए बेटी को शादी करते समय वे अक्सर सोचते थे कि उसके ससुराल जाने के बाद, उनका क्या होगा? अकेले कैसे वे अपनी जिंदगी काटेंगे. लेकिन बेटी की शादी के बाद वे अकेले नहीं हुए. बेटी के साथ उन्हें जमाई जैसा बेटा, यानी अभिषेक मिला. अभिषेक आज तक मंदिर नहीं गये.

ईश्वर में विश्वास नहीं. लेकिन ससुर सपन पाल जब श्रीमदभागवत की कथा कहते हैं, तो वे उठ कर भागते नहीं. बल्कि पूरे मनोयोग से सुनते हैं और उनकी वाणी से प्रभावित होकर अपने स्कूल नेशनल हेरिटेज एकेडमी में अपने साथी मित्र को बताते भी हैं. वहीं ससुर सपन पाल कहते हैं कि जमाई को बकायदा घर जाकर बुलाना पड़ता है, लेकिन मेरा जमाई बिना बुलाये बेटे के जैसे घर में आ गया.

उसमें रत्ती भर भी अहं नहीं है. वह मेरे पास झूठी शान नहीं दिखाता. वहीं सास कहती है कि अभिषेक (टिकाई) जमाई से कब बेटा बन गया, मुझे पता नहीं. शादी से पहले बहुत दुख होता था कि बेटी के जाने के बाद हम अकेले हो जायेंगे, लेकिन अब मेरा घर हरा-भरा हो गया. अब घर में छोटा अभिषेक भी आ गया है. जमाई तो जेनेरेशन बढ़ाता है. ऐसे जमाई को पाकर मैं भाग्यशाली हो. काश! सभी जमाई अभिषेक की तरह हो. वहीं अभिषेक का कहना है कि मैं अपने सासू मां का फैन हो गया हूं. उनके हाथों का चिली चिकेन का क्या कहना! अभिषेक को आशीवार्द देने के लिए सासू मां कल्पना सुबह उठकर कुएं से पानी लाकर दिन भर अभिषेक के आव भगत में लगी है. वैसे केवल जमाई शष्ठी के दिन ही नहीं साल भर यहां जमाई और ससूर का प्रेम देखने लायक है. दोनों एक दूसरे पर जान छिड़कते है.

सपन पाल की बेटी शर्मिला बासु पाल कहती है कि शादी के पहले ही मैंने अपने पति को कहा था कि आपको जमाई और बेटे, दोनों का फर्ज निभाना है. और वह दोनों भूमिका में नं. वन है. वहीं अभिषेक का कहना है कि जिसतरह बेटी, ससुराल में जाकर पूरे परिवार को अपना परिवार बना लेती है. ठीक उसी तरह जमाई का भी फर्ज है कि ससुराल वाले को अपना ही परिवार समझे. ताकि यह कहावत झूठ हो जाये. मुझे पूरा विश्वास है कि जमाई भी बेटा निभा सकते है.

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