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कभी नहीं बनेगा गोरखालैंड

सिक्किम एंड गोरखालैंड राज्य बनाने की वकालत सिलीगुड़ी : दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य के निर्माण को लेकर भले ही जितने आंदोलन हो जायें, लेकिन अलग राज्य का निर्माण संभव नहीं है. दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग राज्य के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है और आम लोगों को धोका दिया जा […]

सिक्किम एंड गोरखालैंड राज्य बनाने की वकालत
सिलीगुड़ी : दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य के निर्माण को लेकर भले ही जितने आंदोलन हो जायें, लेकिन अलग राज्य का निर्माण संभव नहीं है. दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग राज्य के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है और आम लोगों को धोका दिया जा रहा है.
गोजमुमो प्रमुख बिमल गुरूंग भी अलग राज्य की मांग से समझौता कर चुके हैं. यह आरोप गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं ने लगाया है. सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पार्टी महासचिव आर लक्सम तथा प्रवक्ता प्रमोशकर ब्लोन ने कहा है कि बिमल गुरूंग जीटीए लेकर सत्ता सुख भोग रहे हैं. उन्होंने जीटीए लेकर ही गोरखालैंड से समझौता कर लिया है. वह सिर्फ दिखावे के लिए गोरखालैंड राज्य के मुद्दे को जीवित रखना चाहते हैं, जबकि वास्तविकता में अलग राज्य बनाने के प्रति अब उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.
वास्तविकता यह है कि अलग गोरखालैंड राज्य का निर्माण संभव ही नहीं है. दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र के नेताओं के समझौतावादी नीति के कारण पहाड़ के लोगों का अलग राज्य का सपना कभी भी पूरा नहीं होगा. अलग गोरखालैंड राज्य के गठन को लेकर अब तक दो बार आंदोलन हो चुका है और आंदोलन के अगुवा रहे दोनों ही दलों के नेताओं ने कुछ न कुछ लेकर समझौता कर लिया है. वर्ष 1986 में सुवास घीसिंग के नेतृत्व में गोरखालैंड आंदोलन की शुरूआत हुई.
इस आंदोलन के दौरान कई लोग मारे गये. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. तत्कालीन केन्द्र और राज्य सरकारों ने सुवास घीसिंग से बातचीत कर दाजिर्लिंग गोरखा पार्वत्य परिषद (दागोपाप) का गठन कर दिया. सुवास घीसिंग दागोपाप के अध्यक्ष बन कर दो दशकों से भी अधिक समय तक सत्ता सुख भोगते रहे.
एक बार दागोपाप अध्यक्ष बन जाने के बाद उन्होंने कभी भी फिर से अलग गोरखालैंड राज्य बनाने की मांग में आवाज बुलंद नहीं की. इसी तरह से वर्ष 2007 में बिमल गुरूंग के नेतृत्व वाली गोजमुमो ने गोरखालैंड आंदोलन की शुरूआत की. बाद में त्रिपक्षीय समझौते के द्वारा गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) का गठन कर दिया गया. अब बिमल गुरूंग जीटीए चीफ बनकर सत्ता का लुफ्त उठा रहे हैं.
दोनों नेताओं ने दाजिर्लिंग के सिक्किम में विलय की मांग दोहरायी. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि गोरखालैंड के लिए बंगाल के भाया कोलकाता होकर आंदोलन से अच्छा है कि भाया गंगतोक होकर सिक्किम के साथ मिल जायें. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि सिक्किम में दाजिर्लिंग के विलय के बाद भी गोरखालैंड की पहचान बनी रहेगी. दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र के लोग पश्चिम बंगाल के साथ नहीं रहना चाहते. यही कारण है कि जब भी अलग राज्य गोरखालैंड के निर्माण की मांग को लेकर जब भी कोई आंदोलन होता है, तो पर्वतीय क्षेत्र के लोग उसका भारी समर्थन करते हैं, लेकिन वह बाद में अपने आप को ठगा महसूस करते हैं.

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