..द्वार पर मैं तुम्हारे स्वयं आ गया!

सिलीगुड़ी : ‘यूं न लेटी रहो, अब उठो तो जरा/ द्वार पर मैं तुम्हारे स्वयं आ गया..’ यह प्रणय गीत ओम प्रकाश पांडेय ने कवि गोष्ठी में सुनायी. शनिवार की शाम कवि करन सिंह जैन के निवास स्थान पर कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया था. गोष्ठी में शहर के स्थानीय कवियों, साहित्यकारों व व्यंगकारों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2013 12:20 AM

सिलीगुड़ी : यूं लेटी रहो, अब उठो तो जरा/ द्वार पर मैं तुम्हारे स्वयं गया..’ यह प्रणय गीत ओम प्रकाश पांडेय ने कवि गोष्ठी में सुनायी. शनिवार की शाम कवि करन सिंह जैन के निवास स्थान पर कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया था.

गोष्ठी में शहर के स्थानीय कवियों, साहित्यकारों व्यंगकारों ने अपने गीत, शायरी, व्यंग्य से समसामयिक व्यवस्था पर व्यंग्य के साथ नये मूल्य बोध, आधुनिक संबंधों के पेंचीदगी की उलझन पर चिंता व्यक्त की.

कवि डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने अपनी कविता में अनमोल संवेदना को निर्मम हाथों में सौंपने के विरोध में कहते है-‘ बटोरा है जिसे हमने/ तिलतिल करके/देश दुनिया की सीमाएं लांघकर/ संवेदननाओं की अनंत गहराई से/ उसे कैसे सौंप दे हम/ तुम्हारे निर्मम हाथों में..’ कहकर आज के राजनेताओं पर अपने अविश्वास की घोषणा करते है.

वहीं व्यंग्यकार महावीर चचान ने अपनी कविताजूतासे आज की व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया. कवि करन सिंह जैन ने अपनी कविता में अपनी सीमा का विस्तार करते हुये मानव को उदार होने का संदेश देते हुए कहते हैं-‘ समंदर की बात क्या सोचोगे? /दरिया में ही सिमट गये हो क्या?/ मंजिल तक कैसे पहुंचोगे करन! रास्ते में ही खो गये हो क्या!.’ वहीं कवि मुन्ना लाल नये सौंदर्यबोध को अपनी कविता में दिखाते हुए फरमाते हैं-‘कौन कहता है, मरूभूमि में/ सौंदर्य नहीं होता/ तुमने देखा है/ उसकी कुरूपता को/.’

कवि डॉ श्याम सुंदर अग्रवाल,पूनम चंद पुरोहित और शायर इरफानआजम ने भी अपनी शायरी से खूब वाहवाही लूटी. वहीं मदन जैन ने अपने भजनों से माहौल को थोड़ा आध्यात्मिक रंग भर दिया. उनके भजनकर बदंगी और भजन/ मिलेंगे प्रभु धीरेधीरे/’. कार्यक्रम का संचालन कवि करन सिंह जैन ने किया.

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