सिलीगुड़ी: बच्चें प्यार के भूखे होते हैं. बच्चें को प्यार के साथ पढ़ायें, तो वे आसानी से पढ़ाई करते हैं. उनके साथ शिक्षकों को प्यार से पेश आना चाहिए. जितना शिक्षक छात्रें को प्यार देंगे, उतना छात्र शिक्षक को सम्मान देंगे. उक्त बातें कहना है शिक्षिका कैलिस्टिना तमांग का, जिन्होंने 27 साल तक नागालैंड में बच्चों को शिक्षा दी और स्कूल से किसी भी प्रकार के वेतन की मांग नहीं की.
नागालैंड में शिक्षा का अलख जलाने के लिए ही 1995 में दिक्षक दिवस के दिन 5 सितंबर को दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति ने नेशनल अवॉर्ड फॉर टिचर्स से सम्मानित किया था. केलिस्टिना कहती है कि जब शिक्षक बच्चों को अपना बच्चा समझ के पढ़ायेंगे तो ही वह बच्चों को सही शिक्षा दे सकता है. यदि शिक्षा के दौरान शिक्षक छात्रों से भेदभाव करेगा तो वह सही शिक्षा नहीं दे सकता हैं.साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चें ही देश के भविष्य हैं. मासूम बच्चों का भविष्य बनाने वाले शिक्षक ही होते हैं. आज कल के शिक्षक तो ट्यूशन में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. उन्हें छात्रों के शिक्षा से ज्यादा अपनी जेब भरने की जल्दी रहती हैं.
उन्होंने कहा कि अमीर लोगों के बच्चें तो एक से ज्यादा ट्यूशन कर सकते हैं पर गरीब लोगों के बच्चें तो स्कूल की पढ़ाई पर निर्भर रहते हैं. ऐसे में शिक्षकों को स्कूलों में भी मन से पढ़ाना चाहिए. उन्होंने कहा कि नागालैंड के हॉली क्रास इंग्लिश स्कूल में उन्होंने 1972 से 1998 तक बच्चों को शिक्षा दिया. केलिस्टिना ने कर्सियांग के सेंट जोसफ स्कूल से अपनी पढ़ाई की थी. उसके बाद उनकी शादी एक असम राइफल के जवान से हो गयी. जिनके साथ वह नागालैंड चली गयी और वहां पर शिक्षा का अलख जगाया. अब वह सिलीगुड़ी के गांधीनगर में रहती हैं. अपने बच्चों के साथ. यहां पर भी वह शिक्षा व सामाज सेवा से जुड़ी हैं.