सिलीगुड़ी: आज के ही दिन सन 1949 में हिंदी राजभाषा की अधिकारिणी हुई. सिलीगुड़ी में हिंदी भाषी हिंदी स्कूल से लेकर हिंदी महाविद्यालय, विश्व विद्यालय और महाविद्यालयों में हिंदी विभाग चालू करने के लिए संघर्ष भी किया गया. सोचा कि इन संस्थानों के खुलने से हिंदी की सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं को ऊर्जा मिलेगी, लेकिन आश्चर्य की बात है ‘हिंदी दिवस’ पर सिलीगुड़ी महकमा के आधा दर्जन महाविद्यालयों और उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग में हिंदी दिवस नहीं मनाया गया.
रंगमंच के अध्यक्ष करन सिंह जैन का कहना है कि दुख की बात है कि सिलीगुड़ी महकमा के विभिन्न कॉलेजों में और यहां तक कि उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय में ‘हिंदी दिवस’ नहीं मनाया गया. यहां तक मुझे यहां से किसी साहित्यकार व कवि की जयंती मनाने की भी सूचना नहीं मिलती. शिक्षण संस्थानों का कोई सामाजिक सरोकार भी होता है. लेकिन इन संस्थानों की स्थिति और उदासीनता को देखकर हिंदी को लेकर किये गये आंदोलन के प्रति ग्लानि होती है. इस संबंध में उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय,हिंदी विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ मनीषा झा से पूछे जाने पर कि क्या आज दिवस मनाया जायेगा? उन्होंने कहा कि आज तो छुट्टी है.
वैसे भी हिंदी विभाग को हिंदी दिवस मनाने की क्या जरूरत. विभाग तो साल भर हिदी दिवस मनाता रहता है. विश्व हिंदी परिषद , सिलीगुड़ी चेप्टर के अध्यक्ष सुशील रामपुरिया ने कहा कि देश तो आजाद हो गया है, तो 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाते है? हमें अपना जन्मदिन भी नहीं मनाना चाहिए. मेरा तो मनाना है कि इस अहिंदी क्षेत्र में हिंदी व अहिंदी भाषी को साथ लेकर हिंदी जो देश की बिंदी है, मान है, एकता के सूत्र में बांधने का जरिया है, उसे जोर-शोर से मनाना चाहिए. शिक्षण संस्थाओं के साथ सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओं को इस दिन जोड़ने की जरूरत है. कारण आज भी यह हमारे आंदोलन और अभिव्यक्ति की भाषा. करोड़ों भारतीयों की धड़कन है. हिंदी है हम , वतन है, हिदुंस्तां हमारा!