सिलीगुड़ी: ‘उनके थामते ही गिरने की हदें सिमटती जाती थीं/ वो बांका यार भर नहीं था, मिसाल-ए -खुदा था कोई.’हिंदी साहित्य में राजेंद्र यादव वाकई एक मिसाल हैं. स्त्री -विमर्श और दलित विमर्श को साहित्य में जगह देने वाले और नयी कहानी के प्रणोता से हिंदी साहित्य समृद्ध है.
उनके निधन से हिंदी जगत शोक में डूबा है. साहित्यिक -सांस्कृतिक संस्था विकल्प की ओर से राजेंद्र यादव की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ मौन व्रत पालन से किया गया.
आलोचक देवेंद्र नाथ शुक्ल ने कहा कि वें शारीरिक रूप से विकलांग थे. एक पांव में परेशानी थे. लेकिन उन्होंने साहित्य -आकाश में जो मुकाम बनाया, भविष्य में शायद ही वह कोई बना पाये. डॉ आरपी सिंह ने कहा कि ‘हंस’ एक पत्रिका ही नहीं, विमर्श का एक मंच है. राजेंद्र यादव की संपादकीय मुझे काफी पसंद थी. उनका उन्मुक्त स्वभाव हमेशा चर्चा का विषय रहा.
वें अपनी मरजी से जीते थे. साहित्य जगत में जितना लांक्षण और विरोध उन्होंने झेला शायद किसी और लेखक ने झेला हो. लेखिका रंजना श्रीवास्तव ने कहा कि मुझे उनके व्यक्तित्व का वह पक्ष काफी दिलचस्प लगा जब वें अपने अपने पाठक के तीखी टिप्पणी भी बिना कांट-छांट के छाप देते थे. छोटे-छोटे ताजमहल, लक्ष्मी कैद है, सारा आकाश, जवाब दो विक्रमादित्य, एक इंच मुस्कान, कहानी संग्रह एक दुनिया सामानांतर आदि उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता भीखी प्रसाद वीरेंद्र ने की. कार्यक्रम में साहित्याकर करन सिंह जैन, मनोरंजन पांडेय आदि ने अपना वक्तव्य रखा.