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कर्मयोगी कृष्ण की लीला वंदन में झूमे शहरवासी

सिलीगुड़ी: लीलाधारी कृष्ण की कथा कभी पुरानी नहीं हो सकती. वृंदावन के रास-रसइया हो या मीरा के गिरधर, उनका लीला भी भक्त प्रेम से सुनते है. और शर्म-लाज छोड़कर थिरकने के लिए मजबूर होते है. सोमवार को इस्कान मंदिर में गोवर्धन पूजा का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बताया गया है यह गोवर्धन मात्र […]

सिलीगुड़ी: लीलाधारी कृष्ण की कथा कभी पुरानी नहीं हो सकती. वृंदावन के रास-रसइया हो या मीरा के गिरधर, उनका लीला भी भक्त प्रेम से सुनते है. और शर्म-लाज छोड़कर थिरकने के लिए मजबूर होते है. सोमवार को इस्कान मंदिर में गोवर्धन पूजा का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बताया गया है यह गोवर्धन मात्र पर्वत नहीं, वह कर्म करने का संदेश देता है.

इंद्र कूपित हो गये थे, जब ब्रजवासियों ने कृष्ण के कहने पर कि आप इंद्र की जगह गोवर्धन की पूजा क्यों नहीं करते, आपका भरण-पोषण तो यह गोवर्धन करता है.

इंद्र ने तब मूसलाधार वर्षा करके ब्रज को जलमग्‍न कर दिया था. तक बालगोपाल ने अपनी कानी अंगुली से इस गोवर्धन को धारण किया था. कृष्ण की यह लीलास्थली है. इस्कान के नमो कृष्ण दास ने बताया कि इस अवसर पर 120 किलो के अन्न से पर्वत बनाया गया, 25 किलो का हलवा और भक्ता ने अपने प्रभु के लिए 108 प्रकार के व्यंजन बनाये. दिनभर कृष्ण वंदना और कृष्ण की लीला कथा का कार्यक्रम चला. प्रभु को फूल, दीप,धूप से वंदन-कीर्तन किया गया.

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