बांस से तैयार सूपली और ढकिया का विकल्प नहीं

सिलीगुड़ी: छठपूजा वास्तव में हमें अपनी लोक संस्कृति से जोड़ता है. हम कितने भी रेडिमेड, ब्रांडेड चीजों का उपयोग कर लें, लेकिन हाथ से बने सामान का अपना सौंदर्य और जगह. माथे पर छइंठी लेकर जब परिवार के लोग, बिना जूता-चप्पल पहने घाट पर जाते है, उसका अपना सौंदर्य है. भार को सहन करते हुये […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 6, 2013 8:37 AM

सिलीगुड़ी: छठपूजा वास्तव में हमें अपनी लोक संस्कृति से जोड़ता है. हम कितने भी रेडिमेड, ब्रांडेड चीजों का उपयोग कर लें, लेकिन हाथ से बने सामान का अपना सौंदर्य और जगह. माथे पर छइंठी लेकर जब परिवार के लोग, बिना जूता-चप्पल पहने घाट पर जाते है, उसका अपना सौंदर्य है.

भार को सहन करते हुये भी दिल में सुकुन होता है. न पैर थकता है, न माथा दर्द करता है. मन अलौकिक आनंद से हर्षित होता है. मंगलवार को गोवर्धन पूजा से छठपूजा का प्रारंभ माना जाता है. घरों में मिट्टी का चूल्हा बनाने, गेहूं को धोने सुखाने में जहां महिलायें व्यस्त है, वहीं दूसरी ओर घर के मुखिया डाला, सूप, ढकिया, फल-प्रसाद खरीदने में व्यस्त है.

संतोषी नगर के मनोज गुप्ता ने बताया कि वैसे तो कई लोग पित्तल के सूप खरीदते है, लेकिन बांस के बने सूप में जो पवित्रता का आभास होता है, वह दूसरे किसी पदार्थ में नहीं. हम कितना ही मिल का आटा खा लें, लेकिन छठपूजा के लिए प्रसाद अपने से गेंहू को धो-पीसकर करते है. पंडित उमाशंकर ने बताया कि पित्तल से अधिक पवित्त बांस से बने सूप है. सिलीगुड़ी थाना के पास लगाये गये बाजार में सूप बिक्रेता ने बताया कि 80 से 100 तक ढकिया और 70 से 90 रूपया जोड़ा सूपली बेच रहे है. आज से खरीदार अधिक आ रहे है. हम तीन महिना पहले से सूप और ढकिया बनाने का काम शुरू कर देते है.

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