दार्जिलिंग जिला में नहीं है बाल-गृह

सिलीगुड़ी: बचपन हंसने -खाने, पढ़ने-लिखने का होता है. लेकिन किसी का बचपन होटल में जूठे वर्तन धोने, ट्रेनों में चाय पिलाने, घरों में काम करने और अमीर बच्चों के बस्ते को ढोने के लिए होता है. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरपर्सन और दार्जिलिंग जुवेनाइल कोर्ट के मजिस्ट्रेट मृणाल घोष ने बताया कि बंगाल में सबसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2013 9:32 AM

सिलीगुड़ी: बचपन हंसने -खाने, पढ़ने-लिखने का होता है. लेकिन किसी का बचपन होटल में जूठे वर्तन धोने, ट्रेनों में चाय पिलाने, घरों में काम करने और अमीर बच्चों के बस्ते को ढोने के लिए होता है. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरपर्सन और दार्जिलिंग जुवेनाइल कोर्ट के मजिस्ट्रेट मृणाल घोष ने बताया कि बंगाल में सबसे अधिक बाल-तस्करी दार्जिलिंग जिला के सिलीगुड़ी शहर से होती है.

यह बोर्डर एरिया होने के कारण बच्चे को आसानी से बहला -फुसलाकर ले जाते . चाय बगान के मजदूर पैसे के लिए बच्चे को बेचने के लिए मजबूर होते है. छोटी-छोटी बच्ची को मैंने देह-व्यापार के धंधे में फंसते देखा है.

बड़े-बड़े होटल और घरों में बच्चों के साथ पशुओं सा व्यवहार होता है. ऐसे में ‘बाल -दिवस ’कैसे मनाये? दार्जिलिंग जिला में एक भी सरकारी बाल गृह नहीं है. जलपाईगुड़ी और कूचबिहार के बाल गृह में बच्चों को रखा जाता है. 2008 से अब तक 3400 बच्चों को तस्करी से हमने बचाया. लेकिन कुछ बच्चों को उसके परिवार तक पहुंचा देते है. लेकिन समस्या तब खड़ी होती है, जब इन बच्चों का आगे-पीछे कोई नहीं रहता. सिलीगुड़ी में सिनी और कंसर्न के पास बाल गृह है. जिसमें केवल 35 सीट है.

गौरतबल है कि छह माह पहले सर्किट हाउस में श्रम विभाग की ओर से बाल-श्रम को रोकने के लिए दर्जनों संकल्प लिये गये. शासन प्रशासन की ओर से बाल गृह बनाने की बात उठी थी. आर्थिक जुर्माना से लेकर हर तरह की कवायद. लेकिप ढाक के तीन पात! कुछ भी परिणाम नहीं निकला. आज भी सब कुछ चल रहा है. 14 साल के नीचे के बच्चे आपकों होटल और दुकानों में दिखेंगे.

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