पैसे के अभाव में फेल हो रहा है पुलिस का ‘सोर्स’

मालदा: पैसे के अभाव में धीरे-धीरे पुलिस अधिकारियों का सोर्स नेटवर्क फेल होता जा रहा है. आम तौर पर बोलचाल की भाषा में सोर्स को मुखबिर कहा जाता है. पुलिस अधिकारियों के मुखबिर जहां-तहां फैले होते हैं तथा समय-समय पर अपराधियों एवं अपराध की जानकारी पुलिस अधिकारियों को उपलब्ध कराते हैं. इन मुखबिरों की सूचना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 4, 2015 7:43 AM
मालदा: पैसे के अभाव में धीरे-धीरे पुलिस अधिकारियों का सोर्स नेटवर्क फेल होता जा रहा है. आम तौर पर बोलचाल की भाषा में सोर्स को मुखबिर कहा जाता है. पुलिस अधिकारियों के मुखबिर जहां-तहां फैले होते हैं तथा समय-समय पर अपराधियों एवं अपराध की जानकारी पुलिस अधिकारियों को उपलब्ध कराते हैं. इन मुखबिरों की सूचना पर ही पुलिस आगे की कार्रवाई करती है. कई मौकों पर पुलिस को मुखबिरों के सूचना के आधार पर ही बड़ी कार्रवाई कर पाने में सफलता हासिल हुई है.

बदले में पुलिस अधिकारियों को ऐसे मुखबिरों को पैसे देने पड़ते हैं. सरकार की ओर से अलग से इस मद में कोई घोषित राशि नहीं दी जाती है. माना जाता है कि पुलिस अधिकारी अपने दम पर ही पैसे इकट्ठे करते हैं एवं समय-समय पर मुखबिरों को देते हैं. पुलिस तथा खुफिया अधिकारियों को सोर्स कायम रखने के लिए अपनी जेबें ढीली करनी पड़ रही है. पुलिस एवं खुफिया अधिकारियों का कहना है कि पैसे के अभाव में देश-विरोधी कार्य-कलापों पर भी नजर रखने में परेशानी हो रही है. आखिर वह लोग अपनी जेब से कब तक मुखबिरों को पैसे देते रहेंगे. हाल ही में कोलकाता में आइएसआइ के तीन एजेंटों की गिरफ्तारी के बाद से इस मामले ने तूल पकड़ लिया है.

हालांकि एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी का कहना है कि मुखबिरों को देने के लिए अलग से एक फंड है, लेकिन उसमें पैसे की अधिक व्यवस्था नहीं रहती. इससे आगे उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है. हाल ही में मालदा जिले के कालियाचक एवं वैष्णवनगर थाना इलाके में जाली नोट के कारोबार में लगे कई लोगों की गिरफ्तारी हुई है. इन लोगों को बीएसएफ तथा एनआइए ने पकड़ा है. जिला पुलिस अधिकारियों का कहना है कि मुखबिरों द्वारा इसकी जानकारी जिला पुलिस के लोगों को नहीं दी गई. ऐसा संभवत: मुखबिरों ने पैसे नहीं मिलने की उम्मीद की वजह से की है. मुखबिरों ने स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी न देकर अधिक पैसे की लालच में केन्द्रीय एजेंसियों को इसकी जानकारी दी. कई पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके इलाके में जाली नोट के कारोबारियों को केन्द्रीय एजेंसियां पकड़ रही है, जो उनकी कार्यक्षमता पर भी सवालिया निशान खड़ा कर रहा है. बड़े अधिकारी डांट-फटकार लगा रहे हैं.

इन पुलिस अधिकारियों का आगे कहना है कि जब तक मुखबिरों को उचित पैसे नहीं मिलेंगे तब तक वह लोग आपराधिक गतिविधियों की जानकारी नहीं देंगे. इस बीच, पुलिस के एक विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सभी थानों में मुखबिरों को देने के लिए अलग से फंड की व्यवस्था रहती है. इस पर नजर रखने के लिए एक पुलिस अधिकारी की भी तैनाती की जाती है. लेकिन फिलहाल इस फंड में पैसे ही नहीं हैं. सूत्रों ने आगे बताया कि कालियाचक एवं वैष्णवनगर थाना इलाके में करीब 150 मुखबिर काम कर रहे हैं. इसके अलावा भारत-बांग्लादेश सीमा पर उस पार बांग्लादेशी सीमा में भी कई मुखबीरों को लगा कर रखा गया है. यही लोग भारत-बांग्लादेश सीमा पर होने वाली अवैध गतिविधियों की जानकारी पुलिस को देते हैं. बदले में इन मुखबिरों को पैसा दिया जाता है.

बांग्लादेशी मुखबिरों का भी पैसा बंद
सूत्रों ने आगे बताया कि पिछले छह महीने से बांग्लादेशी सीमा क्षेत्र के मुखबिर पैसे नहीं मिलने की वजह से पुलिस को किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं देते . एक खुफिया अधिकारी ने बताया कि उस पार बांग्लादेशी सीमा क्षेत्र के गोमास्तापुर गांव में एक साल पहले एक मदरसे की शुरूआत हुई है. यह मदरसा कालियाचक थाना अंतर्गत मिलिकसुल्तानपुर सीमा से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. माना जा रहा है कि इस मदरसे में जेहादी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जो मौलवी मदरसे में तैनात है, वह सिरिया, इराक तथा अफगानिस्तान आदि देशों का दौरा कर लौट चुका है. उस मदरसे की जानकारी खुफिया अधिकारियों को वहां के एक मुखबिर से मिल जाया करती थी. उस मुखबिर को चार हजार रुपये महीने का भुगतान किया जाता था. पिछले तीन महीनों से इस राशि का भुगतान बंद है, इसलिए अब उस मदरसे की कोई जानकारी भारतीय अधिकारियों को नहीं मिल पा रही है.
अपना घर चलायें या सोर्स देखें
इस मुद्दे पर एक खुफिया अधिकारी ने झुंझलाते हुए कहा कि वह अपनी तनख्वाह से अपना घर चलायें या फिर सोर्स को देखें. वह अपने सोर्स को बनाये रखने के लिए पिछले तीन महीनों से चार हजार रुपये प्रतिमाह का भुगतान कर रहे हैं. बारह हजार रुपये देने के बाद अब उनमें सोर्स को कायम रखने की क्षमता नहीं है. वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी देने के बाद भी कोई लाभ नहीं हुआ है. इस पूरे मामले में पुलिस अधीक्षक प्रसुन्न बनर्जी ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.

Next Article

Exit mobile version