सैकड़ों साल पुराने पौधों ने निकाला चाय बागानों का दम
सिलीगुड़ी: डुवार्स के चाय बागानों की स्थिति लगातार बद से बदतर होती जा रही है. एक पर एक चाय बागान बंद हो रहे हैं और चाय श्रमिक भूखों मर रहे हैं. चाय बागान मालिकों ने अपने बागानों को बंद कर दिया है और श्रमिकों को रामभरोसे छोड़ दिया है. कई चाय बागान मालिकों का कहना […]
यही वजह है कि बागान मालिक बागान बंद कर रातों-रात गायब हो जाते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो डुवार्स के चाय बागानों की स्थिति अचानक नहीं बिगड़ी है. दरअसल चाय बागान मालिकों ने पहले जिस अनुपात में चाय बागानों से मुनाफा कमाया, उस अनुपात में ढांचागत सुविधाओं के विकास पर खर्च नहीं किया. डुवार्स के चाय बागानों में चाय के पौधे सैकड़ों वर्ष पुराने हैं. इसके अलावा चाय के पौधों की नियमित रूप से सिंचाई के लिए आवश्यक सिंचाई उपकरण एवं ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाये गये. विशेषज्ञों का कहना है कि चाय के पौधों की सिंचाई अनिवार्य है और सिंचाई का तरीका अन्य पौधों के मुकाबले बिल्कुल अलग है. चाय के पौधों के जड़ में पानी नहीं जमना चाहिए. इसके लिए ड्रेनेज सिस्टम काफी दुरुस्त किये जाने की आवश्यकता है.
वर्तमान में जो स्थित है, उसके अनुसार अधिकांश चाय बागानों में सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं है. इस संबंध में नॉर्थ बंगाल टी प्लांटेशन इंप्लाई यूनियन के महासचिव अभिजीत राय ने कहा कि चाय बागान के मालिक सिर्फ मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं. चाय के पौधों को दुरुस्त करने तथा ढांचागत सुविधाओं के विकास में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने चाय बागानों का पूरी तरह से दोहन कर लिया है और अब नुकसान होने का दिखावा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि चाय बागानों की हालत इसलिए बिगड़ी कि वहां चाय के नये पौधे नहीं लगाये गये. चाय बागानों में सौ-सौ साल पुराने पौधे लगे हुए हैं. स्वाभाविक तौर पर इससे उत्पादन प्रभावित हुआ है. बागान मालिक पुराने पौधों के स्थान पर नये पौधे लगायें और चाय की खेती के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाओं का विकास करें, तो उत्पादन में काफी वृद्धि होगी. दरअसल चाय बागान मालिकों ने बागानों का दोहन कर मुनाफा तो बहुत कमाया, लेकिन खर्च करने से कतराते रहे. अभी चाय बागानों के लिए यह लीन सीजन है.
इसका मतलब है कि ठंड के समय चाय बागानों में कोई काम नहीं होता है. नयी पत्तियां नहीं उगती हैं, इसकी वजह से चाय बागान मालिकों को कोई मुनाफा नहीं दिखता है. हर वर्ष ही ठंड के समय इसी प्रकार की स्थिति उत्पन्न होती है. श्री राय ने आरोप लगाते हुए कहा कि चाय बागानों के बंद होने के अधिकांश मामले लीन सीजन में ही सामने आते हैं. बगैर किसी मुनाफे के बागान मालिकों को श्रमिकों को वेतन एवं मजदूरी देनी पड़ती है. ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए ही बागान मालिक बागान छोड़कर गायब हो जाते हैं. दूसरी तरफ बागान मालिकों के इस मानसिकता की कीमत निरीह चाय श्रमिकों को चुकानी पड़ रही है. वेतन एवं मजदूरी न मिलने की वजह से चाय श्रमिकों की हालत लगातार खराब होती जा रही है.
हालत यह है कि श्रमिकों की समस्या को लेकर राज्य सरकार, चाय बागान मालिक तथा श्रमिक यूनियन के नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ है. स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करीब एक लाख श्रमिकों के पास रहने के आवास तक नहीं हैं. चाय श्रमिकों की स्थिति को लेकर राज्य के श्रम विभाग ने पिछले वर्ष एक सर्वे कराया था. उस सर्वे में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं. करीब दो लाख 62 हजार 426 चाय श्रमिक हैं. उनमें से एक लाख 66 हजार 591 श्रमिकों के पास ही रहने का मकान है.
यह मकान भी सिर्फ कहने भर का मकान है. चाय बागानों में तमाम झोपड़े बनाये गये हैं, जहां जीने के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं. अधिकांश घरों में बिजली की व्यवस्था नहीं है. 95 हजार 835 श्रमिकों के पास तो रहने के लिए झोपड़ा तक भी नहीं है. इस बीच, चाय श्रमिकों के न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए 28 फरवरी को मिनी सचिवालय उत्तरकन्या में एक त्रिपक्षीय बैठक हुई थी. इसी बैठक में मिनिमम वेज एडवाइजरी कमेटी का गठन हुआ था. करीब दस महीने में इस कमेटी की मात्र एक बार ही बैठक हुई है. स्वाभाविक तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि न तो राज्य सरकार और न ही चाय बागान मालिक चाय श्रमिकों की समस्या को लेकर गंभीर हैं.