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तराई-डुआर्स में मिसाल बना रायपुर चाय बागान

जलपाईगुड़ी : एक कहानी है जिसमें धीरे चलनेवाला कछुआ ही अंत में दौड़ जीत जाता है. तराई-डुआर्स के बंद एवं ठप पड़े चाय बागानों को उसी कछुए की तरह जीत का रास्ता दिखा रहा है जलपाईगुड़ी का रायपुर चाय बागान. जब एक के बाद एक चाय बागान बंद हो रहे हैं, तब एक बंद बागान […]

जलपाईगुड़ी : एक कहानी है जिसमें धीरे चलनेवाला कछुआ ही अंत में दौड़ जीत जाता है. तराई-डुआर्स के बंद एवं ठप पड़े चाय बागानों को उसी कछुए की तरह जीत का रास्ता दिखा रहा है जलपाईगुड़ी का रायपुर चाय बागान. जब एक के बाद एक चाय बागान बंद हो रहे हैं, तब एक बंद बागान को किस प्रकार पटरी पर लाया जाता है, यह रास्ता दिखा रहा है रायपुर चाय बागान प्रबंधन. यहां के श्रमिकों का बकाया पीएफ, बोनस का भुगतान कर दिया गया है.
यही नहीं, पिछले 13 वर्षों से बंद पड़ी फैक्टरी आगामी मार्च महीने के प्रथम सप्ताह से शुरू होने जा रहा है. देर से ही सही, लेकिन एक नीति के तहत बागान को फिर से चालू किये जाने के साथ ही बागान श्रमिकों की सुविधाओं का भी ध्यान रखा गया है. फैक्टरी चालू होने पर लाभांश का एक हिस्सा बागान को सुदृढ़ करने में लगाया जायेगा.
वर्ष 2002 के अक्तूबर महीने से अमृतपुर टी कंपनी के अधीन रायपुर चाय बागान बंद पड़ा हुआ था. उस समय बागान के बहुत से श्रमिक भूख से मारे भी गये. अधिकांश श्रमिक काम की तलाश में बागान छोड़कर अन्य राज्य चले गये. हालात संभालने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार एवं जलपाईगुड़ी जिला प्रशासन के तत्वाधान में रायपुर बागान में ऑपरेटिंग मैनेजमेंट कमिटी का गठन कर बागान सौंप दिया गया था. लेकिन कमिटी सही से बागान नहीं चला पायी.
इसके बाद श्रमिकों की ओर से बागान खोलने की मांग की गयी. लगातार सात वर्ष बागान बंद रहने के बाद वर्ष 2009 में राम मोहन साहा के नेतृत्व में रायपुर चाय बागान वापस खोला गया. 2009 से वर्ष 2013 के अगस्त महीने तक बागान चलने के बाद फिर से बागान दस महीने के लिये बंद हो गया. इसके बाद फिर वर्ष 2014 के जुलाई माह में रमन गुरू शंकर के नेतृत्व में बागान खुला.
तराई-डुआर्स मिलाकर वर्तमान में कुल आठ चाय बागान बंद हैं. इसके अलावा 14 चाय बागान ठप पड़े हैं. इन सारे बागानों में लगातार श्रमिकों की मौत जारी है. ऐसी परिस्थिति में रायपुर चाय बागान के नये मालिक ने रायपुर चाय बागान का चेहरा काफी हद तक बदल दिया है.
रायपुर चाय बागान के प्रबंधक चरनप्रीत कुन्दन ने बताया कि वे लोग धीरे चलने वाली नीति पर विश्वास करते हैं. श्री कुन्दन ने कहा कि कछुआ धीरे चलता जरूर है, लेकिन दौड़ अंत में वही जीतता है.
उन्होंने बताया कि रायपुर बागान में 581 श्रमिक हैं. इन सभी का बकाया पीएफ का भुगतान कर दिया गया है. श्रमिकों को बोनस भी दिया जा रहा है. इसके अलावा मालिक पक्ष की ओर से प्रत्येक श्रमिक का जीवन बीमा कराने के साथ ही बागान में एक स्थायी चिकित्सक की नियुक्ति करने का भी निर्णय लिया गया है.
प्रबंधक के अनुसार रायपुर चाय बागान के 826 एकड़ जमीन में से 600 एकड़ जमीन पर चाय बागान है. पिछले वर्ष रायपुर चाय बागान से साढ़े चार लाख किलो कच्ची चायपत्ती का उत्पादन हुआ है.
उत्पादन बढ़ाने के लिए नये पौधे लगाने का निर्णय लिया गया है. लेकिन उससे पहले फैक्टरी की अवस्था सुधारने का फैसला किया गया है. बागान मालिक पक्ष बागान की फैक्टरी को अविलंब खोलना चाहते हैं. फैक्टरी खोलने के लिये सभी तैयारिया पूरी हो चुकी हैं. मार्च के प्रथम सप्ताह में ही फैक्टरी चालू कर दिया जायेगा. राज्य में हरी पत्ती की मांग के साथ मूल्य भी अधिक होने की वजह से फैक्टरी में हरी पत्ती का उत्पादन शुरू किया जायेगा. लाभांस का एक अंश बागान को सुदृढ़ करने में लगाया जायेगा.

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