चन्देश्वर दास जब बालिक हुआ तब रेलवे अपने वादे से मुकर गई. चन्देश्वर दास वर्तमान में सिलीगुड़ी में हैदरपाड़ा के शरदचन्द्रपल्ली में स्थित अपने ससुराल में पत्नी तथा दो बच्चों के साथ रहता है. उसने बताया कि यह घटना 19 मार्च, 1978 की है. उसके पिता न्यू दोमोहानी रेलवे स्टेशन पर ग्रुप डी के कर्मचारी के रूप में गैंगमैन का काम करते थे. उस दिन सुबह छह बजे एक कुत्ते को लेकर उनके पिता न्यू दोमोहानी स्टेशन के नजदीक एक रेलवे क्रासिंग से गुजर रहे थे. उनके साथ वह भी था. इस रेलवे क्रासिंग पर कोई गेट नहीं था. दोनों जब गुजर रहे थे तभी अप लाइन पर रेलवे पटरी के बीच लोहे का हुक लगा हुआ दोनों ने देखा. अगर उस दौरान कोई ट्रेन गुजरती, तो बड़ी दुर्घटना हो सकती थी. उसके पिता हुक को देखते ही समझ गये कि यह ट्रेन को दुर्घटनाग्रस्त करने की साजिश है. उनके पिता हेंगा दास तब 45 वर्ष के थे. उन्होंने घड़ी देखी और बताया कि यह कामरूप एक्सप्रेस ट्रेन के आने का वक्त है.
बड़ी दुर्घटना की आशंका से उनके पिता परेशान हो गये. फिर भी उन्होंने सूझ-बूझ का परिचय दिया. उस समय उनके पास फॉग सिगनल के रूप में काम आने वाले पटाखे थे. इन पटाखों की मदद से आपातकालीन स्थिति में ट्रेन को रोकना संभव होता है. ठंड के दिन में कोहरे के समय इस प्रकार के फॉग सिगनल का उपयोग होता है. यदि ट्रेन अचानक रोकनी हो तो इस पटाखे को 100 मीटर रेल पटरी पर कई जगह लगा दिया जाता है. जब ट्रेन आती है, तो पटाखे फट जाते हैं. इससे ड्राइवर ट्रेन को तत्काल रोक देता है. उस दिन भी उनके पिता ने कुछ ऐसा ही किया. पिता के इस काम में तब उन्होंने भी मदद की थी. पिता ने उन्हें पास के एक घर से कोई भी लाल कपड़ा लेकर आने के लिए कहा था. वह लाल कपड़ा ले आये थे. उसके बाद दोनों लाल कपड़ा लेकर रेल पटरी पर खड़े हो गये. कामरूप एक्सप्रेस आयी और रूक गई. इस तरह से एक बड़ी दुर्घटना टल गई. उसके बाद रेलवे अधिकारियों ने उनके पिता हेंगा दास का मेडल आदि से सम्मानित किया था. तब रेलवे ने पुरस्कार के रूप में उनके पिता को 100 रुपये भी दिये थे.
चन्देश्वर दास ने आगे कहा कि उस समय रेलवे अधिकारियों ने बड़े होने पर उनको भी नौकरी देने का वादा किया था. 18 वर्ष के होने के बाद से ही वह रेलवे में नौकरी पाने की आस में दर-दर ठोकरे खा रहे हैं. अब तक कई नेताओं एवं मंत्रियों से मिल चुके हैं, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ है. रेलवे अधिकारी तो उनकी बात भी नहीं सुनते. एनडीए सरकार में जब ममता बनर्जी रेल मंत्री थी, तब भी उन्होंने नौकरी की आस में उनसे गुहार लगायी थी. इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने रेलवे से अपने वादे को पूरे करने की मांग की है.