पार्टी ने दिग्गज क्षीति गोस्वामी को टिकट दिया था. वह कांग्रेस के देव प्रसाद राय से करीब सात हजार वोट से हार गये थे. इस बार वाम मोरचा ने इस सीट पर कांग्रेस का समर्थन किया है. आरएसपी ने इस पर नाराजगी जतायी है. निर्मल दास चार बार विधानसभा चुनाव जीतने की दुहाई देकर ही वह मैदान में डटे हुए हैं. उनका साफ-साफ कहना है कि वह किसी भी कीमत पर चुनाव मैदान से नहीं हटेंगे. दूसरी तरफ वर्ष 2011 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस की जीत हुई थी, इसलिए यहां स्वाभाविक रूप से कांग्रेस का ही दावा बनता है. यही वजह है कि कांग्रेस की ओर से विश्वरंजन सरकार मैदान में हैं.
इसके अलावा भाजपा की ओर से कुशल चटर्जी भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गठबंधन में दरार का लाभ सीधे तौर पर तृणमूल कांग्रेस के सौरभ चक्रवर्ती को मिलेगा. सौरभ चक्रवर्ती भी कभी कांग्रेसी थे. दो वर्ष पहले ही वह तृणमूल में शामिल हुए हैं. वह पार्टी सुप्रीमो तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काफी विश्वासपात्र हैं. वह तृणमूल कांग्रेस के जलपाईगुड़ी जिले के साथ ही नवगठित अलीपुरद्वार जिले के भी अध्यक्ष हैं. तृणमूल में उनका जलवा इतना अधिक है कि वह बगैर विधायक बने ही पहले से ही कई महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैं. ममता बनर्जी ने उत्तर बंगाल विकास मंत्री गौतम देव को हटाकर उन्हें एनबीएसटीसी का चेयरमैन बनाया है. इसके साथ ही वह ग्रामीण बैंक के भी चेयरमैन हैं. वह दिन-रात चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. उनका कहना है कि राज्य के लोग ममता बनर्जी के साथ हैं. अलीपुरद्वार से उन्होंने जीत का दावा किया है. अलीपुरद्वार विधानसभा सीट का गठन नगरपालिका क्षेत्र के अलावा बंचुकमारी, चाकवाखेती, पोरोलपार, पतलाखावा, सालकुमार-1 तथा 2, तप्सीकांटा, विवेकानंद-1 तथा 2, चापोरेरपार-1 तथा 2 तथा टाटपाड़ा-2 ग्राम पंचायत को लेकर हुआ है. यह विधानसभा सीट अलीपुरद्वार लोकसभा सीट के अधीन है. 1951 से लेकर अब तक इस सीट से कांग्रेस अथवा आरएसपी की जीत होती रही है. 1977 से लेकर 2006 तक इस सीट पर आरएसपी का कब्जा था. 2011 में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने इस सीट पर सेंध लगा दी. तब कांग्रेस के देव प्रसाद राय ने तत्कालीन वाम मोरचा सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे क्षीति गोस्वामी को हरा दिया था. तब भाजपा उम्मीदवार माणिकचंद साहा 8238 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे.