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सिलीगुड़ी: खुलेआम जारी है बाल मजदूरी

सिलीगुड़ी: प्रशासन की नाक के नीचे बाल मजदूरी का गोरख धंधा चल रहा है और प्रशासन आंख पर पट्टी बांध कर बैठी है. सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नरेट के अंतर्गत कई जगहों, होटलों, गली मुहल्ले के नुक्कड़ों पर लगी फास्ट फूड की दुकानों पर बाल श्रम को देखने के बाद भी प्रशासन मूक है. संविधान का उल्लंघन […]

सिलीगुड़ी: प्रशासन की नाक के नीचे बाल मजदूरी का गोरख धंधा चल रहा है और प्रशासन आंख पर पट्टी बांध कर बैठी है. सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नरेट के अंतर्गत कई जगहों, होटलों, गली मुहल्ले के नुक्कड़ों पर लगी फास्ट फूड की दुकानों पर बाल श्रम को देखने के बाद भी प्रशासन मूक है. संविधान का उल्लंघन कर रहे इन दुकानदारों व व्यवसायियों के खिलाफ प्रशासन कोई कदम नहीं उठा रहा है. इसके अलावा दार्जिलिंग जिले में सरकारी होम की भी समस्या है.
बाल श्रम के विरूद्ध प्रशासन की ओर से बड़े-बड़ दावे किये जाते हैं,लेकिन स्थिति इसके बिल्कुल उलट है़ सोमवार को सिलीगुड़ी में एक भयावह अग्निकांड में दो बाल श्रमिकों की मौत के बाद सिलीगुड़ी नगर निगम से लेकर जिला प्रशासन तक हिल गया है. कहने के लिये तो काफी गैर सरकारी संस्थाएं हैं जो इन बच्चों के लिये काम करती है. सरकार की ओर से इन्हें अच्छी-खासी राशि भी मुहैया करायी जाती है. काम के नाम पर प्रशासन की तरह ये भी ढीले दिख रहे हैं. भारतीय कानून में बाल मजदूरी एक दंडनीय अपराध है.

इसके बाद भी यह अपराध खुले आम हो रहा है. इस पर अंकुश लगाने के लिये रोड मैप भी तैयार किया जा चुका है, लेकिन सबकुछ फाईलों में ही बंद है. बाल मजदूरी को रोकने के लिये सरकार ने अलग से विभाग बनाया हुआ है. इसके तहत इलाके में अधिकारियों की नियुक्ति होती है, लेकिन ये अधिकारी फील्ड में दिखाई नहीं पड़ते है. बच्चों को काम पर रखने से मालिकों को सहसे बड़ा फायदा यह है कि उन्हें अधिक मजदूरी नहीं देनी पड़ती है. अन्य राज्य या दूर-दराज से के बच्चों को काम पर रखने से चौकीदारी की समस्या भी हल हो जाती है. दो वख्त का भोजन और कुछ रूपये देकर मालकि इनसे काफी काम लेते हैं. काम में थोड़ी सी गलती होने पर इन बाल मजदूरों की मालिकों द्वार पिटायी की जाती है है. गालियां और मार खाना इन बच्चों की तकदीर बन जाती है.

समाजसेवी सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि सोमवार की घटना दिल दहला देने वाली है. उन्होंने बताया कि सरकार ने बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के लिये बाल श्रम अधिकारी को नियुक्त किया हुआ है. नगर निगम या महकमा परिषद की ओर से दिये जाने वाले ट्रेड लाइसेंस में साफ तौर पर उल्लेख किया हुआ है कि बाल श्रम गैरकानूनी है. इसके अतिरिक्त बाल श्रम का मामला पाये जाने पर लाईसेंस रद्द कर दिया जायेगा. इसके बाद भी यह गोरखधंधा खुले आम हो रहा है और इस अपराध को रोकने वाले लोग कानो में रूई व आखों पर पट्टी बांध कर बैठे हैं.
सिलीगुड़ी की इस घटना ने गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं. हांलाकि चाइल्ड इन नीड इंस्टीच्यूशन(सिनी) नामक गैर सरकारी संस्था के सिलीगुड़ी यूनिट प्रमुख शेखर साहा ने जिले में सरकारी होम ना होने को एक गंभीर समस्या बताया है. उन्होंने कहा कि बाल मजदूरों को बरामद तो किया जाता है लेकिन उनके लिये होम की व्यवस्था नहीं है. इस घटना को काफी दर्दनाक बताते हुए उन्होंने कहा कि बाल श्रम के खिलाफ लगातार अभियान के बाद भी इस तरह की घटना सामने आ रही है. अभी और भी चाक चौबंद होने की जरूरत है.
डीएम ने कहा कड़ी कार्रवाई होगी
दार्जिलिंग के जिला शासक अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि इस घटना से काफी मर्माहत हैं. दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही होगी. उन्होंने कहा कि सरकारी होम के लिये जगह की पहचान कर उसकार ब्यौरा संबंधित मंत्रालय को भेज दिया गया है. अतिशीघ्र ही जिले में होम की व्यवस्था कर दी जायेगी. उन्होंने कहा बाल श्रम के खिलाफ प्रशासन पहले भी सजग थी. कइ बार अभियान चलाकर बाल श्रमिकों को दलदल से निकाला गया है.आगे भी हम अपना अभियान चलाते रहेंगे.
सरकारी होम ना होना बड़ी समस्या: पुलिस कमिश्नर
सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नर मनोज वर्मा ने कहा कि आरोपों के आधार पर बचाव अभियान चलाये जाते हैं. जिसमें कई बच्चों को बचाया भी गया है. बच्चों को रखने के लिए सरकारी होम की ही समस्या है. बचाये गये बच्चों को जलपाईगुड़ी जिले के होम में भेजना पड़ता है. प्रशासन इस अपराध के विरूद्ध पहले से ही सजग है. इस घटना की जांच की जा रही है.
क्या है मामला: सोमवार को सिलीगुड़ी के मुख्य सड़कों में से एक सेवक रोड इलाके में बहुत ही दर्दनाक तरीके से दो बाल मजदूरों की मौत हो गयी. होटल मालिक रोजाना की तरह रात में दोनों को होटल में बंद कर चला गया था. अचानक लगी आग में वे दोनों बाहर तक नहीं निकल पाये़ बेचारे उसी आग में झुलस कर स्वाहा हो गये. होटल मालिक अब तक पुलिस की पकड़ से दूर है.

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