सिलीगुड़ी: देश के लिए कुरबान बीएसएफ के जवान दिनेश गिरि (40) की शहादत पर पूरे परिवार को गर्व है. दिनेश बीएसएफ में हवलदार के पद पर जम्मू-कश्मीर में कार्यरत थे. तीन जून यानी शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से 50 किमी दूर अनंतनाग जिला अंतर्गत गोरीवान इलाके के बिजबेहरा बाजार के निकट आतंकी मुठभेड़ में दिनेश शहीद हो गया.
पांच जून यानी रविवार को सिलीगुड़ी में उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया. यहां श्मशान रामघाट में बड़े लड़के ने पिता को मुखाग्नि दी. घटना के छह दिन बीत जाने के बावजूद सिलीगुड़ी के 40 नंबर वार्ड के दुर्गा नगर स्थित दिनेश के घर में मातम छाया हुआ है और पूरे इलाके में शोक है. वहीं, मां-बाप और पत्नी की आंखों गर्व के आंसू से भरे हैं. मां उर्मिला देवी, पिता राम इकबार गिरि और पत्नी सरिता को दिनेश का अब इस दुनिया में न होने का जितना अफसोस है उतना ही गर्व भी है.
दिनेश के न होने की बात पर राम इकबाल के 65 वर्षीय बूढ़ी आंखों से आंसू जरूर छलक पड़ते हैं वहीं, देश की रक्षा के लिए बेटे के शहादत की बात सोचकर सीना गर्व से चौड़ा हो उठता है. उनका कहना है कि भारत मां की रक्षा के लिए मेरे बहादुर लड़के ने लड़ते-लड़ते कुरबानी दी, यह मेरे लिए गर्व की बात है. लेकिन, अफसोस है कि वह मेरा ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए मुख्य सहारा भी था. राम इकबाल के पांच बेटे-बेटियों में दिनेश सबसे बड़ा लड़का, उससे बड़ी एक बेटी निर्मला, छोटे लड़कों में विनोद, कमलेश व संतोष है. दिनेश के अलावा उसके छोटे तीनों भाई सिलीगुड़ी में ही प्राइवेट फर्म में नौकरी करते हैं.
65 वर्षीय राम इकबाल में अब काम करने की शारीरिक क्षमता नहीं रही. उन्होंने बताया कि उनके परिवार का बिहार के सीतामढ़ी जिला (अब शिवहर जिला) के बैदोल आदम गांव से मुख्य रूप से ताल्लूकात है. उन्होंने बताया कि वह अपने पूरे परिवार के साथ सिलीगुड़ी 1969 में आकर बस गये. इसबीच एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी सिलीगुड़ी का कोई प्रशासनिक अधिकारी शहीद के परिवार वालों के दुख में शरीक नहीं होने आया है. इतना ही नहीं शहीद के अंतिम सरकार में शामिल होने के लिए बिहार से सिलीगुड़ी आ रहे परिवार को बागडोगरा पुलिस द्वार कई घंटों तक रोके रखने और अवैध वसूली की बात सामने आने के बाद भी अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं. यही स्थिति नेता और मंत्रियों की भी है.
अबतक कोई मंत्री या नेता भी शहीद के घर नहीं पहुंचा है. दिनेश की शहादत पर जहां पूरा देश सलाम ठोंक रहा है वहीं बंगाल के मंत्रियों, सिलीगुड़ी के मेयर अशोक भट्टाचार्य, जिला अधिकारी (डीएम), एसडीओ जैसे स्थानीय प्रशासन की बेरुखी से भी पूरा परिवार खफा है. दिनेश के पिता राम इकबाल, साला नवनीत कुमार का कहना है कि आतंकी मुठभेड़ में दिनेश के अलावा बीएसएफ के और दो जवान शहीद हुए. एक बिहार के ही पटना और दूसरा उत्तर प्रदेश का रहनेवाला था. दोनों को जब उनके पैतृक गांवों में दाह संस्कार किया जा रहा था, उस दौरान उन राज्यों के मुख्यमंत्री, अन्य मंत्री के अलावा आलाधिकारी भी बड़ी संख्या में शहीद जवान के परिवार के साथ खड़े थे. लेकिन यहां दिनेश के दाह-संस्कार में बीएसएफ के आलाधिकारी के अलावा न तो कोई मंत्री आया और न न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी. यहां तक की अभी तक कोई मुलाकात करने या सांत्वना देने भी भी कोई नहीं आया.
दिनेश की मौत पर पत्नी को विश्वास नहीं
दिनेश की मौत पर पत्नी सरिता को कतई विश्वास नहीं है. शहादत की खबर सुनने के बाद से ही पूरी तरह सदमे में है. उसने खाना-पीना छोड़ दिया है. किसी से बात तक करने की स्थिति में वह नहीं है. पति के वियोग में उसका फूल चेहरा मुरझा गया है. सरिता के भाई व दिनेश के साले नवनीत ने बताया कि दिनेश अभी हाल में ही छुट्टी बीता कर जम्मू-कश्मीर ड्यूटी पर लौटा था. दिनेश के ड्यूटी पर जाने के बाद सरिता भी अपने दोनों लड़कों के साथ दो जून यानी गुरुवार को मधुबनी अपने मायके आयी थी.
दिनेश का बड़ा लड़का भी बनेगा फौजी
दिनेश का बड़ा लड़का रविकांत भी फौजी बनने का सपना पाले हुए है. उसने इसी वर्ष बीएसएफ स्कूल से माध्यमिक की परीक्षा पास की है. वह फौज में बड़े अधिकारी के तौर भरती होने के लिए नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) की तैयारी में लग चुका है. उसका कहना है कि वह फौज में भरती होकर पापा के अधूरे सपनों को पूरा करेगा.
दिनेश को बचपन से ही था देशभक्ति का शौक
राम इकबाल ने बताया कि दिनेश को बचपन से ही देशभक्ति का शौक था. उसने फौज में जाने का सपना संजो रखा था. उसका शौक व सपना 1992 में पूरा हुआ. वह बीएसएफ में भरती हो गया. देश के विभिन्न सीमाओं पर उसने ड्यूटी की. वर्ष 1998 में बिहार के मुधबनी जिला के उचैत दुर्गास्थान की रहनेवाली सरिता के साथ वह परिणय सूत्र में बंध गया. उसके दो लड़के रविकांत और रोहन हैं.