रचा इतिहास: गांव वालों ने अपने दम पर दो गांवों को किया चकाचक

कालिम्पोंग. नये जिले के रूप में कालिम्पोंग को अभी भी कानूनी मान्यता नहीं मिली है. हाईकोर्ट के निर्णय के बाद ही इस पर कोई फैसला होगा. लेकिन एक बार जिला बन जाने के बाद कालिम्पोंग की गिनती भी बड़े शहरों में होने लगेगी. हालांकि अभी यह शहर बड़े शहरों के मुकाबले काफी छोटा है. यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2016 7:48 AM
कालिम्पोंग. नये जिले के रूप में कालिम्पोंग को अभी भी कानूनी मान्यता नहीं मिली है. हाईकोर्ट के निर्णय के बाद ही इस पर कोई फैसला होगा. लेकिन एक बार जिला बन जाने के बाद कालिम्पोंग की गिनती भी बड़े शहरों में होने लगेगी. हालांकि अभी यह शहर बड़े शहरों के मुकाबले काफी छोटा है.

यह अलग बात है कि राज्य सरकार ने इस छोटे शहर को ही जिला बनाने की घोषणा कर दी है. बहरहाल, अब तक बड़े शहरों के लोगों ने जो नहीं किया है, वह कालिम्पोंग के कुछ इलाकों के लोगों ने कर दिखाया है. कालिम्पोंग के गोरूबथान के निकट दुर्गम पहाड़ी गांव तादे-तांगता तथा पाटन-गादेक को स्थानीय लोगों ने प्लास्टिक मुक्त साफ-सुथरा गांव बना दिया है. इस ग्राम के पंचायत अधिकारी तथा स्वनिर्भर समूह की महिलाओं द्वारा यह कारनामा कर दिखाया गया है. इस बात की औपचारिक घोषणा एक अक्टृबर को की जायेगी. यहां उल्लेखनीय है कि पहाड़ पर ग्राम पंचायत तो है लेकिन चुनाव नहीं होने की वजह से कहीं भी पंचायत बोर्ड नहीं है. पंचायतों का काम-काज सरकारी कर्मचारी, पंचायत एक्जक्यूटिव की सहायता से चलता है. डुवार्स के खुनियामोड़ से जलढाका, झालंग तथा नक्सल होकर इन दोनों दुर्गम पहाड़ी गांवों में पहुंचा जा सकता है. इस गांव के स्वनिर्भर समूह के कॉर्डिनेटर विनफ्रेड लेप्चा का कहना है कि इन दोनों गांवों में करीब 15 हजार लोग रहते हैं. यहां पर्यटन का कारोबार लगभग नहीं के बराबर है.

इलायची की खेती तथा झाड़ू बनाकर यहां के लोग अपनी जीविका चलाते हैं. कालिम्पोंग के अन्य ब्लॉकों के गांवों के मुकाबले इन दोनों गांवों में विकास भी कम हुआ है. हालांकि दुकान और बाजार आदि हैं. उन्होंने कहा कि शीघ्र ही कालिम्पोंग नया जिला बन जायेगा. उसके बाद ढांचागत सुविधाओं के विकास के लिए राज्य सरकार कई योजनाओं की शुरूआत करेगी. इन दोनों गांवों के लोग राज्य सरकार की योजना की आस में नहीं बैठे हैं. साफ-सफाई को लेकर यहां के लोग काफी जागरूक हैं. यही वजह है कि इन दोनों गांवों में क्लीन ऐंड ग्रिन योजना की शुरूआत स्थानीय लोगों ने की है. दोनों गांवों की साफ-सफाई काफी बेहतर है तथा प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है. इधर, झालंग पार करते ही जैसे आप पाटन-गादक गांव की ओर बढ़ेंगे, साफ-सफाई दिखने लगेगी. सड़क के दोनों ओर विभिन्न स्थानों पर यूज मी लिखा हुआ डस्टबीन लगाये गये हैं. चींगसा, तोदे एवं तांगता आदि इलाकों में भी रास्ते के किनारे इस तरह के डस्टबीन मिलेंगे. स्वनिर्भर समूह के एक सदस्य टिका गुरूंग का कहना है कि स्थानीय महिलाओं ने चंदा कर डस्टबीन को विभिन्न स्थानों पर लगाया है. दोनों पंचायत इलाके में 100 से भी अधिक डस्टबीन लगाये गये हैं. शाम को इन डस्टबीनों से कचरे निकाले जाते हैं. इस इलाके में ट्रैकिंग पर निकले एक व्यक्ति छीरिंग डुकपा ने बताया है कि यहां प्लास्टिक के उपयोग पर रोक है, जो एक प्रशंसनीय पहल है.

आम लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है. इधर, पाटन-गादक तथा तोदे-तांगता ग्राम पंचायत के एक्जक्यूटिव अस्सिटेंट फ्रांसिस जेबियर राई का कहना है कि स्वनिर्भर समूह की महिलाएं कमाल का काम कर रही हैं. सिर्फ सड़कों पर ही नहीं, बल्कि हरेक घर में डस्टबीन दिये जा रहे हैं. 30 से 40 रुपये लेकर हर घर में डस्टबीन दिया गया है. कचरे का प्रबंधन भी वैज्ञानिक तरीके से किया जा रहा है. तृणमूल के स्थानीय नेता वांगदी भुटिया का कहना है कि मुख्यमंत्री कालिम्पोंग दौरे पर आ रही हैं.

उम्मीद है कि नये जिले की घोषणा भी होगी. वह चाहते हैं कि सरकारी स्तर पर महिलाओं के इस पहल की सहायता की जाये. इधर, स्थानीय लोग सरकार से किसी भी प्रकार की सहायता की उम्मीद नहीं कर रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि वह लोग अपने गांवों को साफ-सुथरा देखना चाहते हैं. इसी से इस पहल की शुरूआत की गई है. सरकार सहायता करे या नहीं, इससे कोई सरोकार नहीं है. वह लोग बस इतना चाहते हैं कि कालिम्पोंग आने के बाद राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस गांव को भी देखें.

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