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मालदा पहुंचा चीनी सामान के बहिष्कार की लहर

मालदा. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये स्वदेशी आंदोलन की हवा फिर से बह चली है. पिछले दिनों उड़ी में भारतीय सैनिकों पर हमले के बाद से सोशल नेटवर्किंग साइटों पर चीन निर्मित वस्तुओं के उपयोग के खिलाफ अभियान शुरू हुआ था. इस अभियान की लहर अब मालदा भी पहुंच गयी है. दीपावली से पहले […]

मालदा. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये स्वदेशी आंदोलन की हवा फिर से बह चली है. पिछले दिनों उड़ी में भारतीय सैनिकों पर हमले के बाद से सोशल नेटवर्किंग साइटों पर चीन निर्मित वस्तुओं के उपयोग के खिलाफ अभियान शुरू हुआ था. इस अभियान की लहर अब मालदा भी पहुंच गयी है. दीपावली से पहले इस अभियान से स्थानीय कुम्हारों व शिल्पियों के मुख पर प्रसन्नता आ गयी है.
दीपावली को लेकर चांचल महकमा के कुम्हार पाड़ा के कुम्हार रात-दिन एक कर मिट्टी के दीये, कलश व अन्य वस्तुएं तैयार कर रहे हैं. कुम्हार उम्मीद लगाये हैं कि इस बार की दीपावली में मिट्टी की वस्तुओं की मांग अधिक होगी. इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा कुम्हारों को भत्ता व राहत सामग्री मुहैया कराये जाने से इनलोगों में इस काम के प्रति आकर्षण बढ़ा है.
कुम्हारों का कहना है कि वे लोग ऑफ सीजन में दूसरे कामों में लगे रहते हैं. लेकिन उत्सव का सीजन शुरू होते ही पूरा परिवार मिट्टी की वस्तुएं बनाने के काम में जुट जाता है. इस बार चीन निर्मित एलइडी बल्ब, झालर, सजावटी लाइटों आदि का प्रयोग ना किये जाने का जो प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया पर चल रहा है, उससे इस वर्ष मिट्टी से बनी वस्तुओं की मांग अधिक होने की संभावना है. चांचल महकमा के रतुआ-1 नंबर ब्लॉक के सामसी, देवीपुर, चांचल-1 नंबर ब्लॉक के पाड़ापुर, आठघड़ा, हरिश्चंद्रपुर-2 नंबर ब्लॉक के फतेपुर, भालुका गांव के सैकड़ो कुम्हार मिट्टी के दीये, कलश आदि वस्तुएं तैयार कर रहे हैं.
चांचल के पहाड़पुर गांव निवासी कुम्हार देबू पाल, सूरज पाल, रंजन पाल व अन्य का कहना है कि मिट्टी की वस्तुओं की मांग में कमी आने से धीरे-धीरे कारीगर इस पेशे से अपना मुंह मोड़ने लगे थे. कई ने तो इस पेशे को छोड़कर अन्य रोजगार को अपना लिया है. लेकिन राज्य की तृणमूल सरकार ने सत्ता में आते ही कुम्हारों को भत्ता, राहत सामग्री आदि मुहैया कराने के बाद फिर से कारीगर इस पेशे के साथ जुड़ रहे हैं. सरकारी इस उद्योग को जीवित रखने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन बाजार में चाइनीज लाइटों का बढ़ती मांग इस उद्योग का विनाश करने पर तुली हुई है. देश के नागरिक यदि कुम्हारों के प्रति थोड़ी संवेदना प्रकट दिखायें, तो मिट्टी से बनी वस्तुओं की मांग काफी बढ़ जायेगी. चांचल के महकमा शासक पुष्पक राय ने बताया कि विभिन्न कुम्हारों के आवेदन पर ब्लॉक व पंचायत प्रशासन कुम्हारों का भत्ता और राहत सामग्री मुहैया कराने की तैयारी में जुट गया है. राज्य सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन भी इस उद्योग को बचाये रखना चाहता है. चाइनीज वस्तुओं के बदले मिट्टी की वस्तुओं की मांग बढ़ने की संभावना जतायी जा रही है. प्रशासन कुम्हारों को हर संभव सहायता करने को तैयार है.
चीनी सामान का आकर्षण घटा
इस वर्ष कुछ अंतरराष्ट्रीय घटनाओं ने देशवासियों के मन में चीनी वस्तुओं के प्रति आकर्षण को काफी कम किया है. सोशल मीडिया पर स्वदेशी आंदोलन पर चर्चा जारी है. लोग एक-दूसरे से चीनी वस्तुओं का उपयोग बंद करने की गुजारिश कर रहे हैं. इस घटना से कुम्हार समाज काफी खुश है. इससे मिट्टी की वस्तुओं की मांग बढ़ने की भी आस है. दुर्गापूजा के पहले से दीये आदि बनाने का कार्य शुरू कर दिया गया है. एक-एक कुम्हार 25 से 30 हजार दीये तैयार कर रहा है. आशा है कि इस बार प्रति दर्जन दीये की कीमत 50 से 60 रुपये होगी.

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