संतरा बाजार में हाहाकार
सिलीगुड़ी. पुराने 500 एवं 1000 रुपये के नोटबंदी का असर करीब एक सप्ताह बाद देखने को मिलने लगा है. इस योजना से काला धन को रोक पाने में कहां तक कामयाबी मिली है, इसका पता तो बाद में चलेगा, लेकिन फिलहाल सरकार के इस फैसले में सिलीगुड़ी के संतरा बाजार की आर्थिक स्थिति को खस्ताहाल […]
सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट के लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, ठंड के शुरू होते ही पहाड़ से बड़े पैमाने पर नारंगी की आवक शुरू हो जाती है. दार्जिलिंग चाय जिस तरह से मशहूर है उसी तरह से दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में उत्पादित संतरा की भी अपनी एक अलग पहचान है. आम तौर पर संतरे का सबसे अधिक उत्पादन महाराष्ट्र के नागपुर इलाके में होता है और सिलीगुड़ी में भी नागपुर से भारी मात्रा में संतरे आते हैं. उसके बाद भी पहाड़ के संतरे की बात ही कुछ और है. माना जाता है कि पहाड़ के संतरे की मिठास काफी अधिक होती है. यही वजह है कि यहां के संतरे की मांग बांग्लादेश तथा नेपाल में भी काफी अधिक है. लेकिन सरकार के नोटबंदी का सीधा असर संतरा उद्योग पर पड़ा है. पहाड़ से सिलीगुड़ी में संतरे की आवक लगभग नहीं के बराबर हो रही है.
जाड़े के मौसम में प्रतिदिन करीब 100 ट्रक संतरे की आवक सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में होती थी. अब यह संख्या घटकर मात्र दो से तीन ट्रकों की रह गई है. सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में न केवल संतरा कारोबारी, बल्कि इस काम से जुड़े मजदूर, ट्रक चालक एवं मालिक हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं. रेगुलेटेड मार्केट में ट्रक लेकर खड़े एक चालक श्रवण साहा ने बताया है कि आठ दिन हो गये हैं और ट्रक का चक्का नहीं घुमा है. जाड़े के मौसम में वह लोग आम तौर पर पहाड़ के विभिन्न स्थानों से संतरा लेकर सिलीगुड़ी आते थे. आठ दिन से पहाड़ का रूख किया ही नहीं. दरअसल इसके पीछे सबसे बड़ी समस्या नगदी को लेकर है. सिलीगुड़ी के प्रमुख संतरा कारोबारी रंजीत प्रसाद ने बताया है कि यदि सात-आठ दिनों में स्थिति नहीं सुधरी, तो न केवल कारोबारी, बल्कि किसानों की भी कमर पूरी तरह से टूट जायेगी. यह संतरे के पकने का मौसम है. छह से सात दिनों के बाद संतरे गिरकर सड़ने लगेंगे. इसका लाभ किसी को नहीं होगा.