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..जहां समाज सेवा के बिना दाखिला नहीं होता!

सिलीगुड़ी: भारतीय शिक्षा व्यवस्था अंक पर आधारित है. यहां के बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेना हो, तो पहले अंक देखते है. वह नहीं देखते छात्र क्या है? उसने अब तक कोई सामाजिक कार्य किया है. हमारे यहां समाज-सेवा बुढ़े-बुजुर्ग, सेवानिवृत्त लोगों का काम समझा जाता है. साठ के बाद स्वर्ग में जाने का यही […]

सिलीगुड़ी: भारतीय शिक्षा व्यवस्था अंक पर आधारित है. यहां के बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेना हो, तो पहले अंक देखते है. वह नहीं देखते छात्र क्या है? उसने अब तक कोई सामाजिक कार्य किया है. हमारे यहां समाज-सेवा बुढ़े-बुजुर्ग, सेवानिवृत्त लोगों का काम समझा जाता है. साठ के बाद स्वर्ग में जाने का यही मार्ग है. समाज सेवा. उस समय ने आपके पास धन रहता है, न शरीर में उतनी ऊर्जा होती है(वैसे समाज में कुछ अपवाद है). समाज सेवा हमारे लिए यश व धन कमाने का अब जरिया भी बनता जा रहा है. लेकिन कोलंबिया यूनिवर्सिटी में बिना समाजेसवा कार्य के बिना छात्रों को कॉलेज में दाखिला नहीं होता. उनके लिए समाज सेवा पाठ का अंग है.

ये छात्र समाज में उतरकर शिक्षा, स्वास्थ्य, अनाथ व वृद्ध की सेवा करते है. यह केवल अंक के लिए नहीं, बल्कि आत्मिक शांति के लिए. काश! ऐसी व्यवस्था हमारे समाज में होता! हमारी शिक्षा व्यवस्था में होती! पश्चिम को दुत्कारने के जगह हमें सीखने की भी जरूरत है. उस सूप के समान जो कंकड़ -पत्थर को गिरा देता और अच्छी चीजों को अपने भीतर समेटता है.

यही हमारा दर्शन है. बतादें कि गुरूवार को सिलीगुड़ी मॉडल हाईस्कूल में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से आये थे. छात्रों के साथे इन छात्रों ने भारतीय शिक्षा पद्धति और अपने विश्वविद्यालय के विषय में बताया. स्नातक समाज विज्ञान की छात्र निकोल ने बताया कि मुझे यहां का अतिथि सत्कार अच्छा लगा. छात्र मेधावी है. हमने भारत के बारे में बहुत सुना है.

आज उसे करीब से देखने का मौका मिला है. ये छात्र एक जून तक सिलीगुड़ी में रहेंगे. इन्होंने मातृसंघ कल्याण आश्रम का भी दौरा किया. विद्यालय के प्राचार्य डॉ एसएस अग्रवाल ने बताया कि सीबीएसई के पाठ्यक्रम में भी श्रम दान का स्थान है. लेकिन यह उतना प्रभावी नहीं है. यहां बच्चों को काम करवाने या उनका श्रम लेने से अभिभावकों को ठेस लगती है. हमने इन छात्रों से बहुत कुछ जाना. वहां की शिक्षा पद्धति काफी व्यवहारिक है.

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