मांग: इमामों की तरह पुरोहितों के लिए भी मांगा भत्ता, राजवंशी भाषा एकेडमी विवादों में

जलपाईगुड़ी. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा गठित राजवंशी भाषा एकेडमी इन दिनों विवादों में घिर गया है. एकेडमी के कार्य-कलापों, हिसाब-किताब को लेकर श्वेतपत्र जारी करने के मामले में तृणमूल कांग्रेस के दो बड़े नेता आमने-सामने हैं. जलपाईगुड़ी जिला प्राथमिक विद्यालय संसद के चेयरमैन तथा तृणमूल नेता धरती मोहन राय एवं जलपाईगुड़ी के तृणमूल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 31, 2017 1:42 AM
जलपाईगुड़ी. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा गठित राजवंशी भाषा एकेडमी इन दिनों विवादों में घिर गया है. एकेडमी के कार्य-कलापों, हिसाब-किताब को लेकर श्वेतपत्र जारी करने के मामले में तृणमूल कांग्रेस के दो बड़े नेता आमने-सामने हैं. जलपाईगुड़ी जिला प्राथमिक विद्यालय संसद के चेयरमैन तथा तृणमूल नेता धरती मोहन राय एवं जलपाईगुड़ी के तृणमूल सांसद विजय चन्द्र बर्मन एक-दूसरे पर हमलावर तेवर अख्तियार किये हुए हैं. श्री बर्मन इस एकेडमी के चेयरमैन भी हैं. अलग भाषा, अलग विकास बोर्ड तथा इमामों की तरह ही राजबंशी समाज के पंडितों को मासिक भत्ता देने की मांग तृणमूल नेता धरती मोहन राय ने की है.

राजवंशी विकास बोर्ड बनाने की मांग तथा कूचबिहार राजवंशी भाषा एकेडमी के कार्य-कलापों को लेकर राजवंशी सक्रिय समिति ने राज्य सरकार के खिलाफ जेहाद की घोषणा की है. धरती मोहन राय ही इस समिति के चेयरमैन हैं. श्री राय के अधीन इस समिति ने भले ही राजवंशी भाषा की स्वीकृति की मांग की हो, लेकिन अलग से किसी राज्य की मांग नहीं की है. श्री राय ने इस संबंध में कहा कि पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, नेपाल तथा असम में राजवंशियों की संख्या दो करोड़ से भी अधिक है. लेकिन इनके लिए अब तक किसी भी विकास बोर्ड का गठन नहीं हुआ है. दूसरी तरफ गुरूंग, लेप्चा आदि जाति की जनसंख्या राजवंशियों से काफी कम है. उसके बाद भी उनके लिए विकास बोर्ड बना दिया गया है. उन्होंने कहा कि राजवंशी अब तक उपेक्षित रहे हैं, इसीलिए राजवंशियों के लिए अलग विकास बोर्ड बनाने की वह मांग कर रहे हैं. अलग विकास बोर्ड बनने से राज्य सरकार द्वारा आर्थिक सहायता दी जायेगी. जिस पैसे से राजवंशियों का विकास हो सकता है.

श्री राय ने आगे कहा कि राज्य में इमामों के लिए अलग से मासिक भत्ता देने की व्यवस्था की गई है. अब राजवंशी समुदाय के कुल-पुरोहितों को भी अलग भत्ता देना होगा. छह साल पहले राज्य की वर्तमान सरकार ने राजवंशी भाषा एकेडमी का गठन किया था. लेकिन इस एकेडमी के माध्यम से राजवंशी भाषा एवं संस्कृति की रक्षा की कोई कोशिश नहीं की जा रही है. एक तरह से इस एकेडमी के पास कोई काम-काज नहीं है.

एकेडमी के गठन के बाद से लेकर अब तक क्या काम हुआ है, इसकी वह जानकारी चेयरमैन तथा सांसद विजय चन्द्र बर्मन से मांग रहे हैं. उन्हें इसको लेकर श्वेतपत्र जारी करना चाहिए. समिति के कार्यकारी महासचिव रमेश राय ने सेना में राबंशी रेजीमेंट के गठन की भी मांग की. उन्होंने कहा कि राजवंशियों के पूज्य ठाकुर पंचानन बर्मा की जन्म तिथि पर सरकारी छुट्टी घोषित करने की भी मांग की गई है. दूसरी तरफ धरती मोहन राय ने आगे कहा कि ठाकुर पंचानन बर्मा की जीवनी, उनके द्वारा लिखी गई कहानियां आदि को इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग भी की गई है. इसके अलावा राजवंशी भाषा में पठन-पाठन की व्यवस्था भी करनी होगी. इसको लेकर उन्होंने विभागीय कमिश्नर के माध्यम से केन्द्र तथा राज्य सरकार को ज्ञापन भी दिया है. दूसरी तरफ सांसद तथा राजवंशी भाषा एकेडमी के चेयरमैन विजय चन्द्र बर्मन ने बताया है कि एकेडमी के सचिव के रूप में कूचबिहार जिले के सूचना एवं संस्कृति अधिकारी काम देखते हैं. उन्होंने एकेडमी द्वारा श्वेतपत्र जारी करने की मांग को भी अनुचित बताया. उन्होंने आगे कहा कि कई समस्याओं के बीच एकेडमी का काम चल रहा है.

राज्य सरकार से काफी गुहार लगाने के बाद वह एकेडमी को आर्थिक अनुदान उपलब्ध करवा पा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि काफी लोग अलग भाषा की मान्यता देने की मांग कर रहे हैं. जबकि अलग भाषा के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है. राजवंशी भाषा में अब तक कोई व्याकरण ही नहीं है. हालांकि उत्तर बंग विश्वविद्यालय में ठाकुर पंचानन बर्मा की जीवनी पढ़ाने, राजवंशी भाषा के माध्यम से पढ़ने-लिखने की सुविधा, शिक्षकों की नियुक्ति आदि की मांग एकेडमी की ओर से राज्य सरकार से की गई है. इस बीच, इस मुद्दे को लेकर तृणमूल के ही दो हेवीवेट नेताओं के बीच भिड़न्त से यहां का राजनीतिक माहौल काफी गरम हो गया है.

इससे पहले भी राजबंशी भाषा को लेकर कई बार आंदोलन हो चुका है. वाम मोरचा के शासनकाल में भी इस मांग को लेकर आंदोलन हुआ था. बाद में तो राजवंशी भाषा की मान्यता तथा अलग कामतापुर राज्य की मांग को लेकर केएलओ नामक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन तक का निर्माण हो गया. अब एक बार फिर से राजवंशी भाषा को मान्यता दिलाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है. अब यह आंदोलन कितना आगे बढ़ता है, यह समय ही बतायेगा.

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