राजवंशी भाषा अकादमी को स्वायत्त करने की मांग
जलपाईगुड़ी. राजवंशी भाषा अकादमी को स्वायत्त करने की मांग राजवंशी भाषा अकादमी ने मुख्यमंत्री से की है. 13 आंदोलनकारी संगठनों को लेकर गठित राजवंशी विकास मंच की ओर से अलग राजवंशी विकास परिषद के गठन की भी मांग की जायेगी. हाल ही में मुख्यमंत्री ने आंचलिक भाषाओं को स्वीकृति देने के लिए जिस कमेटी का […]
जलपाईगुड़ी. राजवंशी भाषा अकादमी को स्वायत्त करने की मांग राजवंशी भाषा अकादमी ने मुख्यमंत्री से की है. 13 आंदोलनकारी संगठनों को लेकर गठित राजवंशी विकास मंच की ओर से अलग राजवंशी विकास परिषद के गठन की भी मांग की जायेगी. हाल ही में मुख्यमंत्री ने आंचलिक भाषाओं को स्वीकृति देने के लिए जिस कमेटी का गठन किया है, उस कमेटी के माध्यम से राजवंशी भाषा को स्वीकृति देने की मांग राजवंशी भाषा अकादमी के चेयरमैन तथा जलपाईगुड़ी के सांसद विजय चन्द्र बर्मन ने जोर-शोर से उठायी है.
रविवार को जलपाईगुड़ी जिला परिषद के हॉल में राजवंशी भाषा अकादमी की तरफ से राजवंशी भाषा साहित्य चर्चा और उत्तर बंग विषय को लेकर चर्चा में हिस्सा लेने आये श्री बर्मन ने यह राय प्रकट की. उन्होंने कहा कि आंचलिक भाषाओं की स्वीकृति के लिए मुख्यमंत्री द्वारा गठित कमेटी का वह स्वागत करते हैं. राजवंशी भाषा अकादमी की ओर से हमने कई पुस्तक-पुस्तिकाएं प्रकाशित की हैं, लेकिन अकादमी के स्वायत्त नहीं होने के कारण हम उनकी बिक्री नहीं कर पा रहे हैं. बांग्ला भाषा अकादमी की तरह ही राजवंशी भाषा अकादमी को भी स्वायत्ता देनी होगी. उन्होंने बताया कि साल 2012 में 10 दिसंबर को राजवंशी भाषा अकादमी की घोषणा हुई थी. इसके बाद कूचबिहार के विक्टर पैलेस में अकादमी कार्यालय शुरू किया गया.
श्री बर्मन ने कहा कि मुख्यमंत्री ने विभिन्न जनजातियों के लिए विकास परिषद का गठन किया है. इसीलिए राजवंशियों के 13 संगठनों के मंच, राजवंशी उन्नयन मंच की तरफ से राजवंशी विकास परिषद के गठन की मांग की जा रही है. उन्होंने कहा कि एक समय राजवंशी भाषा की स्वीकृति के लिए बहुत से आंदोलन हुए हैं. बड़ी संख्या में लोग जेल भी गये हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहली बार हमारी मातृभाषा की स्वीकृति के लिए पहलकदमी की है.
राजवंशी भाषा और उत्तर बंगाल को लेकर आयोजित चर्चा के दौरान इस भाषा में पठन-पाठन और राजवंशी संस्कृति के बारे में विस्तार से बात हुई. भाषाविद् द्विजेन भगत, निखिल राय, बिमलेन्दु मजूमदार, यज्ञेश्वर राय, दिलीप बर्मा, सत्येन्द्र नाथ बर्मन आदि ने अपने विचार रखे.