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नियुक्ति घोटाले में मुकदमा चलाने की मंजूरी देने पर दो मई तक निर्णय ले राज्य सरकार : हाइकोर्ट

कोर्ट ने कहा : अगर मुख्य सचिव आदेश का पालन करने में विफल रहते हैं, तो अदालत कार्रवाई करने को होगी बाध्य

सीबीआइ की ओर से गिरफ्तार किये गये पूर्व लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दे रही राज्य सरकार कोर्ट ने कहा : अगर मुख्य सचिव आदेश का पालन करने में विफल रहते हैं, तो अदालत कार्रवाई करने को होगी बाध्य कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट से राज्य सरकार को फिर बड़ा झटका लगा है. हाइकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार से स्पष्ट रूप से कहा कि नियुक्ति घोटाले में आखिर राज्य सरकार पूर्व लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी क्यों नहीं दे रही. कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश जयमाल्य बागची की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मुख्य सचिव को 2016 की स्कूल नियुक्तियों के मामले में सीबीआइ द्वारा गिरफ्तार किये गये पूर्व लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने पर दो मई तक निर्णय लेने का निर्देश दिया. गौरतलब है कि इससे पहले, सोमवार को हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की एक खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा संचालित और उससे सहायता प्राप्त विद्यालयों में राज्यस्तरीय चयन परीक्षा-2016 (एसएलएसटी) की भर्ती प्रक्रिया के जरिये हुईं 25,753 नियुक्तियों को एक दिन पहले रद्द कर दिया था. एक खंडपीठ ने कहा कि यदि मुख्य सचिव इस आदेश का पालन करने में विफल रहते हैं, तो अदालत उनके खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू करने के लिए बाध्य होगी. आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के लिए सीबीआइ का आवेदन 2022 से लंबित है. इसे देखते हुए न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची व न्यायाधीश गौरांग कांत की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मुख्य सचिव को उन आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी पर दो मई तक निर्णय लेने का निर्देश दिया, जिन्हें दो साल पहले गिरफ्तार किया गया था. मंजूरी देने को मुकदमे की शुरुआत के लिए एक कदम बताते हुए अदालत ने कहा कि यह कानून की आवश्यकता है कि मंजूरी देने वाले प्राधिकारी को मामले में त्वरित निर्णय लेना चाहिए. खंडपीठ ने कहा कि निर्णय लेते समय, उसे आरोपियों की स्थिति, अधिकार या शक्ति से अभिभूत या प्रभावित नहीं होना चाहिए और मामले पर स्वतंत्र निर्णय लेना चाहिए. अदालत ने आरोपी व्यक्तियों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. आरोपियों में राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी भी शामिल हैं. वकीलों ने कहा कि तत्कालीन लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के अभाव में मामला आगे नहीं बढ़ सका और वे लगभग दो साल से हिरासत में हैं ऐसे में देरी के कारण उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाये. मामले की पिछली सुनवाई के दौरान सीबीआइ ने अदालत के समक्ष कहा था कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने चटर्जी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है. खंडपीठ मामले के संबंध में पिछले करीब दो साल से हिरासत में चल रहे पार्थ चटर्जी, पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग के पूर्व सचिव अशोक साहा, पूर्व एसएससी अध्यक्ष सुबीरेश भट्टाचार्य और एसएससी की सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष शांति प्रसाद सिन्हा की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने सवाल किया कि क्या ये आरोपी इतने महत्वपूर्ण हैं कि वे मंजूरी प्रक्रिया को डेढ़ साल तक रोक सकते हैं. पीठ ने नौ अप्रैल को भी मंजूरी देने में देरी पर नाराजगी व्यक्त की और मुख्य सचिव को 23 अप्रैल तक निर्णय लेने का निर्देश दिया. सोमवार को न्यायमूर्ति देबांग्शु बसाक की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने स्कूल नौकरियों के मामले पर अपने फैसले में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने में देरी का उल्लेख किया था.

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