कोलकाता/नयी दिल्ली
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने रविवार को केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि उसने 1996 की गंगा जल बंटवारा संधि के नवीनीकरण के लिए बांग्लादेश के साथ बातचीत शुरू करने का निर्णय लेने से पहले राज्य से परामर्श नहीं किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना के बीच संधि सहित विभिन्न मुद्दों पर बातचीत के एक दिन बाद तृणमूल की यह टिप्पणी आयी.
राज्यसभा में तृणमूल संसदीय दल के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि राज्य संधि का एक पक्ष है, लेकिन उससे परामर्श नहीं किया गया.
ओब्रायन ने नयी दिल्ली में संवाददाताओं से कहा, “राज्य इस संधि का एक पक्ष है. पिछली संधि के तहत हमारा बकाया भी अब तक नहीं चुकाया गया है.” उन्होंने आरोप लगाया, “गंगा के तल की खुदाई रोक दी गयी है. यह बाढ़ और कटाव का मुख्य कारण है. यह बंगाल को बेचने की योजना है.” प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को घोषणा की कि भारत और बांग्लादेश 1996 की गंगा जल संधि के नवीनीकरण के लिए तकनीकी स्तर की वार्ता शुरू करेंगे तथा तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक भारतीय तकनीकी दल शीघ्र ही बांग्लादेश का दौरा करेगा.
मोदी और हसीना के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद जारी भारत-बांग्लादेश साझा दृष्टिकोण दस्तावेज में कहा गया है कि दोनों पक्ष 1996 की गंगा जल बंटवारा संधि के नवीनीकरण के लिए चर्चा शुरू करने के वास्ते एक संयुक्त तकनीकी समिति के गठन का स्वागत करते हैं. भारत और बांग्लादेश द्वारा 1996 में हस्ताक्षरित गंगा जल संधि 30 वर्ष की संधि है, जो 2026 में समाप्त होगी तथा इसे आपसी सहमति से नवीनीकृत किया जा सकता है. संधि के तहत भारत और बांग्लादेश ने बांग्लादेश सीमा से लगभग 10 किलोमीटर दूर भागीरथी नदी पर बने बांध फरक्का में इस सीमा पार नदी के पानी को साझा करने पर सहमति व्यक्त की थी.
पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों द्वारा इस संधि पर कई चिंताएं जतायी गयी हैं, जिन्होंने कटाव, गाद और बाढ़ के लिए फरक्का बैराज को जिम्मेदार ठहराया है.
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