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सुप्रीम कोर्ट ने 25,753 नियुक्तियों को रद्द करने के फैसले पर लगायी अंतरिम रोक

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कलकत्ता हाइकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें राज्य के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) द्वारा की गयी 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया गया था.

नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मियों को शीर्ष अदालत से राहत अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी संवाददाता, कोलकाता सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कलकत्ता हाइकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें राज्य के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) द्वारा की गयी 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य कर दिया गया था. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने हालांकि, सीबीआइ को अपनी जांच जारी रखने और राज्य मंत्रिमंडल के सदस्यों की भी जांच करने की अनुमति दी. हालांकि, शीर्ष अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) से कहा कि वह जांच के दौरान किसी संदिग्ध को गिरफ्तार करने जैसी कोई जल्दबाजी भरी कार्रवाई न करे. शीर्ष अदालत ने नियुक्ति घोटाले के मामले में राज्य सरकार को जमकर फटकार लगायी. खंडपीठ ने कहा कि यह एक सुनियोजित धोखाधड़ी है. इससे लोगों का भरोसा उठ जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें 25,753 शिक्षकों और गैर शिक्षण कर्मियों की नियुक्तियों को रद्द करने के हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गयी है. कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया को सुनियोजित धोखाधड़ी करार देते हुए कहा कि 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित डिजिटल रिकॉर्ड बनाये रखना अधिकारियों का कर्तव्य है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नौकरी गंवाने वाले लोगों को अंतरिम राहत दी है. हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि यह सिर्फ अंतरिम रोक है. अगर सुप्रीम कोर्ट आगे चलकर किसी शख्स की नियुक्ति को गैरकानूनी पाता है, तो उसे अपना वेतन वापस करना होगा. कोर्ट ने कहा कि स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) यदि योग्य व अयोग्य उम्मीदवारों की सूची अलग-अलग कर सकता है तो पूरे पैनल को रद्द करना ठीक नहीं होगा. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने एसएससी को विस्तृत रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया.शीर्ष ने साफ कर दिया कि सीबीआइ अभी इस मामले में जांच जारी रख सकती है, पर अभी कोई गिरफ्तारी जैसी दंडात्मक कार्रवाई इस जांच के आधार पर नहीं हो पायेगी. मामले में 16 जुलाई को अगली सुनवाई होगी. बाकी पेज 10 पर देखें पेज 05 भी सुप्रीम कोर्ट… राज्य सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और एनके कौल ने उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्तियों को रद्द करने के खिलाफ दलील दी. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश अभिजीत गंगोपाध्याय के खिलाफ टिप्पणी की और उच्च अदालत के आदेश पर रोक लगाने की मांग की. इसपर पीठ ने कहा: मान्वयर दवे, हम माननीय गंगोपाध्याय के आचरण पर सुनवाई नहीं कर रहे हैं. हम यहां सुबह से ही मामले की विस्तृत पक्ष सुन रहे हैं. कृपया कुछ शालीनता बनाए रखें. प्रधान न्यायधीश सुनवाई के दौरान एक बार नाराज हो गये और उन्होंने कहा कि अगर व्यवस्थित सुनवाई नहीं होने दी गयी तो वह नोटिस जारी करेंगे और मामले को जुलाई में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा: हम यहां न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय के आचरण की समीक्षा करने के लिए नहीं हैं. उन्होंने कहा कि अधिवक्ताओं को मामले के कानूनी पक्ष की चिंता करनी चाहिए और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ आरोप लगाने से कोई फायदा नहीं होगा. गौरतलब है कि करीब 26 हजार शिक्षकों व गैर-शिक्षक कर्मियों की नौकरी रद्द करने के कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार, स्कूल सेवा आयोग व पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा पर्षद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. 2016 की इन नियुक्तियों को भ्रष्टाचार के चलते कलकत्ता हाइकोर्ट ने रद्द करते हुए शिक्षकों को 12 प्रतिशत ब्याज के साथ पूरा वेतन लौटाने का आदेश दिया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है. क्या कहा प्रधान न्यायाधीश ने प्रधान न्यायाधीश ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकीलों से कहा कि सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं. अगर जनता का विश्वास उठ गया तो कुछ भी नहीं बचेगा. यह व्यवस्थागत धोखाधड़ी है. सरकारी नौकरियां आज बहुत कम हैं और उन्हें सामाजिक विकास के रूप में देखा जाता है. अगर नियुक्तियों पर भी सवाल उठने लगे, तो व्यवस्था में क्या बचेगा? लोगों का विश्वास खत्म हो जायेगा, आप इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं? पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उसके अधिकारियों ने डेटा संभाल कर रखा. पीठ ने डेटा की उपलब्धता के बारे में भी पूछा. पीठ ने राज्य सरकार के वकीलों से कहा कि या तो आपके पास डेटा है या नहीं है. डिजिटल रूप में दस्तावेज संभाल कर रखना आपकी जिम्मेदारी थी. अब यह जाहिर हो चुका है कि डेटा नहीं है. आपको यह बात पता ही नहीं है कि आपके सेवा प्रदाता ने किसी अन्य एजेंसी की सेवा ली है. आपको उसके ऊपर निगरानी रखनी चाहिए थी.

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