Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत विपक्षी दलों द्वारा शासित पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों की उन अलग-अलग याचिकाओं पर विचार करने पर शुक्रवार को सहमत हो गया, जिनमें आरोप लगाया गया है कि संबंधित विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दी गयी. पश्चिम बंगाल के अलावा केरल ने यह भी आरोप लगाया कि राज्यपाल ने कुछ विधेयक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे थे और उन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है.शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय और केरल के राज्यपाल मोहम्मद खान एवं पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के सचिवों को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर उनसे जवाब मांगा है.
विधेयकों को अनुमोदन नहीं देने के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की है याचिका
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने तृणमूल कांग्रेस नीत पश्चिम बंगाल सरकार को भी निर्देश दिया कि वह याचिका में गृह मंत्रालय को भी पक्षकार बनाये. पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि राज्यपाल आठ विधेयकों पर मंजूरी नहीं दे रहे हैं. राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वह केंद्र को पक्ष बनायेंगे और याचिका पर निर्णय लेने में अदालत की सहायता के लिए एक लिखित टिप्पणी दाखिल करेंगे. उन्होंने तमिलनाडु समेत अन्य राज्यों का हवाला देते हुए कहा कि जैसे ही शीर्ष अदालत ने सुनवाई के लिए मामले निर्धारित किए, कुछ विधेयकों को या तो मंजूरी दे दी गई या राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया.
राज्यपाल ने कुछ विधेयक राष्ट्रपति को भेजे
वहीं, पश्चिम बंगाल की ओर से ही पेश एक अन्य अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि शुक्रवार सुबह जब दूसरे पक्ष को सूचित किया गया कि मामला शीर्ष अदालत में सुनवाई के लिए आने वाला है, तो राज्यपाल ने कुछ विधेयक राष्ट्रपति को भेज दिये. उन्होंने कहा कि हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, लेकिन हमें इसके बारे में पता चला है. पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को बिना कोई कारण बताये मंजूरी देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 200 के विपरीत है.
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