डॉक्टर आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों की मदद करते थे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि अब अधिकतर डॉक्टर आर्थिक रूप से तंग मरीजों के प्रति दया की भावना नहीं रखते. इस सोच को बदलने की जरूरत है. शहरी अंचल में अधिकतर डॉक्टरों की फीस इतनी अधिक है कि एक गरीब मरीज इलाज कराने की सोच भी नहीं सकता है. विशेषकर निजी अस्पतालों का रवैया चिंताजनक है. सरकारी अस्पतालों में भीड़ अधिक होने के कारण परिजन मरीज को निजी अस्पताल में भर्ती कराते हैं, लेकिन जिस तरीके से निजी अस्पताल बिल बनाते हैं, एक आम इंसान के लिए बिल चुकाना असंभव है. निजी अस्पताल बेहतर सेवाएं तो प्रदान करते हैं, लेकिन आर्थिक रूप से तंग मरीज के परिजनों के लिए वहां इलाज कराना असंभव है. उन्होंने कहा कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज भी कई डॉक्टर सीमित संसाधन में ग्रामीण अंचल में कम फीस पर मरीजों का इलाज कर रहे हैं. उनकी यह प्रतिबद्धता प्रेरणादायक है. उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पताल के साथ निजी अस्पतालों को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए, जिससे बेहतर इलाज एक आम इंसान को मिल सके. डॉ अहमद ने कहा कि एक स्वस्थ राष्ट्र का सपना तभी साकार हो सकता है, जब हर नागरिक को बेहतर चिकित्सा मिले. अब समय आ गया है कि सरकार निजी अस्पतालों के साथ मिलकर कुछ ऐसा प्रयास करें, जिससे सभी वर्ग के लोग लाभान्वित हों.
सर्विस डॉक्टर फोरम के कोषाध्यक्ष डॉ सपन विश्वास ने बताया कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में 11 हजार मरीजों की चिकित्सा के लिए एक एमबीबीएस डिग्रीधारी चिकित्सक है. उन्होंने बताया कि राज्य में बढ़ती जनसंख्या के बीच डॉक्टरों की भी संख्या बढ़ रही है, पर सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं हो रही है. इस वजह से डॉक्टरों की कमी बनी हुई है. उन्होंने बताया कि राज्य के करीब पांच छह हजार बेरोजगार चिकित्सकों ने हाल में ही सरकारी नौकरी के लिए स्वास्थ्य भवन में ज्ञापन सौंपा है.
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