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हाइकोर्ट के नौ अतिरिक्त न्यायाधीशों का कार्यकाल बढ़ेगा

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कलकत्ता हाइकोर्ट के नौ अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी करने की सिफारिश को फिलहाल मानने से इंकार कर दिया है.

संवाददाता, कोलकाता

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कलकत्ता हाइकोर्ट के नौ अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी करने की सिफारिश को फिलहाल मानने से इंकार कर दिया है. शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि इन नौ अतिरिक्त न्यायाधीशों का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ करते हैं, जिनमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई भी शामिल हैं.

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नामों पर निर्णय लेने वाले कॉलेजियम ने फिलहाल उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश नहीं की है. 29 अप्रैल 2024 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से नौ अतिरिक्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किये जाने को लेकर सिफारिश की. हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने इस सिफारिश पर अपने विचार नहीं बताये.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कहा कि अतिरिक्त न्यायाधीशों की स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए उपयुक्तता सुनिश्चित करने के लिए, ””हमने अपने उन सहयोगियों से परामर्श किया है, जो कलकत्ता उच्च न्यायालय के मामलों से परिचित हैं.”” कॉलेजियम ने 24 जुलाई की देर शाम पारित प्रस्ताव में कहा कि अतिरिक्त न्यायाधीशों की स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए उनकी योग्यता और उपयुक्तता का आकलन करने के उद्देश्य से उसने रिकॉर्ड में रखी गयी सामग्री की जांच और मूल्यांकन किया है. मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की एक समिति ने भी अतिरिक्त न्यायाधीशों के निर्णयों का मूल्यांकन किया.

कॉलेजियम के प्रस्ताव में कहा गया कि कॉलेजियम यह सिफारिश करने का संकल्प लेता है कि न्यायमूर्ति विश्वरूप चौधरी, पार्थ सारथी सेन, प्रसेनजीत विश्वास, उदय कुमार, अजय कुमार गुप्ता, सुप्रतिम भट्टाचार्य, पार्थ सारथी चटर्जी, अपूर्व सिन्हा रे और मोहम्मद शब्बार रशीदी, अतिरिक्त न्यायाधीशों को 31 अगस्त 2024 से एक वर्ष की नयी अवधि के लिए कलकत्ता में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाये. कॉलेजियम ने कहा कि न्याय विभाग ने प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) के पैरा 14 को लागू करते हुए उपरोक्त सिफारिश को आगे बढ़ाया है.

एमओपी के अनुसार यदि राज्य में संवैधानिक प्राधिकारियों की टिप्पणियां निर्धारित समय-सीमा के भीतर प्राप्त नहीं होती हैं, तो विधि एवं न्याय मंत्री को यह मान लेना चाहिए कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पास प्रस्ताव में जोड़ने के लिए कुछ नहीं है और उसके आगे बढ़ाना चाहिए.

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