उत्तर बंगाल, पश्चिमांचल व शिल्पांचल में भाजपा के गढ़ में तृणमूल ने लगायी सेंध
इस बार तृणमूल कांग्रेस ने कूचबिहार सीट भाजपा से छीन ली है. कूचबिहार से भाजपा उम्मीदवार निशीथ प्रमाणिक को तृणमूल प्रत्याशी जगदीश चंद्र बासुनिया ने हरा दिया.
कोलकाता. राज्य का उत्तर बंगाल, पश्चिमांचल व शिल्पांचल क्षेत्र कभी भाजपा का किला हुआ करता था. विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा इस किले में सेंध लगायी है. उत्तर बंगाल की आठ सीटों पर में से भाजपा ने छह सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि इससे पहले भाजपा ने यहां सात सीटें को अपने कब्जे में किया था. इस बार तृणमूल कांग्रेस ने कूचबिहार सीट भाजपा से छीन ली है. कूचबिहार से भाजपा उम्मीदवार निशीथ प्रमाणिक को तृणमूल प्रत्याशी जगदीश चंद्र बासुनिया ने हरा दिया.
भाजपा को छह सीटों का नुकसान, दो सीटें तृणमूल से छीनी
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019 में भाजपा ने यहां 18 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि इस बार भाजपा ने मात्र 12 सीटों में जीत दर्ज की है. हालांकि, एक तरह से देखा जाये, तो भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में जीते 18 सीटों में से 10 सीटों पर फिर से जीत हासिल करने में कामयाब रही है, जबकि आठ सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा है. भाजपा को कूचबिहार, आसनसोल, बर्दवान- दुर्गापुर, बैरकपुर, झाड़ग्राम, मेदिनीपुर, बांकुड़ा व हुगली लोकसभा सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा है. वहीं, भाजपा ने तमलुक व कांथी लोकसभा सीट को तृणमूल कांग्रेस से छीन लिया है.
दक्षिण बंगाल के वोटरों ने नहीं दिया साथ : चुनावी नतीजों से साफ हुआ कि उत्तर बंगाल में, जहां भाजपा खुद को काफी मजबूत मानती रही है, इस बार उसे झटके लगा है. दूसरी तरफ माना जा रहा था कि दक्षिण बंगाल में भाजपा इस बार पिछले दफा की तुलना में बेहतर कर सकती है, तो वह भी नहीं हो सका. बंगाल का पश्चिमी हिस्सा, जो पश्चिमी राढ़ बंगाल है, वहां भी तृणमूल ने अपनी ताकत बढ़ायी है. उत्तर बंगाल की बात करें, तो मालदा उत्तर से भाजपा के खगेन मुर्मू ने अपनी सीट बरकरार रखी. बालुरघाट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार भी जीतने में सफल रहे. लेकिन कूचबिहार सीट भाजपा को गंवानी पड़ी. इस सीट से केंद्रीय मंत्री निशीथ प्रमाणिक चुनाव लड़े थे. दार्जिलिंग सीट से भाजपा के राजू बिष्ट ने जीत हासिल की. वहीं, जलपाईगुड़ी सीट भी भाजपा ने बचा ली है. अलीपुरद्वार व रायगंज भी भाजपा के पाले में गयी है. कुल मिला कर भाजपा ने यहां अपनी सीटें तो बचायीं, लेकिन वह ताकत नहीं दिखी.लक्खी भंडार पड़ा भाजपा के वादों पर भारी
बंगाल की राजनीति की समझ रखने वालों की राय में यहां की अर्थव्यवस्था के लिहाज से लक्खी भंडार योजना इस चुनाव में भी बहुत महत्वपूर्ण असर छोड़ रही है. वरिष्ठ पत्रकार व प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष राज मिठौलिया का मानना है कि लक्खी भंडार ने महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण किया है और इससे सिर्फ एक महिला ही नहीं, बल्कि उसके परिवार को फर्क पड़ता है. लक्खी भंडार अगर किसी महिला को मिल रहा है, तो उससे उसका पति भी खुश है और बेटे-बेटी भी. वैसे, श्री मिठौलिया सीएए के मुद्दे को भी भाजपा की क्षति के लिए जिम्मेदार मानते हैं. कुछ विश्लेषकों के मुताबिक, बंगाल के लोग नौकरी पसंद होते हैं. यहां लोगों के मन में बात घर कर गयी है कि मोदी सरकार नौकरियां देने में असंवेदनशील है.साथ ही सोशल सिक्योरिटी के नाम पर भी आम लोगों में मोदी सरकार के प्रति रोष है. वरिष्ठ पत्रकार तपन दास मानते हैं कि उम्रदराज नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा का मसला अहम है. रोजगार या कहें नौकरी और सामाजिक सुरक्षा, इन दोनों ही मोर्चों पर भाजपा से नाराज हो रहा वर्ग तृणमूल की तरफ झुका है. परिणाम से यह तथ्य लगभग पूरी तरह स्पष्ट है. दृश्य मोटे तौर पर साफ है. भाजपा के पुराने वोटरों के एक बड़े वर्ग ने अपना रुख बदल कर तृणमूल के साथ खड़ा होने को शायद बेहतर और सुरक्षित माना है.
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