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विश्वभारती विवि के ग्राफ में लगातार गिरावट एनआइआरएफ की सूची में 150वां स्थान

विश्वभारती विश्वविद्यालय के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. नेशनल इंस्टीट्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआइआरएफ) की सूची में राष्ट्रीय स्तर पर यह केंद्रीय विश्वविद्यालय 98वें स्थान से फिसल कर 150वें स्थान पर चला आया है. एनआइआरएफ की सूची में विश्वभारती पिछड़ रही है. वर्ष 2024 में शिक्षा मंत्रालय से प्रकाशित रैंकिंग के अनुसार कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर के सपनों का यह शैक्षणिक संस्थान फिसल कर 150वें स्थान पर चला गया है.

बोलपुर.

विश्वभारती विश्वविद्यालय के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. नेशनल इंस्टीट्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआइआरएफ) की सूची में राष्ट्रीय स्तर पर यह केंद्रीय विश्वविद्यालय 98वें स्थान से फिसल कर 150वें स्थान पर चला आया है. एनआइआरएफ की सूची में विश्वभारती पिछड़ रही है. वर्ष 2024 में शिक्षा मंत्रालय से प्रकाशित रैंकिंग के अनुसार कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर के सपनों का यह शैक्षणिक संस्थान फिसल कर 150वें स्थान पर चला गया है. एक दशक पहले जहां यह संस्थान 11वें नंबर पर था, वहीं बीते कुछ वर्षों में देश के शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग में विश्वभारती का ग्राफ गिरता जा रहा है. एनआइआरएफ वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक, विश्वभारती लगभग सभी क्षेत्रों में पिछड़ गयी है.

जबकि आंध्र प्रदेश की आचार्य एनजी रंगा कृषि यूनिवर्सिटी प्रथम, हरियाणा की एमिटी यूनिवर्सिटी द्वितीय और तमिलनाडु की अन्नामलाई यूनिवर्सिटी तृतीय स्थान पर है. वर्ष 2020 में विश्वभारती 50वें नंबर पर थी. अगले वर्ष यह और गिर कर 64वें स्थान पर चली गयी. वर्ष 2022 में विश्वभारती 98वें नंबर और फिर 2024 में और फिसल कर 150वें स्थान पर चली गयी है. इसके बाद उच्च शिक्षा के अलग-अलग हलकों में सवाल उठने लगे हैं. विश्वभारती के स्तर में गिरावट को लेकर बहस छिड़ गयी है. लेकिन क्या इससे विश्वभारती की परंपरा को झटका नहीं लगा है? इस विश्वविद्यालय से पढ़ कर निकले छात्र-छात्राएं पूरी दुनिया में हैं. ऐसे में विश्वभारती की शिक्षा की गुणवत्ता व स्तर क्यों गिर रहा है? इस पर शांतिनिकेतन के आश्रम में रहने वालों ने सवाल उठाये हैं.

हालांकि शिक्षा के क्षेत्र में इस केंद्रीय विश्वविद्यालय के गिरते स्तर से यहां के लोग चिंतित हैं. प्रोफेसर व कर्मचारियों से लेकर विश्वभारती के उच्चाधिकारी भी दुखी हैं. इसकी वजह के रूप में विश्वभारती के अस्थायी प्रभारियों को देखा जा रहा है. यहां कोई समर्थ प्रशासक नहीं है, स्थायी कुलपति नहीं है. कोई आचार्य नहीं है. इसे लेकर शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि विषम या कामचलाऊ परिस्थितियों में शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता होना स्वाभाविक है. ऐसे हालात में विश्वभारती चल रही है, जहां शिक्षा का स्तर गिरना तय है. पूरे घटनाक्रम का सबसे दुखद पहलू यह है कि यहां हर कोई आगे बढ़ रहा है, लेकिन विश्वभारती लगातार पिछड़ रही है.

विश्वभारती के प्रोफेसर्स एसोसिएशन वीबीयूएफए के सचिव कौशिक भट्टाचार्य ने कहा कि वर्ष 2023 में गिरावट के बाद 2024 में विश्वभारती निचले स्तर पर पहुंच गयी है. 98वें से 150वें स्थान पर चली गयी है. इस दिशा में सुधार नहीं हो रहा है. यह गिरावट विश्वविद्यालय के स्वर्णिम अतीत को देखते हुए चिंताजनक है. इस बाबत कोशिश के बावजूद विश्वभारती के जनसंपर्क अधिकारी ए घोष की टिप्पणी नहीं मिल पायी. विश्वभारती का स्वर्णिम अतीत कैसे बहाल हो, इस पर यहां के प्रबंधन व अन्य संबद्ध पक्षों को गंभीरता से मनन करना होगा.

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