बीरभूम, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल के बीरभूम लोकसभा सीट से चौथी बार खड़ी हैट्रिक लगा चुकी तृणमूल की स्टार उम्मीदवार शताब्दी राय (Satabdi Roy) जोर-शोर से जहां प्रचार में लगी हुई है. इसी बीच शताब्दी राय को देख चुनावी प्रचार के माहौल में भी ग्रामीणों का गुस्सा भी फुट पड़ रहा है. मुख्य रूप से पानी और सड़क की मांग ग्रामीण उठा रहे है. हालांकि, पिछले कुछ दिनों से शताब्दी जिस इलाके में जा रही है वहां के निवासियों की शिकायतें और मांगें सुनने में व्यस्त हैं. उदाहरण के तौर पर प्रचार के लिए जाते वक्त शताब्दी कुछ देर के लिए बीरभूम के सैथिया इलाके में फंस गईं थीं.
शताब्दी को सामने देख ग्रामीणों का फूटा गुस्सा
शताब्दी को सामने देख ग्रामीणों ने शिकायत शुरू कर दी. कुछ लोगों ने हाउसिंग प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार की शिकायत की और शताब्दी से पीने के पानी की समस्या और अच्छी सड़कों की भी मांग की. ग्रामीणों ने शताब्दी से शिकायत की है कि पीने के पानी की समस्या काफी समय से बताई जा रही है लेकिन प्रशासन ने समस्या का समाधान नहीं किया है. यहां तक कि गांव की कई सड़कों की मरम्मत भी नहीं की गई है. हालांकि, शताब्दी स्थानीय निवासियों की ऐसी शिकायतों को सुना. इस बीच उन्हे ग्रामीणों के गुस्से को भी सहना पड़ा. तेज धूप और गर्मी के बावजूद प्रार्थी द्वारा दिन-रात प्रचार चल रहा है. लेकिन शताब्दी को मूलभूत लोगों की समस्या को लेकर कोप भाजन भी बनना पड़ रहा है.
बीरभूम सीट से खड़ी तृणमूल कांग्रेस प्रार्थी शताब्दी राय की चुनावी वीडियो मचा रही धूम
तृणमूल की स्टार उम्मीदवार शताब्दी राय ने पिकनिक मूड में प्रचार के लिए एक थीम वीडियो बनाया है. गीत के बोल है ,’जीतब आमी जीतबो अमारा’ गाना चुनाव प्रचार में शताब्दी के हथियार के रूप में व्यवहार हो रहा है. उन्होंने स्टाफ के साथ खुद के लिखे, खुद के गाए और पीयूष के संगीतबद्ध गीतों के साथ विडियो की शूटिंग की है. तीन बार की सांसद शताब्दी राय ने कहा, अब देश आगे बढ़ रहा है. 25 साल का फिल्मी करियर का अनुभव. अब लोग बैलगाड़ी छोड़कर हवाई जहाज से उड़ने लगे हैं.हाथ में मोबाइल है. इसलिए मैंने 2 मिनट और 35 सेकंड का एक चुनावी अभियान थीम पर वीडियो बनाया है. जो बिल्कुल नया है. हालांकि, बीजेपी उनके प्रचार की इस नई तकनीक को पचा नहीं पाई. भगवा शिविर के प्रत्याशी देबाशीष धर ने सवाल उठाया, ”कभी खतियान दिखाकर तो कभी अपने गाने का वीडियो बनाकर लोगों के बीच जाना पड़ रहा है. काम ही एकमात्र ऐसी चीज है जो मायने रखती है, लोगों के लिए यदि वास्तविक रूप में क्षेत्र में काम हुआ होता तो यह सब ड्रामा नहीं दिखाना पड़ता. और ना ही इस प्रमोशन की जरूरत पड़ती.