Lok sabha Chunav: बंगाल के इन लोकसभा सीटों पर है मतुआ समुदाय के लोगों का प्रभाव, हार जीत में निभाते हैं बड़ी भूमिका
पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 10 से 11 सीटों पर मतुआ समुदाय के प्रभाव माना जाता है. इनमें से पांच लोकसभा सीटों पर तो ये निर्णायक की भूमिका में रहते हैं.
मनोरंजन सिंह, कोलकाता : 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद शरणार्थी के रूप में भारत आए मतुआ समुदाय के लोगों की पश्चिम बंगाल में आबादी अब ढाई करोड़ हो चुकी है. पांच लोकसभा सीटों पर हार-जीत का फैसला तो सीधे इनके हाथ में है. वैसे पश्चिम बंगाल की 10-11 लोकसभा सीटों पर इनका प्रभााव है. सीएए लागू होने के बाद यह समुदाय़ पश्चिम बंगाल ही नहीं देश की सिय़ासी चर्चा के केंद्र में भी है. जानिए क्या है इनकी सियासत और क्यों इनके वोट बैंक को साधने में लगे हैं सभी दल……
पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों पर हार-जीत के फैसले में ढाई करोड़ की आबादी वाला मतुआ समुदाय खास हो गया है. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय शरणार्थी के रूप में पश्चिम बंगाल के इलाकों में आए मतुआ लोगों का पश्चिम बंगाल की 42 में से 10-11 लोकसभा सीटों पर प्रभाव है. पांच लोकसभा सीटों पर तो ये निर्णायक हैं. राजनीतिक विश्लेषक पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की उपलब्धियों के मद्देनजर मतुआ मतदाताओं के योगदान को खास मानते हैं.
2024 के आम चुनाव की घोषणा से ठीक पहले जारी हुई सीएए की अधिसूचना को मतुआ वोट बैंक के एंगल से भी देखा जा रहा है. राजनीतिक पंडितों का एक वर्ग मान रहा है कि इससे राज्य के मतुआ मतदाता प्रभावित तो होंगे ही. बंगाल की कुल आबादी में मतुआ जनसंख्या करीब ढाई करोड़ है. मतदाताओं की संख्या के लिहाज से यह समुदाय राज्य की पांच लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में दिखता है. करीब एक चौथाई सीटें ऐसी हैं, जिन पर इनके प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में मतुआ समुदाय को साधने में सभी दलों की खास दिलचस्पी है.
71 के युद्ध के समय आये थे बंगाल
1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काफी संख्या में मतुआ लोग सुरक्षित आसरे की उम्मीद में बंगाल आये थे. ये बांग्लादेश की सीमा से सटे उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव के आसपास बसते गये. इस कारण बनगांव और उसके पड़ोसी इलाकों में धीरे-धीरे इनका प्रभाव अधिक होता गया. ऑल इंडिया मतुआ महासंघ का दावा है कि पूरे देश में मतुआ समुदाय की आबादी करीब नौ करोड़ है, जबकि बंगाल में इनकी तादाद ढाई करोड़ के करीब है. बताया जाता है कि विभाजन के बाद हरिचंद-गुरुचंद ठाकुर के वंशजों ने मतुआ संप्रदाय की स्थापना की थी. हरिचंद के प्रपौत्र प्रमथ रंजन ठाकुर और उनकी पत्नी वीणापाणि देवी (बड़ो मां) ने मतुआ महासंघ की छत्रछाया में राज्य में मतुआ समुदाय को एकजुट किया और उन्हें भारतीय नागरिकता दिलाने के लिए आंदोलन खड़ा किया.
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मतुआ समुदाय का कहां-कहां है प्रभाव
उत्तर 24 परगना जिले के साथ ही बंगाल के कुछ अन्य जिलों में भी मतुआ समुदाय का प्रभाव बढ़ा है. बनगांव, बशीरहाट, बारासात, राणाघाट और कृष्णानगर जैसी लोकसभा सीटों पर मतुआ मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं. उधर, दक्षिण 24 परगना, मालदा, नदिया, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार तथा पूर्व और पश्चिम बर्दवान जिलों में भी इनकी आबादी मौजूद है. इस वजह से बनगांव, बशीरहाट, बारासात, राणाघाट और कृष्णानगर के अतिरिक्त कूचबिहार, बालूरघाट, बर्दवान पूर्व, मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण और जलपाईगुड़ी आदि लोकसभा क्षेत्रों में भी इनके वोटों से फर्क पड़ता है. इन सीटों के लिए भी मतुआ वोट को महत्वपूर्ण फैक्टर माना जाता है.
जिनको मिला समर्थन, उनका पलड़ा भारी
उत्तर 24 परगना जिले में बनगांव के ठाकुरनगर में बसे हरिचंद ठाकुर के परिवार का राजनीति से लंबा संबंध रहा है. हरिचंद ठाकुर के प्रपौत्र प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने थे. तब यहां कांग्रेस की सरकार थी. 1977 में हालात बदले. मतुआ समुदाय लेफ्ट फ्रंट के साथ हो लिया. याद रहे कि 77 के बाद करीब साढ़े तीन दशक तक वाम मोर्चा ने बंगाल में शासन किया था. बाद में इस समुदाय के लोगों ने ममता बनर्जी का साथ दिया. तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर मतुआ नेता स्वर्गीय ठाकुर की परिजन ममता बाला ठाकुर बनगांव से सांसद चुनी गयी थीं. वह फिलहाल राज्यसभा में हैं. माना जाता है कि मतुआ समर्थन के बूते ही तृणमूल बनगांव सीट पर बार-बार जीत रही थी. ज्ञात हो कि मतुआ समुदाय का प्रमुख केंद्र बनगांव का ठाकुरनगर ही है. मतुआ वोट को साधने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले से भाजपा ने कोशिश शुरू की और चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठाकुरनगर जाकर इस समुदाय की प्रमुख बड़ो मां (वीणापाणि देवी) का आशीर्वाद लेकर चुनावी अभियान शुरू किया था. बाद में भाजपा ने इसी परिवार के शांतनु ठाकुर को लोकसभा का टिकट दिया और वह जीत कर सांसद तो बने ही, केंद्र में मंत्री पद भी पा गये.
दो खेमों में बंटा मतुआ नेतृत्व
मतुआ समुदाय की प्रमुख वीणापाणि देवी का निधन पांच मार्च, 2019 को हुआ था. उनके निधन के पहले से ही इस परिवार में दरार दिखने लगी थी. उनकी मृत्यु के बाद परिवार के अंदर की दरार सामने दिखने लगी. परिवार दो खेमों में बंट गया. एक में भाजपा से बनगांव के निवर्तमान सांसद व केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर हैं, जबकि दूसरे का नेतृत्व उनकी चाची तृणमूल नेता व राज्यसभा सांसद ममता बाला ठाकुर कर रही हैं. ये दोनों 2019 में लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ उतर गये थे. हालांकि इस बार शांतनु ठाकुर के खिलाफ भाजपा से तृणमूल में गये विश्वजीत दास मैदान में ताल ठोक रहे हैं. वह 2021 के विधानसभा चुनाव में मतुआ प्रभाव वाले बागदा से भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गये थे, पर बाद में तृणमूल में शामिल हो गये.
मतुआ प्रभाव वाली सीटों पर प्रमुख उम्मीदवार
- बनगांव : शांतनु ठाकुर (भाजपा), विश्वजीत दास (तृणमूल), प्रदीप विश्वास (इंडिया एलायंस)
- बशीरहाट : रेखा पात्रा (भाजपा), हाजी नुरुल इस्लाम (तृणमूल), निरापद सरकार (इंडिया एलायंस)
- राणाघाट : जगन्नाथ सरकार (भाजपा), मुकुटमणि अधिकारी (तृणमूल), आलोकेश दास (इंडिया एलायंस)
- कृष्णानगर : राजमाता कृष्णा राय (भाजपा), महुआ मोइत्रा (तृणमूल), एमएस साथी (इंडिया एलायंस)
- बालूरघाट : सुकांत मजूमदार (भाजपा), विप्लव मित्र (तृणमूल), जयदेव सिद्धांत (इंडिया एलायंस)
- जलपाईगुड़ी : डॉ जयंत कुमार राय (भाजपा), निर्मल चंद्र राय (तृणमूल), देबराज बर्मन (इंडिया एलायंस)
- बर्दवान पूर्व : असित कुमार सरकार (भाजपा), डॉ. शर्मिला सरकार (तृणमूल), नीरव खान (इंडिया एलायंस)
- मालदा उत्तर : खगेन मुर्मू (भाजपा), प्रसून बनर्जी (तृणमूल), मुश्ताक आलम (इंडिया एलायंस)
- मालदा दक्षिण : श्रीरूपा मित्रा चौधरी (भाजपा), शाहनवाज अली रहमान (तृणमूल), ईशा खान चौधरी (इंडिया एलायंस)
- बारासात : स्वपन मजूमदार (भाजपा), काकोली घोष दस्तीदार (तृणमूल), संजीव चट्टोपाध्याय (इंडिया एलायंस)
- कूचबिहार : नीतीश प्रामाणिक (भाजपा), जगदीश चंद्र बासुनिया (तृणमूल), प्रिय राय चौधरी (इंडिया एलायंस)
राजनीतिक रुझान में राय जुदा-जुदा
मैं नहीं मानता कि सीएए चुनाव प्रभावित करने वाला फैक्टर है. असल बात यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार बंगाल के साथ हर मामले में भेदभाव करती है. हम लोगों के बीच बंगाल सरकार की कल्याणकारी योजनाएं लेकर जा रहे हैं. दूसरी बड़ी बात यह भी है कि मतुआ लोगों ने तो बिना शर्त नागरिकता मांगी थी, लेकिन केंद्र सरकार ने ऐसा नहीं किया, जिस कारण से मतुआ भाजपा के पक्ष में नहीं हैं.
विश्वजीत दास, तृणमूल प्रत्याशी, बनगांव
सीएए से सिर्फ मतुआ ही नहीं, बल्कि राज्य में रह रहे तमाम शरणार्थियों की नागरिकता का रास्ता खुल गया है. यह कानून नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने के लिए बना है. मतुआ समाज की बहुत पुरानी मांग पूरी हो गयी है. इससे इस समुदाय में खुशी स्वाभाविक है और इसका असर इस लोकसभा चुनाव में भी दिखेगा. उम्मीद है कि मतुआ वोटों से अच्छा और लाभकारी असर पड़ेगा.
शांतनु ठाकुर, भाजपा प्रत्याशी, बनगांव
मतुआ लोगों को बिना शर्त नागरिकता देनी होगी. कानून में परिवर्तन के लिए हम लोग लड़ रहे हैं. जो शर्तें रखी गयी हैं, वे स्वीकार्य नहीं हैं. इसलिए मतुआ समुदाय भाजपा के साथ नहीं है. इस बार इसका असर चुनाव में दिखेगा. दो से ढाई करोड़ मतुआ समुदाय के लोगों की आबादी है, जो लोकसभा की 10 से 11 सीटों पर असर छोड़ेगा.
ममता बाला ठाकुर, तृणमूल नेता व राज्यसभा सांसद
सीएए लागू होने से खुशी है. हमलोग संतुष्ट हैं. कुछ बदलाव की जरूरत थी, उसे भी बदल दिया गया है. अब बिना किसी तरह के कागज व दस्तावेज के ही एफिडेविट कर देने से ही काम हो जायेगा. हमलोगों ने आवेदन करना भी शुरू कर दिया है. हम लोग अब चिंतामुक्त हैं. हमारे संप्रदाय के लोगों के आवेदन आने लगे हैं.
सुजन सिकदर, सहायक सचिव, ऑल इंडिया मतुआ महासंघ