West Bengal : बोध गया जाने से पहले कोलकाता के इस मंदिर में आखिर देर तक क्यों रुकते हैं पर्यटक
West Bengal : राज्य में कहीं भी ऐसा कोई म्यांमार बौद्ध मंदिर नहीं है इस मंदिर को लेकर अलौकिक घटनाएं भी हैं. यह कभी बौद्ध मठ था. आज भी म्यांमार के तीर्थयात्री बौद्ध गया जाते समय दो या तीन दिन यहां रुकते थे. हा
West Bengal : चार साल बाद म्यांमार का यह बौद्ध मंदिर 100 साल का हो जाएगा.हालांकि यह बौद्ध मंदिर म्यांमार का है, लेकिन यह कोलकाता (Kolkata) में स्थित है. यह जीर्ण-शीर्ण मंदिर सेंट्रल मेट्रो स्टेशन के पास स्थित है. कहा जाता है कि यहां की बुद्ध प्रतिमा को पेंच से लगाया गया है. राज्य में कहीं भी ऐसा कोई म्यांमार बौद्ध मंदिर नहीं है इस मंदिर को लेकर अलौकिक घटनाएं भी हैं. यह कभी बौद्ध मठ था. आज भी म्यांमार के तीर्थयात्री बौद्ध गया जाते समय दो या तीन दिन यहां रुकते थे. हालांकि लोगों की संख्या कम हो गई है, लेकिन प्रथा अभी भी कायम है.
मंदिर दर्शन का समय सुबह 9 बजे से 1 बजे तक का
इस मंदिर की देखरेख बेगूसराय निवासी नाजिर की तीसरी पीढ़ी कर रही है. मंदिर दर्शन का समय सुबह 9 बजे से 1 बजे तक का है. उसके बाद वह कभी प्रवेश नहीं करने देते. दीवार के एक तरफ पूर्व मंदिर प्रमुखों के चित्र हैं. पहले प्रमुख यू सैन मिन थे. मैंने सुना है कि वह बारासात शरणार्थी शिविर में रहते थे. उन्होंने यह जगह तत्कालीन अंग्रेजों से खरीदी थी. बिजली का बिल अभी भी यू सुन मिन के नाम पर है. उस भी समय बहुत से लोग बौद्ध गया जाते हुए यहां ठहरते थे. अभी भी रहते हैं उस समय यह एक धर्मशाला थी. सीलन को भरी सीढ़ियों के आसपास म्यांमार भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी में भी निर्देश लिखे हुए हैं. यहां कुछ पेड़ भी लगे हुए है यह म्यांमार से आया है, इनका नाम जैमपात्रा है.
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मंदिर का निर्माण 1922 से शुरू हुआ था, 6 साल में बना था
मंदिर का निर्माण 1922 से शुरू हुआ था. मंदिर को बनाने में 6 साल का समय लगा था. मंदिर को लेकर एक कहानी भी है. यह कहानी 1997 की है. म्यांमार के एक व्यक्ति ने इस मंदिर में एक स्वर्ण बुद्ध प्रतिमा भेजी थी. इसके बाद से तत्कालीन प्रधान को धमकी भरे फोन आने लगे. प्रधान ने कोई जोखिम नहीं उठाया. उन्होंने म्यांमार दूतावास को बता कर मूर्ति गया भेज दी. धमकी भरे कॉल भी बंद हो गए. म्यांमार का यह मंदिर व समय के नियमों के अनुसार चल रहा है. कभी-कभी विभिन्न धर्मों के लोग आते हैं. अमिताभ घोष के उपन्यास ‘द ग्लास पैलेस’ में वर्णित इस बौद्ध मंदिर शुरू को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं.