World Environment Day: सुशील भारती, पटना. मगध क्षेत्र के लिए मई का महीना बहुत कष्टदायक रहा. तापमान 50 डिग्री के पार चला गया. गर्म हवाएं चलती रहीं. लू की चपेट में आकर कई लोगों की जान चली गई. कितने ही मवेशी प्यास से तड़प-तड़प कर मर गए. कारण है पर्यावरण के प्रति उपेक्षात्मक रवैया. पहाड़ों का अवैध उत्खनन, नदियों से रेत की निकासी. जंगलों का सफाया. वनों से लेकर मानव आबादी के इलाकों तक, एक-एक कर जल के सारे स्रोत सूख गए. न मोटर पंप काम कर पाया न चापानल. सारे कुएं-तालाब सूख गए. हालत यह हुई कि पानी की तलाश में जंगली जानवर शहरी इलाकों तक आने लगे. फल्गु और दरधा नदियां हालांकि सालों भर रेत से ढकी रहती हैं, लेकिन अन्य मौसमों में थोड़ी रेत हटाने पर पानी दिख जाता है. गर्मी के मौसम में हालत यह है कि चाहे जितनी गहराई तक रेत खोद डालो जल के दर्शन नहीं होते. इन नदियों के अतित्व पर संकट खड़ा हो गया है. न सतही जल बचा है न भूगर्भीय. कहते हैं कि फल्गु और दरधा कभी बारहमासी हुआ करती थीं. अब बरसाती हो चुकी हैं.
मगध में बड़ा जलसंकट
बिहार की भौगोलिक स्थिति विचित्र है. इसका उत्तरी इलाका नदियों की बाढ़ से त्रस्त्त रहता है तो दक्षिणी इलाका एक-एक बूंद पानी को तरस जाता है. एक तरफ जल का तांडव है चो दूसरी तरफ घोर जलाभाव. मगध क्षेत्र सूखे पहाड़ों और सूखी नदियों वाला जलसंकट का क्षेत्र है. यहां पहाड़ हैं तो उनपर पेड़ नहीं हैं. फल्गू और दरधा नदियां हैं तो रेत से ढकी हुईं. स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले थोड़ी रेत हटाने पर पानी निकल आता था, लेकिन अब जेसीबी से खुदाई करने पर भी पानी नहीं मिलता. जल का स्तर काफी नीचे जा चुका है. पहले मगध क्षेत्र में जल संचय के लिए तालाबों की भरमार थी. अब भ्रष्ट अधिकारियों और रियल स्टेट के खिलाड़ियों ने अधिकांश तालाबों का अस्तित्व खत्म कर दिया है. बचे-खुचे तालाबों के रखरखाव पर भी ध्यान नहीं दिया जाता. उनमें गाद भरते जाने दिया जाता है, ताकि जब वे पूरी तरह भर जाएं तो उनपर कंक्रीट की इमारत खड़ी की जा सके.
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घरों में गंगाजल पहुंचाने की योजना
बिहार सरकार ने उत्तर और दक्षिण के भौगोलिक संकट के निदान के लिए गंगा वाटर लिफ्ट स्कीम लांच किया. इसके तहत उत्तर में बाढ़ का प्रकोप लाने वाली गंगा नदी के अतिरिक्त जल को पाइपलाइन के जरिए दक्षिण के सूखाग्रस्त इलाकों तक पहुंचाना था. यह घर-घर गंगाजल पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना थी. इसपर काम हुआ भी. अभी तक मगध क्षेत्र की 60-65 प्रतिशत घरों तक गंगाजल पहुंचाने में सफलता भी मिली, लेकिन जिन घरों में गंगाजल पहुंचा उनके उपभोक्ताओं का कहना है कि यह पीने योग्य नहीं है. बिहार तक आते-आते गंगा का जल इतना प्रदूषित हो चुका होता है कि शोधन के बाद भी पीने लायक नहीं रहता. गया-नवादा के जिन घरों में गंगाजल पहुंचता है वह अक्सर गंदला होता है. उसे पीने में डर लगता है. मूल आवश्यकता पर्यावरण संरक्षण की है. पेड़ होंगे तो उनकी जड़ें बरसात के पानी को भूगर्भ तक पहुंचाएंगी. जल-स्तर को सुधारेंगी. गर्मी के प्रकोप से निजात दिलाएंगी. वन विभाग और जल-संसाधन विभाग को गंभीरता से काम करना होगा. तभी जीवन बचेगा.