World Environment Day: बारिश की कमी यहां चार माह के लिए लोगों को कर देती हैं खानाबदोश

World Environment Day: कैमूर जिले के अधौरा प्रखंड के सभी गांव जंगली क्षेत्र में पड़ता है. बारिश के मौसम में चार माह के लिए यहां के लोगों को खानाबदोश की जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ता है.

By Ashish Jha | June 5, 2024 9:01 PM
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World Environment Day: भभुआ नगर. गर्मी के मौसम में पानी का जल स्तर खिसकने के कारण प्रत्येक वर्ष अधौरा प्रखंड के पशुपालक अपने पशुओं के साथ गर्मी की मौसम के दस्तक देते ही मैदानी इलाकों में पलायन कर जाते हैं. इस बार भी वहां के पशुपालक अपने पशुओं को लेकर मैदानी इलाके में पलायन कर रहे हैं. जहां चार महीने तक पशुपालक जिले के धर्मावती नदी के तट पर या बक्सर, चौसा, उत्तर प्रदेश के दिलदारनगर, गाजीपुर, चंदौली सहित कर्मनाशा नदी के तट पर या गंगा नदी के तट के किनारे अपना बसेरा बनाते हैं. इस कड़ी धूप में भी पशुपालकों को अपने पशुओं के साथ प्लास्टिक से बनाये गए टेंट में या पेड़ के नीचे रहकर गुजर बसर करना पड़ता है. इस दौरान पशुपालकों को कई तरह की परेशानियों को भी सामना करना पड़ता है. लेकिन इन पशुपालकों के पास एक रास्ता के सिवा दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है. हालांकि बरसात होने के बाद पशुपालक एक बार फिर अपने गांव लौट आते हैं.

घोषित किया जा चुका है सेंचुरी क्षेत्र

दरअसल, पहाड़ी शृंखलाओं से घिरे कैमूर जिला का एक बड़ा भू-वन प्रक्षेत्र में आता है. इसे सरकार द्वारा सेंचुरी क्षेत्र भी घोषित किया जा चुका है. लेकिन, जैसे ही गर्मी शुरू होती है. अधौरा प्रखंड में आदमी से लेकर पशु-पक्षियों तक के लिए पानी का संकट खड़ा हो जाता है. प्रचंड धूप से दहकते पहाड़ी चट्टानों के बीच वन जीव पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगते हैं. हालांकि, वन जीवों को पानी उपलब्ध कराने के लिए वन विभाग द्वारा वन प्रक्षेत्र के अधौरा, चैनपुर और भभुआ रेंज में पर्वतपुर, चीतलबांध, जमुनीनार, सारोदाग, करर सहित कई वन स्थलों पर लगभग डेढ़ दर्जन चेक डैम बनाये गये हैं. हालांकि इसे वन क्षेत्र का बड़ा भू-भाग देखते हुए कम ही कहा जा सकता है. हालांकि पशुपालकों के लिए भी वन विभाग द्वारा एवं पीएचडी विभाग द्वारा कई योजनाओं के माध्यम से वाटर टैंक एवं चेक डैम बनाया गया है. ताकि घरेलू पशुओं को भी पानी मिले. लेकिन वाटर टैंक एवं चेक डैम में पानी नहीं रहने के कारण पशुपालक पलायन कर रहे हैं. लेकिन इस विकराल समस्या पर अभी तक किसी के द्वारा ध्यान नहीं दिया गया.

जंगली जानवर भटक कर आ जाते हैं गांव में

अधौरा प्रखंड के पशुपालक तो पानी के अभाव में अपने पशुओं को लेकर मैदानी इलाके में चले जाते हैं. लेकिन जंगली जानवर पानी की तलाश में भटक कर आये दिन मैदानी इलाकों में स्थित गांव में आ जाते हैं. अभी तक बाघ भी भटककर मैदानी इलाकों में आ चुके हैं. नीलगाय एवं जंगली सूअर, तेंदुआ, लकड़बग्घा, बंदर तो आये दिन मैदानी इलाकों में स्थित गांव में पानी की तलाश में पहुंच जाते हैं. कभी-कभी तो जंगली जानवरों के चपेट में ग्रामीण भी आ जाते हैं.

एक ही चुआं पर एक साथ पानी पीते हैं पशु एवं ग्रामीण

कैमूर जिले के अधौरा प्रखंड के सभी गांव जंगली क्षेत्र में पड़ता है. जंगली क्षेत्र में पड़ने के करण प्रत्येक वर्ष जल स्तर खिसक जाने के कारण पशु तो दूर ग्रामीणों को भी पानी के लिए भटकना पड़ता है. सबसे खासबात यह है कि अधौरा प्रखंड के कई गांव में एक ही चुआं पर गांव के ग्रामीण एवं पशुओं के साथ साथ जंगली जानवर भी पानी पीते हैं.

पशुओं के पीने के लिए बनाया वाटर टैंक, वह भी है महीनों से बंद

अधौरा प्रखंड में पानी की किल्लत को देखते हुए 11 पशु वाटर टैंक बनाये गये हैं. इसमें से सारोदाग गांव कोरंवा टोला, सड़की गांव के यादव और महादलित टोला तथा भुईफोर के यादव टोला के ही पशु वाटर टैंक चालू है. लेकिन शेष सभी वाटर टैंक बंद पड़े हुए हैं. जबकि वाटर टैंक बनाने में पीएचइडी विभाग द्वारा लाखों रुपये खर्च की गयी है. तो वहीं पशुओं को पानी के लिए नहीं भटकना पड़े. वन विभाग द्वारा चेक डैम बनाया गया है. लेकिन गर्मी के महीने में केवल यह शोभा के वास्तु बन कर रह गये हैं.

कर्मनाशा एवं दुर्गावती नदी का उद्गमस्थल है अधौरा

अधौरा प्रखंड कर्मनाशा एवं दुर्गावती नदी का उद्गमस्थल है. दोनों नदी एक ही जगह से निकलती है .दोनों नदी से मैदानी भागों के सैकड़ों गांव के लोग निर्भर है. लेकिन अधौरा प्रखंड में गर्मी के दिनों में उक्त दोनों नदियां सूख जाती है. उद्गम स्थल से पानी गर्मी के दिनों में इतना ही निकलता है कि आसपास के गांव के लोग केवल अपनी प्यास बुझ पाते हैं.

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क्या कहते हैं पशुपालक

बड़वान खुर्द गांव निवासी पशुपालक नंदलाल यादव ने कहा कि गर्मी के मौसम के दौरान कुआं का पानी सूख जाता है. इसके कारण हम लोग अपने पशुओं को लेकर पलायन कर जाते हैं. मैदानी इलाके में भी अधिकतर नदियां तालाब पोखर भी सूख जाता है. इसके कारण धर्मावती नदी या गंगा नदी के तट पर जाना पड़ता है.

क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि

अधौरा प्रखंड के दिघार पंचायत के मुखिया भोला यादव ने कहा कि पानी की समस्या के निजात के लिए प्रखंड स्तर से जिला स्तर तक समस्या को उठाया जाता है. पानी के अभाव में प्रत्येक वर्ष पशुपालक अपने पशुओं के साथ मैदानी इलाके में चले आते हैं. बारिश होने के बाद एक बार फिर गांव पर लौटते हैं. अगर पानी की समस्या से निजात मिल जाती तो पशुपालकों का पलायन रुक जाता.

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क्या कहते हैं डीएफओ

इस संबंध में पूछे जाने पर जिला वन पदाधिकारी चंचल प्रकाशम ने कहा कि चेक डैम का खुदाई जंगल में किया जाता है. ताकि जंगल के बरसात का पानी तेजी से बहे नहीं और पानी चेक डैम में भरकर इकट्ठा हो एवं धीरे-धीरे सूखे भी. तो जंगल का वाटर लेवल बना रहे. साथ ही उन्होंने कहा कि जंगली जानवरों को पानी पीने के लिए कृत्रिम वाटर होल बनाया जाता है. समय-समय पर वन विभाग द्वारा पानी भरा जाता है. ताकि जंगली जानवरों को पानी पीने के लिए भटकना ना पड़े.

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