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Aditya L1: सौर भूकंप के अध्ययन पर जोर, जानिए इससे क्या हो सकता है नुकसान

aditya l1 launch update - सूर्य के अध्ययन की आवश्यकता के बारे में आईआईए के प्रोफेसर डॉ आर रमेश कहते हैं कि जिस तरह पृथ्वी पर भूकंप आते हैं, उसी तरह सूर्य की सतह पर सौर भूकंप भी होते हैं, जिन्हें कोरोनल मास इजेक्शन कहा जाता है.

Aditya L1 Mission Research : चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो का सौर मिशन आदित्य-एल1 लॉन्चिंग के लिए तैयार है. भारत के सौर मिशन की लॉन्चिंग से पहले एक शीर्ष वैज्ञानिक का सुझाव है कि सौर भूकंपों का अध्ययन करने के लिए 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी जरूरी है, क्योंकि यह पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्रों को बदल सकती है. भारत के आदित्य-एल1 सूर्य मिशन की रवानगी से पहले एक शीर्ष वैज्ञानिक ने कहा है कि पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले सौर भूकंपों का अध्ययन करने के लिए 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी जरूरी है. सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 मिशन को शनिवार पूर्वाह्न 11.50 बजे श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा.

सूर्य के अध्ययन की आवश्यकता के बारे में भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए) के प्रोफेसर एवं प्रभारी वैज्ञानिक डॉ आर रमेश कहते हैं कि जिस तरह पृथ्वी पर भूकंप आते हैं, उसी तरह सूर्य की सतह पर सौर भूकंप भी होते हैं, जिन्हें कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) कहा जाता है. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में लाखों-करोड़ों टन सौर सामग्री अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में बिखर जाती है. उन्होंने कहा कि इन सीएमई की रफ्तार लगभग 3,000 किमी प्रति सेकेंड होती है.

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डॉ रमेश ने उल्लेख किया, कुछ सीएमई पृथ्वी की ओर भी आ सकते हैं. सबसे तेज सीएमई लगभग 15 घंटे में पृथ्वी के निकट पहुंच सकता है. यह मिशन इस तरह के अन्य अभियानों से क्यों अलग है? इस पर उन्होंने कहा, हालांकि ईएसए (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) और नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) ने अतीत में इसी तरह के मिशन प्रक्षेपित किये हैं, लेकिन आदित्य एल1 मिशन दो मुख्य पहलुओं में अद्वितीय होगा क्योंकि हम सूर्य के परिमंडल का निरीक्षण उस स्थान से कर पाएंगे जहां से यह लगभग शुरू होता है. इसके अलावा हम सौर वायुमंडल में चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों का भी निरीक्षण कर पाएंगे, जो कोरोनल मास इजेक्शन या सौर भूकंप का कारण हैं.

उन्होंने कहा कि कभी-कभी ये सीएमई उपग्रहों को नष्ट कर देते हैं और सीएमई से निकले कण प्रवाह के कारण उपग्रहों पर मौजूद सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खराब हो सकते हैं. डॉ रमेश ने कहा कि ये सीएमई पृथ्वी तक आते हैं. उदाहरण के लिए, 1989 में जब सौर वायुमंडल में भारी हलचल हुई तो कनाडा में क्यूबेक क्षेत्र लगभग 72 घंटों तक बिजली के बिना रहा था. वहीं 2017 में सीएमई की वजह से स्विट्जरलैंड का ज्यूरिख हवाई अड्डा करीब 14 से 15 घंटे तक प्रभावित रहा था.

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डॉ रमेश ने कहा कि एक बार जब सीएमई पृथ्वी पर पहुंच जाते हैं, जो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों वाले एक बड़े चुंबक की तरह है, तो वे चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ यात्रा कर सकते हैं और फिर वे पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्र को बदल सकते हैं. उन्होंने कहा कि एक बार जब भू-चुंबकीय क्षेत्र प्रभावित हो जाता है, तो इससे उच्च वोल्टेज वाले ट्रांसफॉर्मर प्रभावित हो सकते हैं. उन्होंने रेखांकित किया, इसलिए सूर्य की लगातार निगरानी के लिए अवलोकन केंद्र स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है, जो लैग्रेंजियन (एल1) बिंदु से संभव है.

भारत अपने उपग्रह को लैंग्रेंजियन-1 बिंदु पर स्थापित करने के लिए आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण कर रहा है. डॉ रमेश के अनुसार, सूर्य का अवलोकन करने संबंधी 125 वर्षों की लंबी परंपरा वाली संस्था आईआईए के अधिकारियों ने महसूस किया कि उन्हें 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी करनी चाहिए ताकि सूर्य पर जो भी परिवर्तन हो रहा हो, उसे बहुत अच्छी तरह से देखा जा सके.

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वैज्ञानिक ने कहा कि हालांकि सूर्य का अवलोकन जमीन पर स्थित दूरबीन से किया जा सकता है, लेकिन इसमें दो प्रमुख सीमाएं हैं. उनके अनुसार, एक सीमा तो यह है कि सूर्य की निगरानी के लिए एक दिन में केवल आठ या नौ घंटे ही उपलब्ध होते हैं क्योंकि ऐसे अवलोकन केवल दिन के समय ही किये जा सकते हैं, रात में नहीं.

उन्होंने कहा कि पृथ्वी से सूर्य की निगरानी करते समय दूसरी चुनौती यह है कि सूर्य से आने वाली रोशनी वायुमंडल में धूल के कणों की वजह से बिखर जाती है जिससे तस्वीर धुंधली हो सकती है. उन्होंने कहा कि सौर अवलोकन में इन कमियों से बचने के लिए आईआईए को सूर्य के 24 घंटे निर्बाध अवलोकन के लिए अंतरिक्ष में एक दूरबीन रखने की आवश्यकता महसूस हुई.

ऐसे पांच सुविधाजनक बिंदु हैं जहां से सूर्य पर नजर रखी जा सकती है. इन्हें लैग्रेंजियन बिंदु कहा जाता है, जिनका नाम इतालवी खगोलशास्त्री जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इन्हें खोजा था. वैज्ञानिक ने कहा कि लैग्रेंज बिंदुओं पर सूर्य और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल पूरी तरह से संतुलित होता है.

आईआईए के प्रोफेसर ने कहा, इन सभी पांच बिंदुओं में से, सूर्य का निर्बाध दृश्य देखने के लिए एल1 नामक एक बिंदु है. यह बिंदु पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित है. उनके अनुसार, आदित्य एल1 अंतरिक्ष मिशन को लैग्रेंजियन-1 बिंदु तक पहुंचने में 100 से अधिक दिन लगेंगे.

डॉ रमेश ने कहा कि इस उपग्रह से डेटा बेंगलुरु के बाहरी क्षेत्र में ब्यालालु के पास स्थित इसरो के भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क (आईडीएसएन) में डाउनलोड किया जाएगा और एक समर्पित इंटरनेट लिंक के माध्यम से आईआईए के उपकरण संचालन केंद्र को प्रेषित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि डेटा को संसाधित किया जाएगा और आम जनता के साथ-साथ वैज्ञानिक समुदाय के उपयोग के वास्ते प्रसार के लिए इसरो को वापस भेजा जाएगा. (भाषा इनपुट के साथ)

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