AI Use in Ad Industry : जेनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल उत्पादक सामग्री (इनपुट) के रूप में करने वाले विज्ञापनदाताओं के लिए इससे संबंधित लाइसेंस एवं अनुमति हासिल करना अनिवार्य होगा. भारतीय विज्ञापन मानक ब्यूरो (एएससीआई) ने हाल ही में यह निर्देश जारी किया है. ‘जेनरेटिव एआई ऐंड एडवर्टाइजिंग’ शीर्षक नाम से प्रकाशित एक श्वेत पत्र में एएससीआई ने कहा कि अगर कोई सामग्री तैयार करने में किसी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है तो उसके (तकनीक) व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए पूर्व अनुमति लेना जरूरी होगा.
इस श्वेत पत्र में विज्ञापन उद्योग में एआई के इस्तेमाल से जुड़े छह जोखिमों का जिक्र किया गया है. इनके अलावा इसमें उन कानूनी प्रावधानों का भी जिक्र किया गया है, जिनके तहत उल्लंघन का मामला बनता है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, एएससीआई में मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) एवं महासचिव मनीषा कपूर ने को बताया कि सबसे बड़ा जोखिम किसी विषय-वस्तु के कॉपीराइट अधिकार से जुड़ा है. उन्होंने कहा, एआई उन चीजों का इस्तेमाल करता है जो इंटरनेट पर पहले से उपलब्ध हैं. एआई इन सामग्री को उठाकर अपनी व्याख्या के साथ उपलब्ध करा रहा है. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या इसका कानूनी या कॉपीराइट से जुड़ा कोई जोखिम हो सकता है? क्या उस स्थिति में इसे मूल कार्य माना जाएगा?
देश में विज्ञापन क्षेत्र के स्व-नियामकीय संगठन एएससीआई ने कृत्रिम मेधा (एआई) के बढ़ते चलन के बीच आगाह किया कि विज्ञापन में जेनरिक एआई टूल का इस्तेमाल रचनात्मक श्रम की भी जगह ले सकता है. भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) ने आने वाले समय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का विज्ञापन उद्योग पर संभावित प्रभावों को हल्का करने के लिए कुछ उपाय भी सुझाये. इनमें मानवीय क्षमताओं को बढ़ाना, खासकर संपादकीय निरीक्षण और अनुपालन पर मानवीय कौशल में निवेश करना शामिल है.
जेनरिक एआई के तहत पहले से प्रोग्राम न होने के बावजूद खुद ही वह उपलब्ध जानकारी के भीतर रुझानों एवं खासियत के आधार पर नये रुझान की तलाश करता है और उसके आधार पर नया वर्गीकरण करता है. विधि कंपनी खेतान एंड कंपनी के सहयोग से तैयार एक श्वेत पत्र में एएससीआई ने कहा कि जेनेरिक एआई सेवाओं की पहुंच रचनात्मक श्रम के संभावित विस्थापन को लेकर चिंता पैदा करती है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, विज्ञापनों, विपणन सामग्रियों और प्रचार सामग्री की प्रतियां बनाने के लिए एआई टूल का इस्तेमाल करना लागत के लिहाज से कॉपीराइटरों की सेवाएं लेने की तुलना में कहीं अधिक किफायती हो सकता है. फिलहाल ओपनएआई की चैटजीपीटी, गूगल बार्ड और एडोब फायरफ्लाई समेत कई कंपनियां अपने बीटा परीक्षण के दौरान प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण या मुफ्त पहुंच की पेशकश भी कर रही हैं.
इस श्वेत पत्र में कॉपीराइट स्वामित्व को भी एक चुनौती के रूप में चिह्नित किया गया है. इसकी वजह यह है कि फिलहाल देश में एआई को एक कानूनी इकाई के रूप में मान्यता नहीं दी गई है. ऐसा होने से मानवीय संलिप्तता के बगैर पूरी तरह एआई उपकरण द्वारा किया गया कोई भी कार्य भारतीय कानून के तहत कॉपीराइट संरक्षण के लिए पात्र नहीं हो सकता है. विज्ञापनदाताओं के पास एआई-जनित कार्यों का कानूनी स्वामित्व नहीं होने पर तीसरे पक्ष द्वारा उल्लंघन करने पर उनके पास सीमित विकल्प ही रह जाएंगे.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, विपणन या विज्ञापन एजेंसियों को अगर एआई-जनित रचनात्मक कार्यों का स्वामित्व नहीं मिलता है तो उन्हें अपने ग्राहकों को रचनात्मक सामग्री का पूर्ण स्वामित्व हस्तांतरित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. एएससीआई की मुख्य कार्यकारी एवं महासचिव मनीषा कपूर ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में जेनरेटिव एआई का चलन बढ़ने से गोपनीयता, डेटा सुरक्षा, पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे प्रमुख मुद्दों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है.