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Explainer: रांची में 50 साल पहले खुला मोटर ट्रेनिंग स्कूल, प्रशासन का अभियान, फिर क्यों नहीं थमते सड़क हादसे?

रांची में मोटर ट्रेनिंग स्कूल की स्थापना वर्ष 1974 में शशि भूषण अग्रवाल ने की थी. शशिभूषण अग्रवाल उस परिवार से आते थे, जिसने वर्ष 1911 में भारत में ड्राइविंग स्कूल शुरुआत की थी. इस ड्राइविंग स्कूल को 1914 में कोलकाता में अंग्रेजी हुकूमत की ओर से मान्यता प्रदान की गई थी.

रांची : झारखंड में सड़क हादसे और सड़क हादसों से होने वाली मौत का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है. अभी हाल के दिनों में झारखंड परिवहन विभाग की समीक्षा बैठक में यह बात सामने उभरकर आई है कि इस पठारी प्रदेश में सबसे अधिक 67 फीसदी सड़क हादसे सीधी सड़कों पर होते हैं, जबकि ओवर स्पीड की वजह से करीब 89 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं घटती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि झारखंड में अधिकतर सड़क हादसे यातायात नियमों की जानकारी के अभाव में या फिर यातायात नियमों का उल्लंघन की वजह से होते हैं. इससे भी बड़ी बात यह है कि झारखंड की राजधानी रांची में आज से करीब 50 साल पहले तत्कालीन संयुक्त बिहार के दक्षिणी हिस्से के लोगों को गाड़ी चलाने और यातायात नियमों की जानकारी देने के लिए नेशनल मोटर ट्रेनिंग एवं इंजीनियरिंग स्कूल खोला गया था. हालांकि, इसके इलावा अकेले रांची में करीब नौ से अधिक मोटर ट्रेनिंग स्कूल चलाए जाते हैं. फिर भी, यातायात नियमों के उल्लंघन के मामलों और सड़क हादसों में कमी नहीं आ रही है.

रांची में किसने खोली मोटर ट्रेनिंग स्कूल

नेशनल मोटर ट्रेनिंग एंड इंजीनियरिंग स्कूल की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, रांची में मोटर ट्रेनिंग स्कूल की स्थापना वर्ष 1974 में शशि भूषण अग्रवाल ने की थी. शशिभूषण अग्रवाल उस परिवार से आते थे, जिसने वर्ष 1911 में भारत में ड्राइविंग स्कूल शुरुआत की थी. इस ड्राइविंग स्कूल को 1914 में कोलकाता में अंग्रेजी हुकूमत की ओर से मान्यता प्रदान की गई थी. वर्ष 1974 का साल वह समय था, जब भारत के ऑटोमोबाइल बाजार पर मुख्य रूप से फिएट, जीप और एंबेसडर कारों की बिक्री हुआ करती थी और यह गाड़ियां खास वर्गों के पास हुआ करती थी.

शुरू से ही यातायात नियमों के प्रति सजग थे शशिभूषण अग्रवाल

नेशनल मोटर ट्रेनिंग एंड इंजीनियरिंग स्कूल की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, रांची में शशिभूषण अग्रवाल की ओर से मोटर ट्रेनिंग स्कूल खोलने का मुख्य उद्देश्य यहां के लोगों को न केवल व्यावहारिक तौर पर लोगों को ड्राइविंग सिखाना था, बल्कि यातायात नियमों के प्रति सजग बनाना, गाड़ियों में इस्तेमाल कल-पुर्जों की जानकारी देना और ड्राइविंग से जुड़ी सभी व्यावहारिक पहलुओं से अवगत कराना था. वह हमेशा कहते थे कि अच्छी गाड़ी के लिए चालक की आवश्यकता होती है और इसके लिए गाड़ियों से संबंधित सभी नियमों की जानकारी रखना जरूरी है.

झारखंड में सीधी सड़कों पर होते हैं सबसे अधिक हादसे

परिवहन विभाग की ओर से पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में सीधी सड़कों पर सर्वाधिक 67 फीसदी हादसे होते हैं. वहीं, ओवर स्पीड के कारण 89 फीसदी दुर्घटनाएं होती हैं. वहीं, कुल सड़क हादसों का 42 फीसदी नेशनल हाइवे पर, 12 फीसदी स्टेट हाइवे पर और छोटी सड़कों पर 46 फीसदी सड़क हादसे होते हैं. इसी प्रकार, घुमावदार सड़कों पर 18 फीसदी, ब्रिज पर दो फीसदी, सड़क में गड्ढों के कारण एक फीसदी, तिराहे पर छह फीसदी, दोराहे पर दो फीसदी, चौराहे पर दो फीसदी, गोलचक्कर पर एक फीसदी और छोटी सड़कों से एनएच पर मिलनेवाले जंक्शन पर एक फीसदी सड़क हादसे होते हैं.

झारखंड में सुरक्षा मानकों की नहीं करते परवाह

परिवहन विभाग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, झारखंड में खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाने की वजह से करीब 4 फीसदी सड़क हादसे होते हैं, तो शराब पीकर नशे में गाड़ी चलाने के बाद करीब एक फीसदी सड़क दुर्घटनाएं घटती हैं. वहीं, गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल फोन पर बात करने की वजह से करीब एक फीसदी सड़क हादसे होते हैं.

टू व्हीलर से सबसे अधिक 33 फीसदी सड़क हादसे

परिवहन विभाग के आंकड़ों में चौंकाने वाले तथ्य यह दिए गए हैं कि झारखंड में होने वाले कुल सड़क हादसों में करीब 33 फीसदी योगदान दोपहिया वाहनों की है. इसी प्रकार, फोर व्हीलर्स, टैक्सी, कार और तिपहिया वाहनों की बात करें, तो राज्य की सड़कों पर होने वाले हादसों में कार, वैन, जीप और टैक्सी का करीब 18 फीसदी योगदान है. ऑटोरिक्शा की वजह से करीब 4 फीसदी सड़क हादसे होते हैं. ट्रकों और लॉरियों की वजह से झारखंड की सड़कों पर करीब 17 फीसदी दुर्घटनाएं घटती है, जबकि भारी वाहनों से चार फीसदी, मालवाहक टेंपो और ट्रैक्टर से सात फीसदी, साइकिल से 3 फीसदी और अन्य वजहों से करीब 11 फसदी सड़क हादसे होते हैं.

सड़क हादसों में सबसे अधिक 25 से 35 वर्ष के लोगों की मौत

परिवहन विभाग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, झारखंड में होने वाले सड़क हादसों में सबसे अधिक 25 से 35 वर्ष के करीब 23 लोगों की मौत हो जाती है. इसी प्रकार, इन सड़क हादसों में 18 से 25 वर्ष की उम्र के लोगों की 19 फीसदी, 35 से 45 वर्ष वाले लोगों की 19 फीसदी, 45 से 60 उम्र के लोगों की 12 फीसदी, 60 से अधिक उम्र वाले लोगों की 4 फीसदी और 18 से कम उम्र वाले 7 फभ्सदी लोगों की हर साल मौत हो जाती है.

क्यों होते हैं सड़क हादसे

मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के कारण मौतों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. अधिकतर सड़क हादसों का कारण तेज गति से वाहन चलाना, नशे में वाहन चलाना और लापरवाही से गाड़ी चलाने की बात सामने आती है. रांची जिला परिवहन विभाग की ओर से हमेशा कहा जाता है कि ट्रैफिक नियमों का पालन करने से खुद के साथ दूसरे लोगों को भी सुरक्षित रखा जा सकता है. खासकर विभाग ने अभिभावकों से अपील की है कि वे नाबालिग को वाहन न दें और खुद भी ट्रैफिक नियमों का पालन करें.

रोड पर स्टंट करना जानलेवा हो रहा साबित

रांची की सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं के पीछे एक अहम कारण शहर के नौजवानों द्वारा रोड पर तेज गति से बाइक चलाकर किए जाने वाले स्टंट को भी बताया जा रहा है. बाइक पर करतब दिखाकर वीडियो बनाना नौजवानों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है. रांची पुलिस के रिकार्ड में दर्ज कारणों में सड़क हादसों में होने वाली मौतों के पीछे स्टंट को भी एक कारण बताया गया है. स्टंट करने की वजह से रांची के नौजवान सड़क हादसे के शिकार हो रहे हैं. रांची में सड़क हादसे में मरने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है.

प्रशासनिक अभियान के बावजूद नहीं मान रहे लोग

सबसे बड़ी बात यह है कि झारखंड की राजधानी रांची में सड़क हादसों को रोकने के लिए जिला प्रशासन की ओर से लगातार प्रयास किया जा रहा है. प्रशासन की ओर से नियमित रूप से वाहन चेकिंग अभियान चलाया जा रहा है. रोड सेफ्टी की टीम दुर्घटना स्थल को चिह्नित कर साइन बोर्ड, रिम्बल स्ट्रीप आदि भी लगा रही है. इसके बावजूद लोग यातायात नियमों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे.

परिवहन विभाग ने चह्नित किए ब्लैक स्पॉट

झारखंड में सड़क हादसों में कमी लाने के लिए परिवहन विभाग की ओर से राजधानी रांची समेत पूरे राज्यों में ब्लैक स्पॉट को चिह्नित किया है. परिवहन विभाग ने पूरे राज्य में करीब 93 ब्लैक स्पॉट चिह्नित किए गए हैं. इनमें अकेले रांची जिले में ही करीब 22 ब्लैक स्पॉट हैं. इन ब्लैक स्पॉट्स में रांची शहर में ही करीब 19 ब्लैक स्पॉट हैं. ये सभी ब्लैक स्पॉट कहीं तीखे मोड़ के तौर पर चिह्नित किए गए हैं, तो किसी डायवर्सन को ब्लैक स्पॉट बनाया गया है. रांची में सिरमटोली चौक, कांटाटोली चौक, करमटोली चौक और रातू रोड सहित कई जगहों को ब्लैक स्पॉट के तौर पर चिह्नित किया गया है.

रांची में हर महीने 40-45 लोग गंवा रहे हैं जान

सड़क सुरक्षा कार्यालय की ओर से किए गए एक शोध के अनुसार, झारखंड की राजधानी रांची में हर महीने औसतन 40 से 45 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवा रहे हैं. यह आंकड़े तब सामने आ रहे हैं, जब राजधानी के अधिकांश सड़कों को बेहतरीन बना दिया गया है और ब्लैक स्पॉट को चिह्नित करके दुरुस्त कर दिया गया है. सड़क सुरक्षा कार्यालय के शोध में बताया गया है कि राजधानी में अब मानव गलतियों की वजह से हादसे सामने आ रहे हैं. शोध के दौरान सड़क हादसों के कई नए वजह भी सामने आए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख स्टंट कर वीडियो बनाना, ईयर बड्स का इस्तेमाल, तेज रफ्तार और ड्रंक एंड ड्राइव है.

Also Read: झारखंड में सबसे अधिक हादसे सीधी सड़क पर, 89 फीसदी इस वजह से

2023 में 210 लोगों की चली गई जान

रांची जिला परिवहन विभाग की ओर से जून महीने में जारी किए गए एक जानकारी के अनुसार, शहर में होने वाले सड़क हादसों के आंकड़े बेहद चिंताजनक है. चालू वर्ष 2023 के जनवरी महीने से लेकर मई महीने के दौरान करीब 210 लोग रांची में हुए सड़क हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं. हालांकि, इस दौरान करीब 170 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं. इससे पहले, वर्ष 2022 में कुल 450 लोगों ने सड़क हादसे में अपनी जान गंवाई थी और वर्ष 2021 में सड़क हादसों में 448 लोगों की मौत हो गई थी.

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