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गरीबों का हमेशा ख्याल रखते हैं रतन टाटा, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दान देकर बने सबसे बड़े परोपकारी

रतन नवल टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को गुजरात के सूरत में हुआ. उनके पिता का नाम नवल टाटा है. रतन टाटा जब 11 साल के हुए तो वर्ष 1948 में उनके माता-पिता एक-दूसरे से अलग हो गए. इसके बाद उनके पिता नवल टाटा ने सिमोन से शादी कर ली.

नई दिल्ली : रतन नवल टाटा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. पूरी दुनिया उन्हें रतन टाटा के नाम से जानती है. वे न केवल भारत के दिग्गज उद्योपति हैं, बल्कि सबसे बड़े परोपकारी भी हैं. उनके बारे में कई किम्वदंतिया भी हैं. वे टाटा संस के पूर्व चेयरमैन हैं. रतन नवल टाटा गरीबों, छात्रों, शोधकर्ताओं और नवोन्मेषी व्यक्तियों का हमेशा ख्याल रखते हैं. उनके परोपकारी होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वे कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दान देकर दुनिया के सबसे बड़े दानदाताओं की सूची में शामिल हो गए. रतन टाटा 1990 से लेकर 2012 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन और इसके बाद अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक उसके अंतरिम अध्यक्ष रहे. इसके अलावा, उन्होंने कई धर्मार्थ ट्रस्टों के प्रमुख के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं. 21वीं सदी के पहले साल वर्ष 2000 में उन्हें भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाजा गया. इसके बाद वर्ष 2008 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी नवाजा गया. आइए, आज हम ऐसे परोपकारी उद्योगपति रतन नवल टाटा के बारे में जानते हैं.

रतन टाटा का कब हुआ जन्म

रतन नवल टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को गुजरात के सूरत में हुआ. उनके पिता का नाम नवल टाटा है. रतन टाटा जब 11 साल के हुए तो वर्ष 1948 में उनके माता-पिता एक-दूसरे से अलग हो गए. इसके बाद उनके पिता नवल टाटा ने सिमोन से शादी कर ली, जिससे उनके दो भाई जिमी और नोएल टाटा हुए. मां से अलग होने के बाद टाटा समूह के तत्कालीन प्रमुख होर्मुसजी टाटा ने रतन टाटा को गोद ले लिया और बाद में उनकी पत्नी नवाजबाई टाटा ने उनका लालन-पोषण किया.

रतन टाटा की पढ़ाई

रतन टाटा ने आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई तत्कालीन बंबई और अब मुंबई के कैंपियन स्कूल से की. इसके बाद उन्होंने इसी शहर के कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल, शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई की. स्कूली पढ़ाई खत्म करने के बाद रतन टाटा न्यूयॉर्क चले गए और वहां पर उन्होंने रिवरडेल कंट्री स्कूल वर्ष 1955 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद रतन टाटा ने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने 1959 में वास्तुकला में स्नातक की डिग्री हासिल की. वर्ष 2008 में उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी को करीब 50 मिलियन डॉलर का उपहार दिया, जो यूनिवर्सिटी के इतिहास में सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय दान बन गया. इसके अलावा, रतन टाटा ऐसे परोकारी व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी आमदनी का करीब 60 से 65 फीसदी हिस्सा दान में दे दिया.

टाटा ग्रुप से कब जुड़े रतन टाटा

विदेश में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद रतन टाटा वर्ष 1961 में टाटा ग्रुप में शामिल हुए, जहां उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया. बाद में उन्होंने 1991 में जेआरडी टाटा के रिटायरमेंट के बाद टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया. उनके कार्यकाल में टाटा ग्रुप ने खुद को भारत केंद्रित व्यवसायों को वैश्विक स्तर पर स्थापित कर लिया. इसी दौरान टाटा ग्रुप ने टेटली, जगुआर लैंड रोवर और कोरस का अधिग्रहण किया.

सबसे बड़े निवेशक हैं रतन टाटा

रतन टाटा एक दिग्गज उद्योगपति और परोपकारी होने के साथ-साथ बड़े निवेशक भी हैं. उन्होंने देश-विदेश के कई स्टार्टअप्स में कई निवेश किए हैं. बताया जाता है कि टाटा ने अब तक 30 से अधिक स्टार्ट-अप में निवेश किया है, जिनमें से अधिकांश अपनी व्यक्तिगत क्षमता से और कुछ अपनी कंपनी के माध्यम से निवेश किया.

नवोन्मेष और नवाचार को प्राथमिकता देते हैं रतन टाटा

रतन टाटा नवोन्मेष और नवाचार को हमेशा प्राथमिकता देते हैं. यही वजह है कि उन्होंने न केवल टाटा ग्रुप की कंपनियों में बल्कि स्टार्टअप्स में निवेश के जरिए युवा प्रतिभाओं को कई जिम्मेदारियां सौंपीं. उनके नेतृत्व में, सहायक कंपनियों के बीच ओवरलैपिंग संचालन को कंपनी-व्यापी संचालन में सुव्यवस्थित किया गया.

1991 से 2012 तक टाटा संस के रहे चेयरमैन

रतन नवल टाटा 1991 से 28 दिसंबर 2012 को अपनी सेवानिवृत्ति तक टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस के अध्यक्ष बने रहे. उनके कार्यकाल के दौरान टाटा ग्रुप का रिवेन्य कई गुना बढ़ गया, जो 2011-12 में कुल 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया. सेवानिवृत्ति के बाद रतन टाटा को टाटा संस, टाटा इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स के मानद चेयरमैन की उपाधि से सम्मानित किया गया है.

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टाटा ग्रुप के इन कंपनियों के प्रमुख के तौर पर संभाली जिम्मेदारी

रतन टाटा टाटा ग्रुप की कई प्रमुख कंपनियों के भी अध्यक्ष रहे. इनमें टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पावर, टाटा ग्लोबल बेवरेजेज, टाटा केमिकल्स, इंडियन होटल्स और टाटा टेलीसर्विसेज शामिल हैं. वे भारत और विदेशों में विभिन्न संगठनों से भी जुड़े हुए हैं. वे मित्सुबिशी कॉरपोरेशन और जेपी मॉर्गन चेज के अंतरराष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड में शामिल हैं. इसके अलावा, वे सर रतन टाटा ट्रस्ट एंड एलाइड ट्रस्ट, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट एंड एलाइड ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. वह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रबंधन परिषद के अध्यक्ष हैं. वह कॉर्नेल विश्वविद्यालय और दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के न्यासी बोर्ड में भी कार्य करते हैं.

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आजीवन कुंआरा रहे रतन टाटा

रिटायरमेंट के बाद अब वे अधिकांश समय अपने परिवार के साथ बिताते हैं. उन्होंने शादी नहीं की. बताया जाता है कि भारत और चीन के बीच हुए युद्ध से वे इतने व्यथित हो गए कि उन्होंने शादी करने की इच्छा ही त्याग दी. इसके बाद वे अपने छोटे भाई जिमी और नोएल टाटा के बच्चों के साथ अपना समय बिताते हैं. नोएल टाटा के बेटे नेविले टाटा की शादी किर्लोस्कर मोटर्स के विक्रम किर्लोस्कर की बेटी मानसी किर्लोस्कर हुई है.

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