अंतरिक्ष अभियानों में अग्रणी नासा के साठ साल, जानें नासा की सफलताओं और विफलताओं के बारे में
हम एक अबूझ ब्रह्मांड में रहते हैं. इसमें कितने रहस्य छिपे हुए हैं, यह जानने की उत्सुकता सभी को रहती है. अमेरिका की अंतरिक्ष कार्यक्रम संचालित करने वाली संस्था नासा ने अपनी स्थापना के बाद से ही इन रहस्यों को उजागर करने का काम किया है. चांद पर कदम रखना हो या मंगल पर पानी […]
हम एक अबूझ ब्रह्मांड में रहते हैं. इसमें कितने रहस्य छिपे हुए हैं, यह जानने की उत्सुकता सभी को रहती है. अमेरिका की अंतरिक्ष कार्यक्रम संचालित करने वाली संस्था नासा ने अपनी स्थापना के बाद से ही इन रहस्यों को उजागर करने का काम किया है. चांद पर कदम रखना हो या मंगल पर पानी होने की संभावना ढूंढ़ना, नासा ने हर बार खुद को अग्रणी साबित किया है. हालांिक, अपना 60वां जन्मदिन मना रहे नासा का यह सफर आसान नहीं रहा है और तमाम चुनौतियों ने उसकी राह में बाधाएं भी उत्पन्न की हैं. इन्हीं बातों के इर्द-गिर्द केंद्रित है आज का इन डेप्थ…
कब हुई स्थापना
नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की स्थापना 1 अक्तूबर, 1958 को तत्कालीन राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजनहावर ने की थी. यह एजेंसी नासा स्पेस प्रोग्राम का दायित्व उठाने के साथ ही एरोनॉटिक्स और एयरोस्पेस रिसर्च भी करती है. इससे पहले नेशनल एडवाइजरी कमिटी फॉर एरोनॉटिक्स यानी एनएसीए ही 1946 से एरोनॉटिकल रिसर्च कर रहा था. 29 जुलाई, 1958 को नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एक्ट पारित कर एनएसीए के अस्तित्व को समाप्त कर दिया गया. 1 अक्तूबर, 1958 को जब नासा अस्तित्व में आया तो ओहियो स्थित केस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष टी कीथ ग्लेनन इसके पहले एडमिनिस्ट्रेटर बनाये गये. तब से लेकर अब तक नासा अनेक उपलब्धियां हासिल कर चुका है.
कुछ प्रमुख उपलब्धियां
एक्सप्लोरर 1 लॉन्च
रूसी उपग्रह स्पुतनिक की सफलता के तीन महीने के भीतर ही नासा की जेट प्रोपल्सन लेबोरेटरी द्वारा जनवरी 1958 में मानवरहित अमेरिकी उपग्रह एक्सप्लोरर 1 लॉन्च किया गया, जो नासा की पहली प्रमुख उपलब्धि रही. इस उपग्रह को लॉन्च करने का मुख्य उद्देश्य धरती की कक्षा में मौजूद कॉस्मिक किरणों का अध्ययन करना था.
नील आर्मस्ट्रांग के चांद पर कदम
अपोलो प्रोग्राम के जरिये चांद पर उतरने की अमेरिकी कवायद 1967 से चल रही थी और इस क्रम में इसके 10 अभियान असफल हो गये थे. आखिरकार अपोलो 11 को सफलता मिली और अमेरिका ने इतिहास रच दिया. इस यान के जरिये अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग 20 जुलाई, 1969 को चंद्रमा पर पैर रखनेवाले पहले व्यक्ति बने.
मार्स पाथफाइंडर रोबोट
मंगल ग्रह के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए 1996-97 के बीच अमेरिका के मानवरहित अभियान की एक बड़ी उपलब्धि मार्स पाथफाइंडर रोबोट को मंगल ग्रह पर भेजना रहा. लगभग सात महीने में 390 मिलियन मील की दूरी तय कर मार्स पाथफाइंडर रोबोट ने मंगल ग्रह पर पहुंचकर वहां से 2.3 बिलियन बिट्स डेटा भेजे, जिनमें 17,000 फोटोग्राफ भी शामिल थे. इन डेटा से ही पता चला कि मंगल संभवत: पानी है, यह गर्म है और जीवन के अनुकूल है.
सुपर सेंसेटिव एक्स-रे टेलीस्कोप आविष्कार
वर्ष 1999 में नासा ने सुपर सेंसेटिव एक्स-रे टेलीस्कोप का तोहफा पूरी दुनिया को दिया. इसके जरिये स्प्लिट सेकेंड को देखना संभव हो सका, जिसमें छोटे स्पेस कण ब्लैक हाइड में गायब हो जाते हैं. यह टेलीस्कोप इमेज बनाने और एनर्जी फ्लक्चुएशंस को रिकॉर्ड करने के लिए विजिबल लाइट की जगह हाई एनर्जी का इस्तेमाल करता है और यही इसकी खूबी है.
रियूजेबल स्पेसक्राफ्ट का निर्माण
अपोलो रॉकेट का एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता था, लेकिन नासा के अंतरिक्ष यात्रियों और इंजीनियरों ने वर्षों के प्रयास के बाद ऐसा स्पेस स्पेसक्रॉस्ट तैयार किया जो रियूजेबल था यानी जिसका एक से ज्यादा बार इस्तेमाल किया जा सकता था. 1972 से रियूजेबल स्पेसक्राफ्ट को तैयार करने में जुटे नासा के इंजीनियरों को आखिरकार नौ वर्षों के बाद सफलता मिली और अपने इस रॉकेट के जरिये 12 अप्रैल, 1981 को नासा ने पहली बार स्पेस शटल कोलंबिया को सफलतापूर्वक लॉन्च किया.
नासा और इसरो साझेदारी
इसरो और नासा ने आपसी सहयोग के लिये 2008 में समझौता किया था. इसके अंतर्गत, शांतिपूर्ण प्रयोजनों के लिए बाह्य अंतरिक्ष की खोज और उपयोग करने हेतु साझेदारी की बात की गयी थी. इस समझौते के अनुसार ही आज इसरो और नासा निसार परियोजना पर काम कर रहे हैं.
इसरो और नासा का आपसी सहयोग 2034 तक चलेगा. पिछले कुछ दशकों में भारत ने भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई कीर्तिमान बनाये हैं. इसीलिए नासा भारत का सहयोग कर रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) और नासा संयुक्त रूप से नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) मिशन पर काम कर रहे हैं. इस रडार को बनाने का मिशन 2021 तक पूरा हो जाने की संभावना है.
इस उपग्रह के माध्यम से पृथ्वी की टैक्टॉनिक प्लेट्स, बर्फ की परतों, वनस्पतियों आदि पर निगाह रखी जा सकेगी और प्राकृतिक घटनाओं या पारिस्थितिकी तंत्र में उतार-चढ़ाव, भूकंप, सुनामी, चक्रवात, ज्वालामुखी, हिम क्षेत्र का घटना और भूस्खलन आदि संकटों की आशंका को पहले ही भांपा जा सकेगा. निसार अभियान में पृथ्वी की ऊपरी परत की उत्पत्ति, मौसम और पर्यावरण पर गहराई से शोध और भविष्य के संसाधनों, खतरों के बारे में पता लगा पाना संभव हो पायेगा.
जल संकट की स्थिति में जलस्रोतों की भी संभावित जानकारी मिल सकेगी. अभियान के उद्देश्यों में यह भी शामिल है कि इस उपग्रह से प्राप्त माइक्रोवेव डेटा विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों के लिए लाभकारी होगा, जिनमें फसल चक्र की पूर्ण अवधि के लिए कृषि बायोमास का आकलन, मृदा की नमी का आकलन, बाढ़ और समुद्र में तेल रिसाव की निगरानी, तटीय कटाव, तटीय परिवर्तन, मैंग्रोव का मूल्यांकन, सतह विरूपण का अध्ययन आदि शामिल हैं. सिंथेटिक अपर्चर रडार के जरिये उपग्रह से पृथ्वी पर रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं और फिर उनकी प्रतिध्वनि को दोबारा उपग्रह में पकड़ा जाता है.
इस डबल फ्रीक्वेंसी रडार को दो हिस्सों में तैयार किया जा रहा है. संयुक्त रूप से बनाए जा रहे ‘निसार’ में इसरो 13 सेंटीमीटर एस-बैंड एसएआर को विकसित कर रहा है और 21 सेंटीमीटर एल-बैंड एसएआर का विकास नासा कर रहा है. दोनों एसएआर इसरो के अंतरिक्ष यान में लगाये जायेंगे, जिसे भारत के जीएसएलवी प्रक्षेपण वाहन से प्रक्षेपित करने की योजना पर काम चल रहा है.
नासा के विभिन्न कार्यक्रमों पर 19 मिलियन डॉलर से अधिक का खर्च
क्षेत्र बजट (मिलियन डॉलर में)
डीप स्पेस एक्सप्लोरेशन 4,222.6
एक्सप्लोरेशन रिसर्च व टेक्नोलॉजी 820.1
स्पेस फ्लाइट ऑपरेशंस 4,850.1
अर्थ, प्लेनटरी व अन्य साइंस 5,725.8
एरोनॉटिक्स 655.5
एजुकेशन 99.3
सुरक्षा व अन्य 2,749.8
अन्य मद 395.9
विश्व की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां
अंतरिक्ष और ऊपरी वायुमंडल अनुसंधान आयोग: पाकिस्तान सरकार की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी अंतरिक्ष और ऊपरी वायुमंडल अनुसंधान आयोग. यह देश में अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए संचालित किया गया है और इसका मुख्यालय कराची में है.
अंतरिक्ष और रिमोट सेंसिंग अनुसंधान संगठन (स्पररसो): अंतरिक्ष और रिमोट सेंसिंग अनुसंधान संगठन (स्पररसो) बांग्लादेश की राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग संबंधी अंतरिक्ष एजेंसी है.
इजरायल स्पेस एजेंसी: इजरायल की संस्था इजरायल स्पेस एजेंसी देश में अंतरिक्ष शोध से संबंधित गतिविधियों का संचालन करती है. स्वदेशी प्रक्षेपण क्षमताएं रखने वाला इजरायल, दुनिया का सबसे छोटा देश है.
ईरानी अंतरिक्ष एजेंसी: ईरानी अंतरिक्ष एजेंसी ईरान की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है. इसका मुख्य प्रक्षेपण स्थल इमाम शहर में है.
चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन : चीनी राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन या चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन चीन की अंतरिक्ष संस्था है. यह देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के संचालन एवं विकास की दिशा में काम करती है.
जापान एयरोस्पस ऐक्स्प्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) : जापान एयरोस्पस ऐक्स्प्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) जापान की सरकारी अंतरिक्ष संस्था है. जाक्सा का प्रमुख प्रक्षेपण स्थल तानेगाशिमा अंतरिक्ष केंद्र है.
नासा
नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) संयुक्त राज्य अमेरिका की एजेंसी है, अंतरिक्ष कार्यक्रमों व एरोनॉटिक्स व एयरोस्पेस संशोधन के लिए काम करती है.
इसरो
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है. इसका मुख्यालय बेंगलौर में है. इस अंतरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है.
यूरोपियन स्पेस
एजेंसी (ईसा)
यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईसा) 18 देशों का सामूहिक संगठन है. इसका मुख्यालय पेरिस में है और गुयाना अंतरिक्ष केंद्र मुख्य प्रक्षेपण स्थल है.
रशियन फेडरल
स्पेस एजेंसी
रूसी संघीय अंतरिक्ष अभिकरण या रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी रूस का अंतरिक्ष अभिकरण है. इसे रॉसकॉसमॉस के नाम से भी जाना जाता है. इसका मुख्यालय मास्को में स्थित है.
सिनेस
नेशनल सेंटर ऑफ स्पेस रिसर्च (सिनेस) फ्रांस का एक राष्ट्रीय अभिकरण है और इसका मुख्यालय पेरिस में स्थित है.
नासा की बड़ी विफलताएं
अपोलो 1 दुर्घटना
इस दुर्घटना में नासा के अभियान के अंतर्गत केप कैनेडी में रिहर्सल के दौरान अपोलो अंतरिक्षयान में आग लगने से तीन अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों की मौत हो गई थी. 27 जनवरी,1967 के दिन हुए रिहर्सल की योजना यह थी कि एक छद्म प्रक्षेपण से यह जांच की जाये कि अपोलो यान अपनी अंदरूनी बिजली से सामान्य कार्य कर सकता है या नहीं. तीनों मृतकों में गस इवान ग्रासीम, एडवर्ड एच व्हाईट द्वितीय और रोजर बी कैफी शामिल थे.
स्पेस शटल चैलेंजर हादसा
नासा के अभियान को उस समय झटका लगा था, जब 28 जनवरी 1986 में अपनी उड़ान भरने के तीन सेकेंड बाद ही स्पेस शटल चैलेंजर हादसे का शिकार हो गया था. यान में लगे सॉलिड ईंधन रॉकेट की “ओ रिंग” सील के काम नहीं कर पाने के कारण विस्फोट हो गया था. इस हादसे के बाद नासा ने स्पेस के कार्यक्रमों में नये तरीके से काम करना शुरू किया गया था. इस हादसे से करीब 3 लाख 28 हजार करोड़ रुपये (5.5 बिलियन डॉलर) का नुकसान हुआ था.
कोलंबिया अंतरिक्षयान दुर्घटना
अमेरिका के टेक्सस, लुईसियना में फरवरी 2003 के दिन, कोलंबिया अंतरिक्ष यान दुर्घटना का शिकार हो गया था. यह दुर्घटना उस समय घटित हुई, जब कोलंबिया अंतरिक्ष यान अभियान पूरा करके पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश कर रहा था. जब यान ने वायुमंडल में प्रवेश किया था, बहुत ज्यादा हवा के दबाव और गर्मी अंदर भरने से आग का शिकार हो गया.
इस दुर्घटना में सभी सात अंतरिक्ष यात्री मारे गये थे. इनमें भारतीय मूल की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला भी शामिल थी. इसके बाद, कोलंबिया अंतरिक्ष यान के प्रोग्राम मैनेजर रहे वेन हेल ने दावा किया था कि नासा को अंतरिक्ष यान में आयी खराबी का पहले से ही पता था.