सर्च इंजन गूगल ने लोगों के जीवन को आसान बना दिया है. खास कर युवा जीवन की हर समस्या का निदान गूगल पर ढूंढ़ते नजर आते हैं. कुल मिला कर कहें, तो युवा इस पर पूरी तरह आश्रित होते जा रहे हैं. कुछ मायने में यह मददगार तो साबित हो रहा है, पर जब हम इसका उपयोग बीमारियों के इलाज के लिए करने लगते हैं, तो कई बार यह मुसीबत में डाल देता है. गूगल में मेडिकल के सारे टर्म, जांच व दवा की जानकारी तो उपलब्ध है, लेकिन क्लिनिकल जानकारी नहीं है. मुफ्त डॉक्टरी सलाह के चक्कर में लोग खास कर युवा गूगल सिंड्रोम की चपेट में आते जा रहे हैं. अक्सर ऐसा देखा गया है कि लोग छोटी-मोटी बीमारी के इलाज के लिए गूगल पर सर्च कर दवा तो ले लेते हैं, लेकिन इससे राहत मिलने के बजाय गंभीर बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. ऐसे गूगलाइटिस (आम बोलचाल में गूगल से ज्ञान लेनेवालों के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला शब्द) से डॉक्टर भी परेशान हैं. सोमवार के अंक में हमने गूगल के फायदे के बारे में बताये थे, वहीं आज के अंक में इससे होनेवाले नुकसान के बारे में जानकारी दे रहे हैं. पेश है राजीव पांडेय की रिपोर्ट…
केस स्टडी-1
सिर दर्द को मान लिया था ब्रेन ट्यूमर
रिम्स के मेडिसिन विभाग के ओपीडी में एक मरीज सिरदर्द की समस्या लेकर पहुंचा. उसकी उम्र करीब 30 से 35 के बीच थी. वह डॉक्टर को पर्ची देते हुए कहने लगा कि सर लक्षण के आधार पर हमको लगता है कि ब्रेन ट्यूमर हो गया है. अब मेरी जान बचेगी या नहीं यह बताइये. हमने पढ़ा है कि सिर का दर्द लगातार हाेने पर ट्यूूमर हो सकता है. हमने गूगल पर सर्च किया था, जिसमें एक लक्षण मिल रहा था. डाॅक्टर ने बताया कि वह इतना ज्यादा अवसाद से पीड़ित था कि उसे मनोचिकित्सक के भेजना पड़ा.
केस स्टडी-2
सामान्य की जगह करा ली मास्टर जांच
गूगल पर एक व्यक्ति ने जब तीन हफ्ते से खांसी होने का खतरा के बारे में सर्च किया, तो पता चला कि टीबी की बीमारी हो सकती है. इसके बाद वह व्यक्ति इतना डर गया कि उसने 2,500 रुपये खर्च कर मास्टर जांच करा ली. रिपोर्ट लेकर वह डॉक्टर के पास पहुंचा. रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने कहा कि आपने मुख्य जांच इएसआर व चेस्ट एक्सरे तो कराया ही नहीं. यह जांच तो 500 रुपये मेेेें हो जाती. ऐसे में गूगल ज्ञान के चक्कर में फंस कर उस व्यक्ति का पैसा भी ज्यादा खर्च हो गया और सही जांच भी नहीं हो पायी.
केस स्टडी-3
नसों में चढ़ा दिया नीम का रस, किडनी खराब
रिम्स के मेडिसिन वार्ड में भर्ती एक मरीज को डायबिटीज था. उसकी उम्र 32 साल थी, इसलिए लोग तरह-तरह की सलाह देने लगे. एक व्यक्ति ने बताया कि यू-ट्यूब में मेरे भाई ने देख कर बताया है कि डायबिटीज होने पर शुरुआत में नीम के पत्ते का रस तैयार कर खून की नली में चढ़ाने से डायबिटीज नियंत्रित हो जाता है. इसके बाद उक्त मरीज ने ऐसा ही किया. कई दिन तक ऐसा करने के बाद वह बीमार हो गया. उसे गंभीर रिम्स में भर्ती किया गया. जांच में पता चला कि उसका किडनी 50 फीसदी खराब हो गयी है.
गोरखपुर में एक महिला की जा चुकी है जान
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गूगल ज्ञान व यू ट्यूब का सहारा लेकर प्रसव कराने का एक मामला 11 मार्च 2019 को प्रकाश में आया था. एक महिला ने प्रसव के लिए यू ट्यूब का सहारा लिया था. हालांकि प्रसव के बाद जच्चा व बच्चा दोनों की मौत हो गयी थी. बताया जाता है कि उक्त महिला यू ट्यूब देख कर अपना प्रसव करा रही थी. वह किराये के मकान में रहती थी. जब कमरा से खून का रिसाव होने लगा, तो यह देख मकान मालिक पहुंचा. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गयी थी. कमरे के अंदर जाने पर सब स्तब्ध हो गये थे. महिला व नवजात तड़प रहे थे. वहीं जमीन पर पड़े मोबाइल में यू ट्यूब पर प्रसव कराने का वीडियो चल रहा था.
गूगल ने किया है आगाह
डॉक्टर बनना है, तो गूगल का सहारा नहीं लें
खाद्य पदार्थों से होनेवाली बीमारियों के बारे में न करें सर्च
गर्भपात कराने से संबंधित जानकारी न लें
चाइल्ड पॉर्न को सर्च न करें
बम बनाने के बारे में जानकारी न लें
गूगल पर गूगल सर्च न करें
यह भी महत्वपूर्ण : नेट के माध्यम से बीमारी की दवा लेना खतरनाक साबित होता है, क्योंकि उसके साइड इफेक्ट की जानकारी नहीं होती है. इसलिए इससे लोगों को बचना चाहिए.
गूगल सिंड्रोम की चपेट में आ रहे युवा : डॉ डीके झा
मुफ्त डॉक्टरी सलाह के चक्कर में लोग गूगलाइटिस से गूगल सिंड्रोम की चपेट में आ जा रहे हैं. रिम्स के फिजिसियन डॉ डीके झा ने बताया कि अक्सर लोग हल्की बीमारी होने पर गूगल पर सर्च करने लगते हैं. बीमारी के लक्षण, जांच व उपचार को पढ़ने के बाद अपनी बीमारी का लक्षण गूगल ज्ञान से मिलाने लगते हैं. पता चलता है कि एक लक्षण गंभीर बीमारी का मिल गया, तो हम तनाव में आ जाते हैं. यह तनाव युवा को गूगल सिंड्रोम तक पहुंचा देता है. बाद में ऐसे लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
गूगल नहीं देता क्लिनिकल ज्ञान : डॉ दिलजीत बोदरा
मेडिसिन विभाग के पीजी स्टूडेंट डॉ दिलजीत बाेदरा ने बताया कि गूगल में मेडिकल के सारे टर्म, जांच व दवा की जानकारी तो उपलब्ध है, लेकिन क्लिनिकल जानकारी नहीं है. यह जानकारी आपको मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद ही मिल सकती है. गूगल में सर्च कर लक्षण के आधार पर दवा लेने से उसका दुष्प्रभाव भी पड़ता है. 10 साल की पढ़ाई व अनुभाव के बाद ही हम सही दवा देने की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. बुखार में गूगल पर सर्च कर पारासिटामोल की दवा ली जा सकती है, लेकिन इसके ज्यादा उपयोग से पेट में अल्सर हो सकता है, इसका ज्ञान नहीं है. वहीं गैस की दवा कब व किस समय कितने मात्रा में लेनी है, क्लिनिकल ज्ञान के बाद ही इसकी जानकारी मिलती है.
ऐसे मरीजों को समझाना आसान नहीं : डॉ आदित्य
रिम्स के पीजी स्टूडेंट डॉ आदित्य कुमार ने बताया कि मरीज पेट में दर्द व अन्य छोटी बीमारी की समस्या लेकर आता है और सीधे आइसीयू में भर्ती करने की बात करता है. वह गूगल ज्ञान को इतना पढ़ कर आता है कि उसको समझाना आसान नहीं होता है. वह अपने पास कई तरह की दवा भी लेकर आता है. वह इतना भ्रमित रहता है कि एक सही लाइन ऑफ ट्रीटमेंट पर काम नहीं करने देता है. ऐसे मरीजों का इलाज करने में काफी परेशानी होती है़ कौन सी दवा मरीज को कैसे देनी है, यह आप मरीज के साथ रहते हुए अनुभव से प्राप्त कर सकते हैं. मरीज को दवा उसकी वजन व अन्य बीमारियों का तुलनात्मक अध्ययन के बाद ही दी जा सकती है. इसलिए गूगल पर सर्च कर बीमारी का इलाज करना खतरनाक है.
गूगल की जानकारी ठीक, लेकिन खुद से इलाज न करें
इंटीग्रेटिव मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ एसके अग्रवाल ने बताया कि गूगल जानकारी देने का अच्छा श्रोत है, लेकिन केवल इससे जानकारी लेकर खुद इलाज करना उचित नहीं है. गूगल में सही व गलत दोनों प्रकार की जानकारी है. आम आदमी के लिए यह जानना मुश्किल होता है कि दी गयी जानकारी उपयोग करने योग्य है या नहीं है. अपने से इलाज करना हानिकारक व जानलेवा हो सकता है. पेड़-पौधा का परंपरागत उपयोग हानिकारक नहीं होता है, लेकिन जड़ी-बूटी के उपयोग की जानकारी सही तरीके से होनी चाहिए. इसलिए गूगल पर सर्च कर इलाज करना खतरनाक है. इससे बचना चाहिए.
गूगल देख अपने मन से होमियोपैथी दवा भी नहीं लें
होमियोपैथी चिकित्सक डॉ यूएस वर्मा ने बताया कि गूगल या यू ट्यूब से देख कर किसी पद्धति से इलाज करना हानिकारक व जानलेवा हो सकता है. क्लिनिक में कई ऐसे मरीज आते हैं, जो पहले अपने मन से गूगल पर सर्च कर दवा लेते हैं, लेकिन सही मात्रा में दवा नहीं लेने के कारण जब उनकी स्थिति खराब हाेती है, तब वह हमारे पास आते हैं. होमियोपैथी दवा हमेशा सिम्टम के आधार पर दिया जाता है. इसलिए अपने मन से दवा नहीं लेनी चाहिए. होमियोपैथी दवा हानिकारक नहीं होती है, लेकिन एक दवा का बार-बार प्रयोग करने से यह हानिकारक हो जाता है.
गूगल के आने के बाद सब आसान हो गया है. छोटी-बड़ी सारी जानकारी जब गूगल पर उपलब्ध है, तो बेवजह लोग किसी का सहारा क्यों बनें. गूगल पर जानकारी मिल रही है, तो सही ही होगी. इसलिए सामान्य बीमारी में सर्च कर जानकारी लेकर दवा दुकान से दवा ले लेते हैं.
-विक्की वर्मा
इंटरनेट के दौर में हर चीज अब मोबाइल पर उपलब्ध है. आजकल लोग ऑनलाइन खरीदारी कर रहे हैं. ऐसे में दवा या बीमारी की जानकारी क्यों नहीं ली जा सकती हैं. नेट पर बीमारी के बारे में सर्च कर उससे संबंधित दवा लेने में क्या हर्ज है़ हालांकि दवा की पड़ताल भी जरूरी है.
-अभिषेक कुमार झा