”चंद्रयान 2 चांद पर मानव की स्थायी मौजूदगी स्थापित करने में मदद करेगा”
नयी दिल्ली : नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री जेरी लिनेंजर ने कहा है कि भारत का दूसरा चंद्र मिशन न सिर्फ देश की विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे ले जाने में मदद करेगा, बल्कि अंतत: चांद पर मानव की स्थायी मौजूदगी स्थापित करने में उन सभी देशों की भी मदद करेगा जो अंतरिक्ष में जाने […]
नयी दिल्ली : नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री जेरी लिनेंजर ने कहा है कि भारत का दूसरा चंद्र मिशन न सिर्फ देश की विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे ले जाने में मदद करेगा, बल्कि अंतत: चांद पर मानव की स्थायी मौजूदगी स्थापित करने में उन सभी देशों की भी मदद करेगा जो अंतरिक्ष में जाने की क्षमता रखते हैं.
‘चंद्रयान-2′ के चांद पर उतरने की घड़ी अब नजदीक आ गई है और सभी भारतवासी उत्सुकता से शनिवार तड़के चांद पर होने वाली ऐतिहासिक घटना का इंतजार कर रहे हैं. यान के साथ गया लैंडर ‘विक्रम’ अपने साथ रोवर ‘प्रज्ञान’ को लेकर सात सितंबर को रात डेढ़ से ढाई बजे के बीच चांद की सतह पर किसी भी क्षण उतर सकता है.
लिनेंजेर ने एक साक्षात्कार में कहा, यह एक शानदार मिशन है, हर किसी को बहुत रोमांचित होना चाहिए. यह मेरा सौभाग्य है कि मैं यहां हूं, तथा उस सीधे प्रसारण के लिए अपने अनुभवों से और आनंद उठाऊंगा. यद्यपि रूस, अमेरिका और चीन चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की उपलब्धि हासिल कर चुके हैं, लेकिन भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बनना चाहता है.
लिनेंजर ने रूसी अंतरिक्ष केंद्र ‘मीर’ में पांच महीने तक उड़ान भरी थी जिसने 1986 से 2001 तक पृथ्वी की निचली कक्षा में परिक्रमा की. वह नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर ‘चंद्रयान-2′ के सीधे प्रसारण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भारत में हैं. चैनल पर इस ऐतिहासिक घटना से संबंधित सीधा प्रसारण शुक्रवार रात साढ़े ग्यारह बजे से शुरू होगा.
लिनेंजर ने कहा, मिशन अद्वितीय है, यह लगभग 70 डिग्री अक्षांश में चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है. और यह वह जगह है जिसके बारे में हम सोचते हैं कि वहां बर्फ के रूप में पानी हो सकता है. और इसीलिए अमेरिका 2024 में चांद पर मानव मिशन भेजने की योजना बना रहा है. उन्होंने कहा कि इस क्रम में अमेरिका चांद पर उतरने के लिए एक ऐसा स्थान चुनेगा जो जीवन तत्व पानी के नजदीक हो.
पूर्व अंतरिक्ष यात्री ने कहा कि ‘चंद्रयान-2′ न सिर्फ भारत और उसकी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी उन्नति में मदद करेगा, बल्कि अंतत: यह चांद पर मानव की स्थायी मौजूदगी स्थापित करने में उन सभी देशों की मदद करेगा जो अपनी प्रौद्योगिकी के जरिये अंतरिक्ष में जाने की क्षमता रखते हैं.